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फिल्म रिव्यूः दो युगों की दास्तान, मिर्जिया (3 स्टार)

फिल्म लोहारों की बस्ती से आरंभ होती है। लोहार बने ओम पुरी बतातेे है, 'लोहारों की गली है यह। यह गली है लोहारों की, हमेशा दहका करती है....

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Fri, 07 Oct 2016 02:16 AM (IST)Updated: Fri, 07 Oct 2016 01:51 PM (IST)
फिल्म रिव्यूः दो युगों की दास्तान, मिर्जिया (3 स्टार)

-अजय बह्मात्मज

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प्रमुख कलाकार- हर्षवर्धन कपूर और सायामी खेर।
निर्देशक- राकेश ओम प्रकाश मेहरा
संगीत निर्देशक- शंकर, एहसान और लॉय
स्टार- 3 स्टार

राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘मिर्जिया’ दो कहानियों को साथ लेकर चलती है। एक कहानी पंजाब की लोककथा मिर्जा-साहिबा की है। दूसरी कहानी आज के राजस्थान के आदिल-सूची की है। दोनों कहानियों का अंत एक सा है। सदियों बाद भी प्रेम के प्रति परिवार और समाज का रवैया नहीं बदला है।

मेहरा इस फिल्म में अपनी शैली के मुताबिक दो युगों में आते-जाते हैं। ‘रंग दे बसंती’ उनकी इस शैली की कामयाब फिल्म थी। इस बार उनकी फिल्म दो कहानियों को नहीं थाम सकी है। दोनों कहानियों में तालमेल बिठाने में लेखक और निर्देशक दोनों फिसल गए हैं। अपारंपरिक तरीके से दो कहानियों का जोड़ने में वे ‘रंग दे बसंती’ की तरह सफल नहीं हो पाए हैं।

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गुलजार के शब्दों के चयन और संवादों में हमेशा की तरह लिरिकल खूबसूरती है। उन्हें राकेश ओमप्रकाश मेहरा आकर्षक विजुअल के साथ पेश करते हैं। फिल्म के नवोदित कलाकारोंं हर्षवर्धन कपूर और सैयमी खेर पर्दे पर उन्हें जीने की भरपूर कोशिश करते हैं। सभी की मेहनत के बावजूद कुछ छूट जाता है। फिल्म बांध नहीं पाती है। यह फिल्म टुकड़ों में अच्छी लगती है। दृश्य और दृश्यहबंध नयनाभिरामी हैं। लोकेशन मनमोहक हैं। फिल्म के भावों से उनकी संगत भी बिठाई गई है। मेहरा ने फिल्म के शिल्प पर काफी काम किया है। कमी है तो कंटेंट की। अतीत और वर्तमान की प्रेमकहानियों का प्रवाह लगभग एक सा है। गुलजार ने प्रयोग किया है कि अतीत की कहानी में संवाद नहीं रखे हैं। कलाकारों के मूक अभिनय को आज के संवादों से अर्थ और अभिप्राय मिलते हैं।

फिल्म लोहारों की बस्ती से आरंभ होती है। लोहार बने ओम पुरी बतातेे है, 'लोहारों की गली है यह। यह गली है लोहारों की, हमेशा दहका करती है....यहां पर गरम लोहा जब पिघलता है, सुनहरी आग बहती है कभी चिंगारियां उड़ती हैं भट्ठी से कि जैसे वक्त मुट्ठी खोल कर लमहे उड़ाता है। सवारी मिर्जा की मुड़ कर यहीं पर लौट आती है। लोहारों की बस्ती फिर किस्सा साहिबां का सुनाती है...सुना है दास्तां उनकी गुजरती एक गली से तो हमेशा टापों की आवाजें आती हैं...’ उसके बाद अतीत के मिर्जा-साहिबां की कहानी दलेर मेंहदी की बुलंद आवाज के साथ शुरू होती है। ‘ये वादियां दूधिया कोहरे की...’ गीत की अनुगूंज पूरी फिल्म में है।

राकेश ओप्रकाश मेहरा अपनी फिल्म म्यूजिकल अंदाज में पेश करते हैं। उन्होंने गुलजार के पंजाबी गीतों का समुचित इस्तेमाल किया है, लेकिन ठेठ पंजाबी शब्दों के प्रयोग से गीत के भाव समझने में दिक्कत होती है। हां, पंजाबीभाषी दर्शकों को विशेष आनंद आएगा, लेकिन आम दर्शक गीत के अर्थ और भाव नहीं समझ पाएंगे। फिल्म के संप्रेषण में पंजाबी की बहुलता आड़े आएगी।

‘मिर्जिया’ हर्षवर्धन कपूर और सैयमी खेर की लांचिंग फिल्म है। लांचिंग फिल्म में नवोदित कलाकारों की क्षमता और योग्यता की परख होती है। इस लिहाज से हषवर्धन कपूर और सैयमी खेर निराश नहीं करते। दोनों एक तरह से डबल रोल में हैं। एक सदियों पहले के किरदार और दूसरे आज के किरदार...उन्हेंं दोनों युगों के अनुरूप पेश करने में फिल्म की तकनीकी टीम सफल रही है। बतौर कलाकार वे भी दिए गए चरित्रों को आत्मसात करते हैं।

हर्षवर्धन कपूर हिंदी फिल्मों के रेगुलर हीरो नहीं लगते। इस फिल्म के कथ्य के मुताबिक उन्होंंने रूप धारण किया है। सैयमी खेर में एक आकर्षण है। वह खूबसूरत हैं। उन्होंने अपने किरदारों की मनोदशा का सही तरीके से समझा और निर्देशक की सोच में ढलने की कोशिश की है।

निस्संदेह ‘मिर्जिया’ भव्य और सुंदर है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वीएफएक्स और दृश्य संयोजन की कल्पना से उसे सम्मोहक बना दिया है। गुलजार अपनी खासियत के बावजूद प्रभावित नहीं कर पाते। इस बार वक्त, लमहा और चांद नहीं रिझा पाते हैं। फिल्म का गीत-संगीत पंजाबीपन को गाढ़ा करता है।

अवधि-129 मिनट

abrahmatmaj@mbi.jagran.com


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