फिल्म रिव्यू: अकीरा - सिर्फ एक्शन नहीं है (3 स्टार)
अकीरा भ्रष्ट पुलिस सिस्टम में अनजाने में फंस जाने वाली एक लड़की के ईदगिर्द बुनी गई कहानी है। अन्याय के खिलाफ लड़ी लड़ाई उसके बचपन को निगल जाती है। मगर वह हार नहीं मानती।
-स्मिता श्रीवास्तव
प्रमुख कलाकार- सोनाक्षी सिन्हा, कोंकणा सेन शर्मा और अनुराग कश्यप।
निर्देशक- एआर मुर्गोदास
संगीत निर्देशक- विशाल-शेखर
स्टार- 3 स्टार
अकीरा का संस्कृत में अर्थ होता है वह शक्ति जिसमें शालीनता हो। गजनी, हॉलीडे जैसे हिट फिल्म दे चुके ए आर मुर्गोदास की यह तीसरी हिंदी फिल्म है। उनकी फिल्में हीरो प्रधान होती हैं। उनमें एक्शन की भरपूर डोज होती है। अकीरा में भी एक्शन की भरभार है। हालांकि यह एक्शन हवा-हवाई नहीं है। इन्हें रियल फाइट की तरह रखा गया है। साथ ही यह न्याय प्रणाली की सुस्त चाल की ओर ध्यान इंगित करती है। न्याय में देरी इंसान की जिंदगी तबाह कर देती है और यह ताउम्र एक इंसान के लिए बदनुमा धब्बा भी बन जाती है। यह धब्बे चाहकर भी उसका पीछा नहीं छोड़ते। भले ही वह निर्दोष साबित हो।
अकीरा भ्रष्ट पुलिस सिस्टम में अनजाने में फंस जाने वाली एक लड़की के ईदगिर्द बुनी गई कहानी है। अन्याय के खिलाफ लड़ी लड़ाई उसके बचपन को निगल जाती है। मगर वह हार नहीं मानती। अपनी जिंदगी में पढक़र आगे बढ़ने का जज्बा रखती है। यह इंगित करती है लड़ी कोमल होती है लेकिन कमजोर नहीं। वह भी अन्याय के खिलाफ मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। फिल्म में लड़कियों पर होने वाले एसिड अटैक और उनके दुष्परिणाम उनके साथ होने वाली नाइंसाफी के खिलाफ झकझोरती भी है।
कहानी फ्लैशबैक से शुरू होती है। अकीरा के साथ और दो लोगों को पुलिसकर्मी सुनसान जगह पर एनकाउंटर के लिए लाते हैं। फिर कहानी अकीरा के बचपन में लौटती है। वह एक लड़ी पर एसिड अटैक होते देखती है। वह हमलावरों की शिनाख्त करती है। उसकी बहादुरी उसके लिए परेशानी बनती है। न्यायप्रणाली के लचर सिस्टम के कारण हमलावर छूट जाते हैं। अकीरा पर एसिड फेंकने की कोशिश होती है। आत्मरक्षा में यह एसिड अकीरा के हाथों लड़के पर गिर जाता है। निर्दोष साबित होने में उसे तीन साल लग जाते हैं। उसे बाल सुधार गृह में रहना पड़ता है। वहां से निकलने के बाद उसकी जिंदगी में बहुत बदलाव आ जाता है। मां के साथ आगे पढ़ाई के लिए मुंबई में हॉस्टल में रहने आती है। उधर, भ्रष्ट एसीपी राणे और अपने सहयोगियों साथ हाईवे पर होता है। तभी तेज रफ्तार से आई गाड़ी पत्थर से टकरा जाती है। वे गाड़ी में करोड़ों रुपये से भरा बैग पाते हैं। उनकी नियत डोल जाती है। एसीपी भ्रष्ट होने के साथ अय्याश भी होता है। उसकी यही अय्याशी उसे मुसीबत में डालती है। वह उससे जितना निकलना चाहता है उतना फंसता जाता है। इसी फेर में अकीरा फंस जाती है।
पुलिस ताकत के दुरुपयोग की यह बानगी फिल्मों में नई नहीं है। पहले भी कई फिल्में सिस्टम के लिए मुखर आवाज बनी है। भ्रष्ट अधिकारी खुद को बचाने के लिए किस प्रकार के पैंतरे इस्तेमाल करते हैं उसे रोचक तरीके से दिखाया है। वहीं ईमानदार अधिकारी की मुश्किलें और उनका किस प्रकार मजाक उड़ाया जाता है उस पर भी तंज है। यह लड़कियों को आत्मरक्षा के गुण सीखने को भी प्रेरित करती है। कहानी सधी हुई कथा के साथ आगे बढ़ती है। जबरन किसी आइटम सॉन्ग को ठूसने की कोशिश नहीं की गई। भ्रष्टाचार बिना मिलीभगत नहीं होता। अपनी गलतियों को छुपाने के लिए दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। यहां पर इन खामियों को बखूबी दर्शाया है। फिल्मों में कुछ घिसे-पिटे सीन इस्तेमाल किए गए हैं। मसलन अकीरा को मेंटल हॉस्पिटल भेजना और उसका वहां से भागना।
बहरहाल, सोनाक्षी सिन्हा की अदाकारी इस परतदार फिल्म को ऊंचाइयों पर ले जाती है। सोनाक्षी अभी तक वह चुलबुली लड़की के किरदार में दिखी है। इसमें वह शांत और संयत दिखी है। उनका एक्शन अवतार भी देखने को मिला है। उसके लिए उन्होंने भरसक मेहनत भी की है। एक्शन सीन करते हुए वह सधी हुई नजर आती हैं। हालांकि उनके भावपूर्ण दृश्य द्रवित नहीं करते हैं। भ्रष्ट एसीपी अधिकारी की भूमिका में अनुराग कश्यप हैं। वह कहीं-कहीं भावहीन नजर आते हैं। उनके खाते में एक्शन सीन नहीं हैं। संवादों के माध्यम से उन्हें कहीं-कहीं कॉमेडी का मौका मिला है। गर्भवती पुलिस अधिकारी की भूमिका में कोंकणा सेन शर्मा ने अच्छा काम किया है। कुमार और मनोज मुंतजार के लिखे गीत प्रभावित करते हैं। विशाल और शेखर का बैकग्राउंड संगीत उसे कर्णप्रिय बनाते हैं।
अवधि- 138 मिनट