पैसा तो जरूरी है: फराह खान
हैप्पी न्यू इयर' की सफलता से उत्साहित फराह खान को फर्क नहीं पड़ता कि आलोचक उनके बारे में क्या कहते हैं, उन्हें सिर्फ दर्शकों की पसंद से मतलब है...फराह खान देश की पहली महिला निर्देशक हैं जिनकी फिल्म ने रिलीज के महज पांच दिन के भीतर सौ करोड़ की कमाई
हैप्पी न्यू इयर' की सफलता से उत्साहित फराह खान को फर्क नहीं पड़ता कि आलोचक उनके बारे में क्या कहते हैं, उन्हें सिर्फ दर्शकों की पसंद से मतलब है...
फराह खान देश की पहली महिला निर्देशक हैं जिनकी फिल्म ने रिलीज के महज पांच दिन के भीतर सौ करोड़ की कमाई की। अपनी इस कामयाबी से वह काफी पुलकित हैं। फराह स्वीकारती हैं कि उन पर एक खास तरह की फिल्म बनाने को लेकर दबाव रहता है। वह कहती हैं, 'पुरुष निर्देशक अपनी मर्जी के मुताबिक कुछ भी बना सकता है, पर मुझ पर खास तरह की फिल्म बनाने का ही दबाव रहता है। शायद इसलिए, क्योंकि मैं महिला हूं।'
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इसके बावजूद फराह उन लोगों में से हैं, जो क्रिटिक्स की परवाह नहीं करतीं, बल्कि दर्शकों के लिए फिल्म बनाती हैं। वह कहती हैं, 'मुझे हल्की-फुल्की फिल्में देखना पसंद जरूर है, लेकिन बनाना नहीं। करोड़ों लोगों को अपनी फिल्म से खुश करना खुद में एक कला है। जब मैंने अपनी पहली फिल्म 'मैं हूं न' बनाई, तो कुछ लोगों ने उसकी आलोचना की। बाद में उसे दर्शकों का भरपूर प्यार मिला, इसलिए दर्शकों से बड़ा कोई नहीं है। मेरी फिल्में क्रिटिक्स के लिए नहीं, उन लोगों के लिए होती हैं जो पैसे खर्च करके इसे देखने आते हैं और हिट बनाते हैं।'
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फराह ने शुरुआती दौर में काफी संघर्ष किया था। अब वह सफलता के मुकाम पर हैं। क्या पैसा आने से खुशी का अहसास होता है? पूछने पर फराह कहती हैं, 'हम गरीब परिवार से थे। जब मेरे पिता का निधन हुआ था तब महज 30 रुपए उनकी जेब में थे। उन पर काफी कर्ज था। उस समय मैं 18 और साजिद 14 साल के थे। मुझे पिता के अंतिम संस्कार के लिए पैसे एकत्र करने पड़े थे। साजिद और मुझे उनका कर्ज उतारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी थी। मैं अभी भी पैसों और अपने परिवार को लेकर चिंतित रहती हूं। जानती हूं कि असुरक्षा की यह भावना मुझमें कायम रहेगी। मैं टीवी शो भी पैसों के लिए करती हूं। लेकिन हां, मैं इसके लिए क्रिएटिविटी से मझौता भी नहीं करती। पैसों के लिए मैंने सिर्फ एक फिल्म 'तीस मार खां' बनाई थी। यहां तक कि जब हम कठिनाई के दौर से गुजर रहे थे और मैं बतौर कोरियोग्राफर काम कर रही थी, तब भी पैसों को देखकर फालतू का काम नहीं करती थी।'