फिल्म रिव्यू: मिडिल क्लास, मजबूरी और चोरी 'बैंक चोर' (तीन स्टार)
चंपक, गेंडा और गुलाब अपनी-अपनी मजबूरियों और जरूरतों का हवाला दे साउथ मुंबई के बैंक ऑफ इंडियंस लूटने पहुंचते हैं। असल में जबकि तीनों नौसिखिए और आला दर्जे के बेवकूफ हैं।
-अमित कर्ण
मुख्य कलाकार: विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख, रिया चक्रवर्ती आदि।
निर्देशक: बंपी
निर्माता: यशराज फ़िल्म्स
स्टार: *** (तीन स्टार)
मौजूदा दौर की एक कड़वी हकीकत ईएमआई जिंदगी है। यानी लोन की किश्तों से गुजरती इंसानों की कश्ती। उद्योगपति और किसानों के कर्ज माफ हो जाते हैं, पर मध्य वर्ग को यह लग्जरी नहीं मिल पाती। नतीजतन वह जीवन के डेढ से दो दशक कर्ज का भुगतान करने में गुजारता है। इसे कहानी के बैकड्रॉप में रखकर इस फिल्म की बुनियाद रखी गई है। चंपक, गेंडा और गुलाब अपनी-अपनी मजबूरियों और जरूरतों का हवाला दे साउथ मुंबई के बैंक ऑफ इंडियंस लूटने पहुंचते हैं। असल में जबकि तीनों नौसिखिए और आला दर्जे के बेवकूफ हैं। वे बैंक बंधकों को भी ढंग से डरा नहीं पाते। चोरी तो दूर की बात है।
चंपक मराठी मानुष है, जबकि गेंडा फरीदाबाद का और गुलाब बदरपुर का। तीनों खुद अपनी मुसीबत यानी मुंबई पुलिस को आमंत्रित कर लेते हैं। बाहर मीडिया का जमावड़ा लग जाता है। सिने जर्नलिस्ट रही गायत्री गांगुली इस हार्ड न्यूज को कवर करने पहुंच जाती है। मुंबई पुलिस की ओर नाकारा अफसर अखिलेश आणे जब तक चंपक एंड कंपनी को पकड़ती कि सीबीआई अफसर अमजद खान आ जाता है। वह इस मिशन का इंचार्ज बन जाता है। फिर शुरू होता है चूहे-बिल्ली का खेल। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इसमें और मोड़ आने लगते हैं। अलग राज खुलते हैं। पता चलता है कि बेवकूफ से दिखने वाले तीनों के अलावा भी कुछ है, जिसे अमजद खान सबके सामने लाना चाहता है। उसकी डोर बंधकों में मौजूद जुगनू से जुड़े हैं।
चक्रव्यूह में गृह मंत्री डोंगरडिवे और रियल एस्टेट का बड़ा खिलाड़ी आशुतोष शर्मा भी है। दरअसल मनोरंजन के नाम पर सिनेमाई आजादी जरा ज्यादा ली गई है। चंपक कभी बेवकूफ, कभी मासूम तो कभी शातिर लगता है। सीबीआई अफसर अमजद खान जिस तरह से मिशन को अंजाम देता है, वैसा अमेरिका में एफबीआई करती है। यहां कमांडो इस्तेमाल करने की इजाजत इस संस्था को पूर्ण रूप से तो नहीं है। बहरहाल, निर्देशक बंपी ने बलजीत सिंह मारवाह, ओमकार शाणे और ईशिता मोइत्रा उधवानी के साथ मिलकर मसालेदार कहानी गढ़ी है। सिनेमा से महज मनोरंजन की आस रखने वालों को जहन में रखकर। उस मोर्चे पर इसे आजादी मिली है।
बंपी, बलजीत, ओमकार और ईशिता ने मुंबई और दिल्ली की टिपिकल खूबियों-खामियों को दिलचस्प रंग-रूप प्रदान किए हैं। चंपक, गेंडा और गुलाब अपने शहरों और इलाकों के तारीफों के पुल बांधते हैं। वे दिल्ली और मुंबई की चरमराती सुविधाओं व हाशिए पर पड़े हुए लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं की ओर इशारा करती हैं। कायदन इस तरह की फिल्म मूल रूप से हाईस्ट जॉनर की होती है, पर लेखन टीम ने इसे विशुद्ध उस जॉनर में रंगने नहीं दिया है। थ्रिलर और कॉमेडी को संतुलित करते हुए बीच की राह पकड़ी गई है।
‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ और ‘हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया’ में अपनी अदाकारी के रंग दिखा चुके साहिल वैद्य इस फिल्म के सरप्राइज पैकेज हैं। जुगनू की भूमिका में लोग उनके हुनर के नए पहलू से वाकिफ होंगे। फिल्म के दूसरे हाफ में वे असरदार लगे हैं। चंपक की भूमिका में रितेश देशमुख लाउड नहीं हुए हैं। मराठी मानुष के चरित्र को उन्होंने बखूबी निभाया है। अमजद खान के अवतार में विवेक ओबेरॉय जरा सी कसर छोड़ गए। टीवी रिपोर्टर बनी गायत्री गांगुली बनी रिया चक्रवर्ती ने मिले काम को अनुशासित ढंग से अंजाम दिया है। बाकी कलाकारों ने भी अपने काम के साथ न्याय किया है। फिल्म का क्लाइमेक्स चोर को रॉबिन हुड की तरह बना देता है। बहुत हद तक ‘धूम’ सीरिज के विलेन की तरह। गाने नहीं रखे गए हैं। घटनाक्रम तेज गति से आगे बढ़ते हैं। जाहिर है निर्देशक और निर्माता के जहन में ‘बैंक चोर’ को फ्रेंचाइजी बनने का पूरा इरादा है।
अवधि: 120 मिनट 9 सेकेंड