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किसको दिखाऊं यह कामयाबी: शाहरुख खान

मुझे अपने समकालीनों और दोस्तों से ईष्र्या होती है। वे अपनी उपलब्धियों को मां-बाप के साथ शेयर कर सकते हैं। मैं किसे जाकर बताऊं कि मैंने क्या-क्या हासिल किया.. अपनी तमाम कामयाबी और उपलब्धियों के बावजूद मैं अपने माता-पिता की कमी पूरी नहीं कर सकता। उन्होंने कुछ भी तो नहीं देखा। मेरे पिता मेरे सबसे अच्छ

By Edited By: Published: Sun, 16 Jun 2013 04:42 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jun 2013 04:47 PM (IST)
किसको दिखाऊं यह कामयाबी: शाहरुख खान

मुंबई। मुझे अपने समकालीनों और दोस्तों से ईष्र्या होती है। वे अपनी उपलब्धियों को मां-बाप के साथ शेयर कर सकते हैं। मैं किसे जाकर बताऊं कि मैंने क्या-क्या हासिल किया..

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अपनी तमाम कामयाबी और उपलब्धियों के बावजूद मैं अपने माता-पिता की कमी पूरी नहीं कर सकता। उन्होंने कुछ भी तो नहीं देखा। मेरे पिता मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। मैंने अपने बच्चों के साथ वही दोस्ती निभाई है।

आज आर्यन और सुहाना मेरे सबसे करीबी दोस्त हैं। इस दुनिया में वे दोनों ही मुझे किसी भी बात पर डांट-फटकार सकते हैं। पिछले साल वानखेड़े स्टेडियम में जो घटना घटी, उसे लेकर सुहाना ने उसी समय मुझे डांटा। उसने कहा- तुम गलत थे। घर लौटा तो आर्यन गुस्से से उबल रहा था। उसने मिलते ही कहा यू वेयर रॉन्ग। तुम्हें कुछ कहना ही नहीं था। जब मैंने दलील देने की कोशिश की कि बेटे उन्होंने..उसने मेरी बात काट दी और कहा- शट अप। मैं उनकी संवेदना समझ सकता हूं। उनके लिए शाहरुख खान सिर्फ एक पिता और करीबी व्यक्ति है।

मेरे पिता ऐसे ही थे। जब कभी मैं कुछ नहीं कर पाता था या असफल रहता था तो वे कहते थे अरे, मैंने तो इतना भी नहीं किया था। तुम तो कितने इंटेलिजेंट हो, तुमने कोशिश तो की। मैं चाहता हूं कि लोग मेरी सफलताओं और असफलताओं के अलावा मेरी कोशिशों की भी गिनती करें।

मुझे अपने समकालीनों और दोस्तों से ईष्र्या होती है। वे अपनी उपलब्धियों को मां-बाप के साथ शेयर कर सकते हैं। मेरे पास ऐसा कोई नहीं है। मैं किसे जाकर बताऊं कि मैंने क्या-क्या हासिल किया। किसी और को कहूंगा तो वे इसे बड़बोलापन कहेंगे। मुझे पता ही नहीं चलता कि मेरे किसी काम से कौन सच्चे दिल से खुश होता है।

मेरे पिता मददगार स्वभाव के थे। घर में खुद कोई दिक्कत या कमी हो तो भी दूसरों की मदद करने से नहीं हिचकते थे। मैंने उनके इस गुण को अपनाया है। सुबह-सबेरे अखबार पढ़ता हूं, अगर लगता है कि किसी की मदद की जाए तो दफ्तर को निर्देश दे देता हूं। उन्हें यह हिदायत देता हूं कि किसी को यह न पता चले कि मदद कहां से आई है? मैं नहीं चाहता कि मेरी मदद से कोई कृतार्थ महसूस करे। एक बार किसी को पता चल गया था तो वह घर आ गया था। उस दिन जैसी शर्मिदगी मुझे कभी नहीं आई।

मेरे पिता ने हाथ में लिए काम से प्यार करना सिखाया था। वे कहते थे कि पूरी शिद्दत और ईमानदारी से काम करो तो परिणाम अच्छे मिलते हैं। मैंने इसे आजमाया है। बहुत सारे लोगों को मालूम नहीं है कि मैं अपनी फिल्मों के पारिश्रमिक तय नहीं करता। निर्माता-निर्देशक जो भी रकम दे देते हैं। उसे स्वीकार कर लेता हूं। पैसे कमाने के लिए मैं लोगों की शादियों में नाचता हूं। प्रोडक्ट इंडोर्समेंट करता हूं और भी दूसरे धंधों से पैसे कमा लेता हूं। फिल्मों को मैंने पेशा नहीं बनाया है।

मालूम नहीं आज मेरे पिता होते तो वे कितने खुश होते और मुझे क्या निर्देश या सलाह देते। ऐसा लगता है कि वे मेरे सामने या आस-पास नहीं है। वे जहां हैं वहीं से मुझे गाइड कर रहे हैं!

(जैसा अजय ब्रह्मंात्मज को बताया)

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