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फिल्म रिव्यू: हमशकल्स (1 स्टार)

साजिद खान की 'हमशकल्स' वास्तव में हिंदी फिल्मों के गिरते स्तर में बड़बोले 'कमअकल्स' के फूहड़ योगदान का ताजा नमूना है। इस फिल्म में पागलखाने

By Edited By: Published: Fri, 20 Jun 2014 11:21 AM (IST)Updated: Fri, 20 Jun 2014 11:53 AM (IST)
फिल्म रिव्यू: हमशकल्स (1 स्टार)

अजय ब्रह्मात्मज

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प्रमुख कलाकार: सैफ अली खान, बिपाशा बसु, रितेश देशमुख, तमन्ना भाटिया, ईशा गुप्ता और राम कपूर।

निर्देशक: साजिद खान

संगीतकार: हिमेश रेशमिया

स्टार: एक

साजिद खान की 'हमशकल्स' वास्तव में हिंदी फिल्मों के गिरते स्तर में बड़बोले 'कमअकल्स' के फूहड़ योगदान का ताजा नमूना है। इस फिल्म में पागलखाने के नियम तोडऩे की एक सजा के तौर पर साजिद खान की 'हिम्मतवाला' दिखायी गयी है। भविष्य में कहीं सचमुच 'हमशकल्स' दिखाने की तजवीज न कर दी जाए। साजिद खान जैसे घनघोर आत्मविश्वासी इसे फिर से अपनी भूल मान कर दर्शकों से माफी मांग सकते हैं, लेकिन उनकी यह चूक आम दर्शक के विवेक को आहत करती है। बचपना और बचकाना में फर्क है। फिल्मों की कॉमेडी में बचपना हो तो आनंद आता है। बचकाने ढंग से बनी फिल्म देखने पर आनंद जाता है। आनंद जाने से पीड़ा होती है। 'हमशकल्स' पीड़ादायक फिल्म है।

साजिद खान ने प्रमुख किरदारों को तीन-तीन भूमिकाओं में रखा है। तीनों हमशकल्स ही नहीं, हमनाम्स भी हैं यानी उनके एक ही नाम हैं। इतना ही नहीं उनकी कॉमेडी भी हमशक्ली है। ये किरदार मौके-कुमौके हमआगोश होने से नहीं हिचकते। डायलॉगबाजी में वे हमआहंग (एक सी आवाजवाले) हैं। उनकी सनकी कामेडी के हमऔसाफ (एकगुण) से खिन्नता और झुंझलाहट बढ़ती है। 'हमशकल्स' में कलाकारों और निर्माता-निर्देशक की हमखयाली और हमखवासी से कोफ्त हो सकती है। हिंदी फिल्मों के ये हमजौक और हमजल्सा हुनरबाज हमदबिस्तां(सहपाठी) लगते हैं। सच कहूं तो उन्हें दर्शकों से कोई हमदर्दी नहीं है। इस मायने में साजिद खान की हमशीर (बहन) फराह खान ज्यादा काबिल और माकूल डायरेक्टर हैं। फिर भी साजिद खान की हमाकत (मूर्खता) देखें कि उन्होंने इस फिल्म को किशोर कुमार और जिम कैरी जैसे हुनरमंद कलाकारों को समर्पित किया है और परोसा है कॉमेडी के नाम पर फूहड़ मनोरंजन। भला किशोर कुमार और साजिद खान मनोरंजन के हमरंगी हो सकते हैं?

'हमशकल्स' में सैफ अली खान, रितेश देशमुख और राम कपूर हैं। इन तीनों में केवल रितेश देशमुख अपनी काबिलियत से सुकून देते हैं। यहां तक कि लड़कियों का रूप धारण करने पर भी तीनों में केवल वही अपने नाज-ओ-अंदाज से लड़कीनुमा लगते हैं। सैफ अली खान ने पहली बार ऐसी कॉमेडी की है। अफसोस कि उन्हें केवल जीभ निकालने और पुतलियों को नाक के समीप लाना ही आता है। चेहरे पर उम्र तारी है। उनके लिए बच्चा, कुत्ता, समलैंगिक और लड़की बनना भी भारी है। मार्के की बात है कि किसी भी स्थिति-परिस्थिति में उनके बाल नहीं बिगड़ते। राम कपूर का इस्तेमाल इनकी प्रतिभा से अधिक डीलडौल के लिए हुआ है। बिकनी में वे बर्दाश्त के बाहर हो गए हैं। फिल्म की अभिनेत्रियां साजिद खान की अन्य फिल्मों की तरह केवल नाच-गाने और देहदर्शन के लिए हैं। तमन्ना भाटिया, ईशा गुप्ता और बिपाशा बसु को कुछ दृश्य और संवाद भी मिल गए हैं। फिल्म पूरी होने के बाद बिपाशा बसु का एंड प्रोडक्ट से क्यों मोहभंग हुआ था? उनके बयान का औचित्य समझ में नहीं आता। फिल्म शुरुआत से अंत तक निकृष्ट है। यह बात तो शूटिंग आरंभ होते ही समझ में आ गई होगी। बहरहाल, इस निम्नस्तरीय फिल्म में भी कॉमेडी के नाम पर दी गई घटिया हरकतों के बावजूद सतीश शाह की मौजूदगी तारीफ के काबिल है।

इतना ही नहीं। यह फिल्म 159 मिनट से अधिक लंबी है। बेवकूफियों का सिलसिला खत्म ही नहीं होता। हंसी लाने की कोशिश में गढ़े गए लतीफों और दृश्य मुंबइया भाषा में दिमाग का दही करते रहते हैं। दर्शकों के दिमाग के साथ धैर्य की भी परीक्षा लेती है 'हमशकल्स'। अगर आप नीली दवा पीकर आदमी के भौंकने और कुत्तों जैसी हरकतें करने पर बार-बार हंस सकते हैं, बड़ों के बच्चों जैसे तुतलाने पर मुस्कराने लगते हों और दो दृश्यों के बीच कोई संबंध या तर्क न खोजते हों तो आप 'हमशकल्स' देख सकते हैं। अन्यथा मनोरंजन के नाम पर तिगुना उत्पीडऩ हो सकता है।

अवधि-159 मिनट

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