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'तमाशा' में सपनों को जीने का रास्ता दिखाएगा वेद - रणबीर कपूर

पिछली फिल्मों की कामयाबी-नाकामयाबी की बातों को पीछे छोड़ते हुए ‘तमाशा’ के लिए तैयार हैं रणबीर कपूर। ‘रॉकस्टार’ के बाद इम्तियाज अली के साथ अपने करियर की इस दूसरी फिल्म के बारे में उन्होंने बातचीत की अजय ब्रह्मात्मज से

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 15 Nov 2015 11:10 AM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2015 11:23 AM (IST)
'तमाशा' में सपनों को जीने का रास्ता दिखाएगा वेद - रणबीर कपूर

पिछली फिल्मों की कामयाबी-नाकामयाबी की बातों को पीछे छोड़ते हुए ‘तमाशा’ के लिए तैयार हैं रणबीर कपूर। ‘रॉकस्टार’ के बाद इम्तियाज अली के साथ अपने करियर की इस दूसरी फिल्म के बारे में उन्होंने बातचीत की अजय ब्रह्मात्मज से...

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‘तमाशा’ में अपने किरदार वेद वर्धन के बारे में कुछ बताएं। वह कौन है, कैसा है?
वेद आम बच्चों की तरह ही स्कूल जाता है। उसका दिमाग मैथ्स से ज्यादा किस्से-कहानियों में लगता है। उसके शहर में एक किस्सागो है, जो पैसे लेकर कहानियां सुनाता है। वेद कहानियां सुनने के लिए पैसे इधर-उधर से जमा करके उसके पास जाता है। वेद कहानियों की दुनिया में गुम होना पसंद करता है। बड़े होने पर देश के दूसरे बच्चों की तरह उस पर भी माता-पिता और समाज का दबाव बढ़ता है कि क्या बनना है। इंजीनियर या मार्केटिंग गुरु के प्रोटोटाइप में से एक चुनना है। इस फिल्म में इम्तियाज खुले तौर पर ये बताना चाह रहे हैं कि हम सभी रोबोट बन गए हैं। देखें तो हम सभी की जिंदगी में एक जोकर जरूर रहना चाहिए।

...लेकिन समाज और परिवार तो प्रोटोटाइप ही चाहता है?
बात तो सही है, इम्तियाज यही कह रहे हैं कि हमें अपने मन का काम करना चाहिए। माता-पिता या परिवार के दबाव में आकर बेमन से कुछ नहीं करना चाहिए। कोई चाहत दबी रह जाए तो हमारे अंदर कटुता भर जाएगी। वेद की जिंदगी ये बताती है कि अपने सपनों के पीछे ही चलना चाहिए। समाज के सपनों पर चलेंगे तो हम कहीं नहीं पहुंचेंगे।

वेद पूरी तरह से इम्तियाज की सोच का किरदार है। वह अपने रचयिता के बारे में क्या सोचता है? क्या वह खुश है अपने सर्जक से?
बिल्कुल, मैं कहूं तो इम्तियाज खुद ही वेद हैं। वेद के रास्तों से वे गुजर चुके हैं। यूं भी कह सकते हैं कि वेद का रास्ता इम्तियाज का चला हुआ है। मैं खुद एक फिल्मी परिवार से हूं। मेरे ऊपर कभी कोई दबाव नहीं रहा। मेरे माता-पिता मॉडर्न सोच के हैं। मुझे आर्थिक या पारिवारिक दबाव में नहीं रहना पड़ा। आम हिंदुस्तानी नौजवान बहुत दबाव में रहता है। इम्तियाज की ही जिंदगी देखें। वो तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। जमशेदपुर में पले-बढे़। वो एकदम से अपने घर में नहीं कह सके कि मुंबई जाकर फिल्मों में कोशिश करेंगे। कोई जरिया नहीं था। उनकी और वेद की जिंदगी में अनेक समानताएं हैं। ऐसे और भी लोग मिल सकते हैं। जिंदगी की जद्दोजहद में हम भूल जाते हैं कि हम कौन हैं। कभी कोई दोस्त हमें याद दिलाता है कि हम कोई और हैं। उस और को हम समय रहते पहचान लें तो खिल उठेंगे।

वेद की अपनी पहचान क्या है?
वह शिमला का है। उसके पूर्वज विभाजन के समय पेशावर से आए थे। किस्सागोई का रिवाज उसके परिवार में रहा है। उसके दादा ने सब कुछ भूल कर परिवार को पाला है। वेद के पिता भी पारिवारिक पेशे में ही रहते हैं। जब वेद की बारी आती है तो वेद से भी यही उम्मीद की जाती है। वेद के पिता सोचते हैं कि दादाजी ने ही तो परिवार को संभाला। अगर उस समय वे बांसुरी बजाने लगते तो क्या होता? सभी सड़क पर आ जाते। जिंदगी अपनी मर्जी से नहीं चलती। अपनी ख्वाहिशों को मारना होता है। वेद सब समझता है, पर जब तारा उसकी जिंदगी में आती है और झंझोड़ती है तब उसे लगता है कि जिंदगी में कुछ और करना है।

क्या यह भी ‘रॉकस्टार’ की तरह इंटेंस फिल्म है?
ना-ना, ये हल्की-फुल्की फिल्म है। लव स्टोरी है। एक सोशल मैसेज भी है। मैसेज ये है कि अपने मन का काम करो। इमोशनल स्टोरी है। मैं कहूंगा कि इसमें सोशल कन्वर्सेशन है।

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आप फिल्म कैसे चुनते हैं?
इम्तियाज की फिल्में सही जगह से आती हैं, ईमानदार होती हैं। वो हिंदी बेल्ट के मूल्यों को जानते हैं। उनकी फिल्मों में अपने समाज की तकलीफ जाहिर होती है। इम्तियाज मध्यवर्गीय युवकों की भावनाओं को स्वर देते हैं। मुझे उनके साथ इसे समझने और दिखाने में अच्छा लगता है। इम्तियाज इस फिल्म के जरिए याद दिला रहे हैं कि अभी भी वक्त है। दुनिया बदल चुकी है। आप अपनी मर्जी का पेशा चुन सकते हैं। सपनों को दबाएं नहीं, कोशिश जरूर करें। यह हिंदी मसाला फिल्म है लेकिन एक संदेश भी है। मुमकिन है कि हमारी फिल्म से किसी की लाइफ बदल जाए।

क्या वेद से आप जुड़ाव महसूस करते हैं?
फिल्म शुरू करने के पहले ही इम्तियाज ने साफ कहा था कि मुझे रणबीर कपूर नहीं चाहिए। साधारण युवक चाहिए, जिसका आत्मविश्वास हिला हुआ है। वेद हीरो नहीं है। वह देश का एक साधारण युवक है। मुझे औसत युवक दिखना था। अगर ग्रुप में मेरी तस्वीर ली जाए तो कोई पहचान भी न पाए।

क्या आप ने हाल-फिलहाल में देश के साधारण नागरिक जैसा कोई काम किया है?
मेरी जिंदगी साधारण ही है। मेरे लिए अपनी जिंदगी ही कॉमन है। मैं वह सब कुछ करता हूं, जो मेरी उम्र के युवक करते हैं। फिल्मों में आने के पहले ये जिंदगी जी है। अमेरिका में पढ़ाई के समय साधारण ही था। मैंने अनुभव के लिए गरीबी नहीं ओढ़ी है।

क्या आप पर्स लेकर चलते हैं और अपनी जरूरतों के लिए पैसे खर्च करते हैं?
हां, पर्स रहता है मेरे पास। नगद पैसे भी रहते हैं!

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