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फिल्म रिव्यू: 'ढिशुम' मसाला मनोरंजन की अतिरंजना (3.5 स्‍टार)

रोहित धवन ने बड़ी होशियारी से जॉन और वरुण की ब्रांड इमेज का इस्तेमाल करते हुए आसानी से यकीन न की जाने वाली कहानी सरलता से कह दी है। सरलता के आगोश में तर्क डूब गए हैं।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 29 Jul 2016 03:11 PM (IST)Updated: Fri, 29 Jul 2016 03:26 PM (IST)
फिल्म रिव्यू: 'ढिशुम' मसाला मनोरंजन की अतिरंजना (3.5 स्‍टार)

-अमित कर्ण

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प्रमुख कलाकार- जॉन अब्राहम, वरुण धवन और जैकलीन फर्नांडिस।
निर्देशक- रोति धवन
संगीत निर्देशक- प्रीतम
स्टार- 3.5 स्टार

जॉन अब्राहम और वरुण धवन की चर्चा व प्रतिष्ठा पॉपुलर स्टार के तौर पर ज्यादा है। ‘देसी ब्वॉय’ बना चुके रोहित धवन भी मिजाज से मसाला मनोरंजन में यकीन रखने वाले लगते हैं। ‘ढिशुम’ विशुद्ध कमर्शियल तेवर और कलेवर वाली फिल्मों को समर्पित है। तभी उस तरह की फिल्मों में आवश्यक तत्वों की बेहतर परख व समझ रखने वाले सिनेमैटोग्राफर, कॉस्ट्यम डिजाइनर, स्टंट डायरेक्टर व गीतकार-संगीतकार की सेवा ली गई है। कथाभूमि संयुक्त अरब अमीरात की आलीशान जमीन चुनी गई है। अबु धाबी के रेगिस्तानी इलाकों की नयनाभिराम खूबसूरती को सिनेमैटोग्राफर अयानन्का बोस ने बखूबी कैमरे में कैद किया है। फिल्म को भव्यता मिली है। फिल्म में हुआ खर्च हर दृश्य में टपकता है।

अयानन्का इससे पहले ‘किक’ और ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में कैमरा वर्क कर चुके हैं। हैरतअंगेज स्टंट सीन की संरचना एलन अमीन और स्टीफन रिचर ने की है। एलन से तो लोग परिचित हैं। स्टीफन रिचर की शोहरत ‘विश्वरूपम’, ‘डॉन 2’ और हॉलीवुड की मशहूर एक्शन फिल्मों को लेकर है। एलन और स्टीफन को डर्मोट ब्रोगन व अन्य लोगों की टीम दी गई है। अबु धाबी के एक्शन सीन टिपिकल फिल्मों की तरह नहीं रखे गए हैं। सरल शब्दों में कहें तो वे एंटी ग्रैविटी यानी हवा हवाई नहीं हुए। उन्हें जॉन अब्राहम व वरुण धवन के डोले-शोले ने रोमांच की भरपूर अनुभूति प्रदान की है। ऐसी फिल्मों को एकांगी नहीं रखा जाता है।

एक्शन के डोज के साथ-साथ कॉमेडी व ग्लैंमर का छौंका पूरी फिल्म में रह-रहकर लगाया जाता है। वह तड़का अक्षय कुमार, परिणीति चोपड़ा के कैमियो से खूब लगा रहा है। शारजाह में पुलिस अफसर जुनैद अंसारी की फोन पर जब-तब खिल्ली उड़ाने वाले शख्स की आवाज सतीश कौशिक की है। उनका चेहरा नहीं दिखाया गया, मगर वे आवाज से अपनी छाप छोड़ जाते हैं। सैम की भूमिका में अक्षय कुमार को नया अवतार उनके प्रशंसकों के लिए किसी सौगात से कम नहीं।

दरअसल, रोहित धवन ने बड़ी होशियारी से जॉन और वरुण की ब्रांड इमेज का इस्तेमाल करते हुए आसानी से यकीन न की जाने वाली कहानी सरलता से कह दी है। सरलता के आगोश में तर्क डूब गए हैं। यहां तर्क ढूंढना मुनासिब भी नहीं। हमारी जिंदगी भी तो ऐकिक नियमों से कहां चलती हैं। बहरहाल, ‘ढिशुम’ टीम इंडिया के प्रतिभावान और इन फॉर्म, मगर गुमशुदा खिलाड़ी विराज शर्मा की खोज पर केंद्रित है। विराज का अपहरण बाघा ने कर लिया है। वह सट्टा बाजार का बेताज बादशाह है। वह शारजाह में भारत के पाकिस्तान संग होने वाले फाइनल मैच से पहले विराज का अपहरण कर लेता है। मैच शुरू होने में महज 36 घंटे हैं। विराज को उससे पहले ढूंढ निकालने के लिए भारत सरकार अपने सबसे काबिल अफसर कबीर शेरगिल को शारजाह भेजती है। वहां निकम्मे समझे जाने वाले पुलिस अफसर जुनैद अंसारी से उसे मदद मिलती है। विराज की खोज में सैम, मीरा व आखिर में बाघा टकराते हैं। कहानी बेहद प्रेडिक्टेबल है, मगर रोहित धवन ने तुषार हीरानंदानी के साथ मिलकर एंगेज रखने वाली पटकथा लिखी है। हुसैन दलाल के चुटीले संवाद ने फिल्म की रफ्तार और धार बनाए रखी है। नितिन रोकड़े और रितेश सोनी की एडीटिंग प्रभावी है। फिल्म की लंबाई को अतिरिक्त नहीं होने दिया गया है।

अदाकारी के मोर्चे पर हर कलाकार ने प्रभावित किया है। बाघा की भूमिका में अक्षय कुमार ने दमदार वापसी की है। विराज शर्मा बने साकिब सलीम ने पूरे अनुशासन के साथ अपने किरदार को निभाया है। विराज के क्रिकेटिंग कौशल को बेहतर तरीके से पेश किया है। कबीर के किरदार में जॉन फबते हैं। गंभीर शख्स की भूमिका में वे सहज लगते हैं। हंसोड़ जुनैद अंसारी के कैरेक्टर में वरुण धवन की शिद्दत महसूस होती है। जैकलीन ने मीरा के रोल को आवश्यक तड़क-भड़क प्रदान किया है। ‘सौ तरह के’ गाने में वे चित्ताकर्षक लगी हैं।

अवधि- 124 मिनट


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