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फिल्‍म रिव्‍यू: विद्रोह का जरिया बनी लिपस्टिक (साढ़े तीन स्टार)

कब बुआजी की लिपस्टिक विद्रोह का एक जरिया बन जाती है पता ही नहीं चलता।

By Rahul soniEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 01:35 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 01:54 PM (IST)
फिल्‍म रिव्‍यू: विद्रोह का जरिया बनी लिपस्टिक (साढ़े तीन स्टार)
फिल्‍म रिव्‍यू: विद्रोह का जरिया बनी लिपस्टिक (साढ़े तीन स्टार)

- पराग छापेकर

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मुख्य कलाकार: कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक, आहना कुम्रा, प्लाबिता बोरठाकुर

निर्देशक: अलंकृता श्रीवास्तव

निर्माता: प्रकाश झा

स्टार: साढ़े तीन स्टार

विद्रोह का यह जरिया आपको पसंद आएगा। चूंकि एक गहरे लाल रंग वाली लिपस्टिक विद्रोह का जरिया कब बन जाती है यह पता ही नही चलता। महिलाओं के अंदर चल रही उथल-पुछल, अपमान और गुस्से को पी जाने वाली संवेदनशीलता के बाद जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है तब क्या होता है। यही कहानी है ''लिपस्टिक अंडर माय बुर्का'' की। फिल्म रिलीज़ होने से पहले शुरुआत से ही सेंसर द्वारा बैन किए जाने से लेकर बैन हटाए जाने तक चर्चा में रही जो फिल्म के लिए अच्छी बात साबित हुई है। एक तरह से फिल्म को काफी प्रमोशन भी मिल गया। खास तौर पर फिल्ममेकर्स के लिए जिन्होंने बैन को लेकर अपनी आवाज बुलंद की और आखिरकार उनकी जीत भी हुई। यह कहा जा सकता है कि, इस फिल्म को देखना बिल्कुल भी समय की बर्बादी नहीं है चूंकि यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है। 

ये है कहानी - 

महिलाओं की गहरी सोच के साथ पॉलीटिकल और पॉवरफुल लुक को इस फिल्म में दर्शाया गया है जो आज जरूरी भी है। कहानी चार महिलाओं की है जो भोपाल से हैं। इन महिलाओं की जिंदगी आम महिलाओंं की तरह आगे बढ़ती है। शुरुआत में फिल्म दर्शकों के सामने उस दृश्य को पेश करती है जिसमें वो समाज और संस्कृति में अपने आपको ढालकर अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाती हैं जो हर महिला करती है। लेकिन अपने आपको बंधा पाकर वो अपनी आवाज उठाती है। इस दौरान उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह बुआजी के किरदार में हैं। उन्हें लोभी कॉरपोरेटर्स और मकान मालिकों द्वारा परेशान होना पड़ता है। बुआजी वैसे तो हवाई महल का एक तरह से मॉरल सेंटर हैं, चूंकि वो एक पवित्र नारी हैं जो विधवा हो चुकी है। बात करें कोंकण सेनशर्मा की तो वो तीन बच्चों की मां हैं और सुशांत सिंह की पत्नी। सुशांत की सोच यह है कि पत्नी पर हुक्म जमाया जा सकता है क्योंकि वो बनी ही इसके लिए है। साथ ही रात में बिस्तर गर्म करने के लिए भी। यू कहें कि बीवी हो, बीवी की तरह रहो। 

अहाना कुम्रा जो लीला के किरदार में हैं सेक्स को गलत नहीं मानती इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी को पता चल भी जाता है कि उसका बॉयफ्रेंड विक्रांत मेस्सी है। लीला का पति वैभव तत्ववादी है। सबसे छोटी कॉलेज गोइंग प्लाबिता बोरठाकुर हैं जिन्होंने रिहाना का किरदार निभाया है। वो अमेरिकन सिंगर मिले साइरस की बड़ी फैन हैं। ये लड़की शुरुआत से ही अपनी आवाज खुलकर नहीं उठा पाती।

उम्र तो है नंबर गेम -

यह फिल्म देखकर आपको यह जरूर अहसास हो जाएगा कि हां, उम्र सिर्फ एक नंबर गेम है। अगर सपनों को सच करने की इच्छाशक्ति है तो कोई नहीं रोक सकता। यह जरूर है कि फिल्म में फ्रैंक तरीके से यह सब दर्शाया गया है। जिस तरह से बुआजी का जागना जो अपना नाम ही भूल चुकी थी वो एक रहस्य से पर्दा उठना जैसा ही है। बतौर पत्नी कोंकण सेनशर्मा आगे बढ़ना और उड़ना चाहती है।

कब बुआजी की लिपस्टिक जिसे वो लिपिस्टिक कहती हैं विद्रोह का एक जरिया बन जाती है पता ही नहीं चलता। यह कहा जा सकता है कि, फिल्म में सिस्टरहुड को दर्शाया गया है। चार महिलाएं उस रास्ते पर चल पड़ती हैं जिस पर जाने से उन्हें मना किया जाता है। पर एक दूसरे का सहारा लेकर वो अपनी मंजिल पा लेती हैं।

अवधि: 118 मिनट


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