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मंजिल पाने के लिए पैशन होना चाहिए, डेस्परेशन नहीं - कृति सैनन

अपनी पहली फिल्म ‘हीरोपंती’ से गहरी छाप छोड़ी कृति सैनन ने। अब ‘दिलवाले’ में वे वरुण धवन के ऑपोजिट हैं और इसके बाद नजर आएंगी सुशांत सिंह राजपूत के संग

By Monika SharmaEdited By: Published: Sun, 06 Dec 2015 08:36 AM (IST)Updated: Sun, 06 Dec 2015 11:36 AM (IST)
मंजिल पाने के लिए पैशन होना चाहिए, डेस्परेशन नहीं - कृति सैनन

अपनी पहली फिल्म ‘हीरोपंती’ से गहरी छाप छोड़ी कृति सैनन ने। अब ‘दिलवाले’ में वे वरुण धवन के ऑपोजिट हैं और इसके बाद नजर आएंगी सुशांत सिंह राजपूत के संग...

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‘हीरोपंती’ से लेकर अब तक का सफर सपने सरीखा तो नहीं लग रहा है?
कभी-कभार ऐसा ही लगता है। खासकर अवॉर्ड समारोहों के दौरान। मैं हर साल टीवी पर अवॉर्ड शो देखती थी और आज उन्हीं का हिस्सा हूं। जिन लोगों को टीवी पर देखती थी, अब उन्हीं के साथ बैठती हूं। मेरा फिल्मी बैकग्राउंड नहीं है, तो समारोहों की चमक-दमक को सहज रूप से लेने में दिक्कत हुई। मैं यही सोचती हूं कि यह सब इतनी जल्दी कैसे हुआ। ‘हीरोपंती’ डेढ़ साल पहले आई थी। अब ‘दिलवाले’ जैसी बड़ी फिल्म रिलीज हो रही है। समय को मानो पंख लग गए हैं।

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रोहित शेट्टी के संग काम करने का अनुभव बताएं?
रोहित सर के साथ मैं हमेशा से काम करना चाहती थी। मुझे उनकी फिल्मों से प्यार है। उनकी अपनी अलग दुनिया है। वे बाहर से जितने सख्त दिखते हैं, अंदर से उतने ही नर्म हैं। ईमानदारी व सबका खयाल रखने का भाव उनमें बहुत है। ऐसे निर्देशक कम ही होंगे, जो सड़क पर भाग-भागकर काम करें। साथ ही खुद स्टंट करें। वे यूनिट के हर सदस्य का ध्यान रखते हैं। वे सबके साथ हंसी-मजाक करते हैं। बहुत मजा आया उनके साथ काम करके।

शाहरुख खान से क्या सीखने को मिला?
शाहरुख सर काफी रिहर्सल करते हैं। वह भी अपने को-एक्टर के साथ। वे हर बारीकी का खास ख्याल रखते हैं। एक सीन में उन्हें अपने हाथों से काजोल मैम को सी-ऑफ करना था। उन्हें यूं ही महसूस हुआ कि क्लोज शॉट लिया जा रहा है तो उन्होंने अपने हाथ झट से ऊपर कर लिए। हमारे दिमाग में ये बातें नहीं आती हैं। अभ्यास करने के बाद अपना सुझाव देते हैं। हम कोई सीन कर रहे हैैं या अभ्यास कर रहे हैैं तो वे बीच में हमें टोक कर बता देते हैं कि ऐसे नहीं, ऐसे ज्यादा ठीक लगेगा।

...और काजोल भी उसी तरह प्रिपेयर करती हैं?
उनका तरीका अलग है। वे हर चीज पर तुरंत प्रतिक्रिया देती हैैं। उनकी आंखें बोलती हैं। वे सीन को फील कर अदाकारी करती हैं। बहुत एनर्जी है उनमें, जो सामने वाले में भी आ जाती है। फिल्म में मेरा पहला सीन उनके संग ही शुरू हुआ। उससे पहले मैैंने उनके साथ बातचीत भी नहीं की थी। मुझे नहीं पता था कि वे कैसी प्रतिक्रिया देंगी। मैं काफी डरी हुई थी। मैं अपना डायलॉग बोल रही थी, पर थम जा रही थी। हम साथ में अभ्यास कर रहे थे। उन्होंने मुझे मेरा पार्ट करके दिखाया। इससे मेरा काम और बेहतर हो गया। वे दोनों सीनियर एक्टर हैं। ‘दिलवाले’ मेरे लिए टेक्स्ट बुक साबित हुई।

दो साल में दो ही फिल्में कीं, चूजी कहा जाए आपको?
मेरे पास काफी फिल्मों के ऑफर आए थे। मैैं चाहती तो थोक के भाव काम कर सकती थी, पर मैंने सही स्क्रिप्ट का इंतजार करना मुनासिब समझा। मेरा मानना है कि मंजिल पाने के लिए इंसान को पैशनेट होना चाहिए, डेसपेरेट नहीं, वरना मंजिल न मिलने पर बिखरने के आसार रहते हैं। मेरा भविष्य चुनी गई फिल्मों पर निर्भर करेगा। यही वजह रही कि जिस तरह मैंने डेब्यू फिल्म भी काफी सोच-विचार कर चुनी, वही ‘दिलवाले’ के संग किया।

बीच में ‘सिंह इज ब्लिंग’ भी आपको मिली थी, वह क्यों छोड़ी?
उसे छोड़ना नहीं कहेंगे। मैंने तो उसके लिए कथक व हॉर्स राइडिंग भी सीखनी शुरू कर दी थी। दरअसल उसकी शूटिंग साइन करने के चार-पांच महीने बाद भी नहीं शुरू हुई। तब तक ‘दिलवाले’ का ऑफर मिल गया। ऐसे में मैंने अश्विनी यार्डी से बात की और दिल पर पत्थर रख कर उस फिल्म को न कहा।

‘दिलवाले’ कैसे मिली?
मेरे साथ सब कुछ झटपट हो जाता है। ‘हीरोपंती’ की ऑडिशन देने वाले दिन ही पता चल गया था कि मैं फिल्म में हूं। ‘दिलवाले’ के लिए मुझे रोहित शेट्टी के ऑफिस से कॉल आया। मैं उनके ऑफिस गई। उनके राइटर युनूस सजावल ने मुझे नैरेशन दी। उसके बाद रोहित सर से मिली। मुझे दूसरे दिन ही उनके यहां से कन्फर्मेशन कॉल आ गया। उस समय यह सब एकदम से हो गया। कोई टेस्ट तक नहीं हुआ।

वरुण के संग क्या किरदार निभा रही हैं?
हमारी स्वीट सी लव स्टोरी है। मेरे किरदार का नाम इषिता है। वरुण वीर बने हैं। शाह रुख-काजोल की गंभीर किस्म की लव स्टोरी है। उनमें सात जन्मों के प्यार वाली बात है। इषिता-वीर का पहली नजर वाला प्यार है। हम दोनों की लव स्टोरी में इषिता की स्कूटी का भी मेजर रोल है। वीर गैराज मालिक है, जिसके यहां इषिता की खराब स्कूटी बार-बार आती रहती है। फिर दोनों में प्यार हो जाता है। वीर शाह रुख के छोटे भाई बने हैं। शाह रुख के किरदार का अतीत स्याह है, जिसके बारे में वीर-इषिता को कुछ नहीं मालूम। वह अतीत उनके प्यार में रोड़े अटकाता है।

आप मिडिल क्लास फैमिली से हैं। क्या परिजनों का पूरा साथ मिला?
मेरे माता-पिता मुझे लेकर परेशान थे। मेरे पिता जी की तो अलग ही परेशानी थी। उन्हें लगा कि अब मैं जल्दी शादी नहीं करूंगी। वैसे भी हर पिता अपनी बेटी को लेकर ज्यादा ही चितिंत रहते हैं। वे चाहते थे कि मैं सिंपल लाइफ जीऊं। मुंबई आने से पहले मैंने इंजीनियरिंग कर ली थी। जीमैट में स्कोर हासिल कर चुकी थी, जो पांच सालों तक वैलिड होता है। चूंकि मेरी कद-काठी अच्छी थी, तो स्कूल के दिनों से ही सब मुझे मॉडलिंग में ट्राई करने को कहा करते थे। मुझे खुद-ब-खुद विज्ञापन फिल्में भी मिलने लगीं। फिर लगने लगा कि मैं अदाकारी कर सकती हूं। बहरहाल मैंने मम्मी-पापा से इस इंडस्ट्री को ज्वॉइन करने की ख्वाहिश जताई। इस पर वे डरे, क्योंकि हम बाहर से इंडस्ट्री के बारे में जो सुनते हैं, वह अच्छा नहीं होता है, पर विज्ञापन फिल्में व एक तेलुगू फिल्म करने के बावजूद मैं निरंतर अच्छे माक्र्स लाती रही। लिहाजा, परिजन आखिर में मान गए।

आप और सुशांत सिंह राजपूत ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ में एक साथ आ रहे हैैं?
अभी उसका कुछ तय नहीं हुआ है। तारीख की समस्या है। वह फिल्म आगे जा सकती है। जिस तारीख में वे शूट करना चाहते हैं, उसे मैं फिगर कर रही हूं। तभी मैंने फिल्म अंतिम रूप से साइन नहीं की है। हालांकि चेतन भगत की इस बुक का लॉन्च मैंने ही किया था। मुझे यह कहानी पसंद है। स्क्रिप्ट पर मैं काम करना चाहती हूं लेकिन कई और चीजें हैंं, जिन्हें मुझे देखना है।

अमित कर्ण/प्राची दीक्षित

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