फिल्म रिव्यू: डर एट द मॉल (1 स्टार)
पवन कृपलानी ने शहरों के विकास के पीछे की दर्दनाक कहानियों को खौफनाक तरीके से पेश किया है। आम जानकारी है कि बिल्डर और भू माफिया सही-गलत तरीके से पुराने बाशिंदों को उजाड़ते हैं और फिर बहुमंजिला इमारतें, मॉल और मल्टीप्लेक्स बना कर करोड़ों रुपए का कारोबार करते हैं।
मुंबई (अजय ब्रह्मात्मज)।
प्रमुख कलाकार: जिमी शेरगिल, आरिफ जकारिया और नुशरत भरूचा।
निर्देशक: पवन कृपलानी।
संगीतकार: शंकर-अहसान-लॉय।
स्टार: 1
पवन कृपलानी ने शहरों के विकास के पीछे की दर्दनाक कहानियों को खौफनाक तरीके से पेश किया है। आम जानकारी है कि बिल्डर और भू माफिया सही-गलत तरीके से पुराने बाशिंदों को उजाड़ते हैं और फिर बहुमंजिला इमारतें, मॉल और मल्टीप्लेक्स बना कर करोड़ों रुपए का कारोबार करते हैं। ऐसे ही एक जर्जर अनाथालाय को जलाकार एमिटी मॉल खड़ा किए व्यापारियों की मुसीबत तब बढ़ जाती है, जब उनके मॉल में लगातार हत्याएं होने लगती हैं। पहले तो सभी को आरंभिक हत्याएं हादसा लगती हैं, लेकिन धीरे-धीरे पता चलता है कि उन हत्याओं के पीछे आत्माएं सक्रिय हैं। क्लाइमेक्स तक आते-आते भेद खुल जाता है कि अनाथालय में जल गए बच्चों की आत्माएं ही सब कर रही हैं। उनमें से बचा एक बच्चा ही आखिरी बदला लेता है। काश ऐसा होता तो आज अरविंद केजरीवाल की जरूरत नहीं पड़ती। आत्माएं ही भ्रष्टाचार मिटा देतीं।
तस्वीरों में देखें: डर एट द मॉल
लेखक-निर्देशक मॉल के सहारे डर की कहानी बुनी है। पूरी कोशिश है कि साउंड इफेक्ट और सीन से दर्शकों को डराया जाए, लेकिन बमुश्किल एक-दो प्रसंगों को छोड़कर हॉरर का ताना-बाना हास्यास्पद ही लगता है। फिल्म में आरिफ जकारिया और जिमी शेरगिल के अलावा बाकी कलाकार नए और अनगढ़ हैं। परफॉर्मेस की कमी से फिल्म और भी कमजोर हो गई है। आरिफ और जिमी भी स्क्रिप्ट की सीमाओं में बंध कर रह गए हैं।
हॉरर जोनर में हिंदी में भी सफल और अच्छी फिल्में आ चुकी हैं। उनके बरक्स 'डर एट द मॉल' बचकाना प्रयास लगती है। प्रमुख कलाकारों का परफॉर्मेस निंदनीय है। इसके जिम्मेदार निर्देशक हैं।
अवधि- 124 मिनट