Interview: धुन में अपनी चली 'लव गेम्स' की पत्रलेखा
‘सिटीलाइट्स’ में ग्रामीण महिला की भूमिका निभाने वाली पत्रलेखा, विक्रम भट्ट निर्देशित फिल्म ‘लव गेम्स’ में नजर आएंगी। उन्होंने विस्तार से बात की अजय ब्रह्मात्मज से...
हंसल मेहता निर्देशित ‘सिटीलाइट्स’ में राजस्थान की ग्रामीण महिला की भूमिका निभाने वाली पत्रलेखा अब विक्रम भट्ट निर्देशित फिल्म ‘लव गेम्स’ में एक शहरी लड़की के अवतार में हैं। उन्होंने विस्तार से बात की अजय ब्रह्मात्मज से...
अपने परिवार के बारे में बताएं?
मैं शिलांग से हूं। मेरे बचपन में शिलांग में हिंदी फिल्में इतनी नहीं आती थीं। उस समय मेरे आसपास के लोग अंग्रेजी फिल्में देखना ज्यादा पसंद करते थे। मेरी मां एक घरेलू महिला हैं, उन्हें हिंदी फिल्में देखने में बड़ा मजा आता था। मैं उनके साथ बैठकर हिंदी फिल्में देखा करती थी।
सिनेमा से आपका कैसे सामना हुआ?
मैं जब शिलांग में थी तो मुझे कहा जाता था कि अच्छे से पढ़ाई करो। पर मुझे बाहर खेलना अच्छा लगता था। फिर माता-पिता ने फैसला किया कि वे मुझे बोर्डिंग स्कूल भेज देंगे। उस स्कूल में मुझ पर पढ़ाई का दबाव नहीं डाला जाता था। वहां मैंने कल्चरल एक्टिविटीज में हिस्सा लेना शुरू किया। मेरे माता-पिता को समझ में आ गया कि पढ़ाई इसके बस की बात नहीं। मैं फिर बोर्डिंग में बंगलुरू आ गई। वहां आकर मैंने सिटी लाइफ देखी।
फिल्मों का सिलसिला कैसे बना?
मैं अपनी धुन में ही चलती रही। कॉलेज में मेरा एक दोस्त कास्टिंग डायरेक्टर था। मैंने उससे कहा कि मुझे एक्टिंग करनी है। आप मुझे एड के लिए कास्ट कर दो। बी.आर. चोपड़ा प्रोडक्शन हाउस के लिए मैंने पहला टीवी एड किया। कई छोटे और बड़े टीवी एड किए। मगर इन पर किसी की नजर नहीं गई। फिर मैंने एक मोबाइल कंपनी का एड किया, मैं अपनी धुन में ही चलती रही। कॉलेज में मेरा एक दोस्त कास्टिंग डायरेक्टर था। मैंने उससे कहा कि मुझे एक्टिंग करनी है। आप मुझे एड के लिए कास्ट कर दो। बी.आर. चोपड़ा प्रोडक्शन हाउस के लिए मैंने पहला टीवी एड किया। कई छोटे और बड़े टीवी एड किए। मगर इन पर किसी की नजर नहीं गई। फिर मैंने एक मोबाइल कंपनी का एड किया, वह बहुत चर्चित हुआ। मैंने ‘रागिनी एमएमएस’ के लिए जीवन का पहला फिल्मी ऑडिशन दिया। फाइनल तक पहुंच गई लेकिन सलेक्शन नहीं हो पाया। खुद को निखारने के लिए मैंने बैरी जॉन के साथ तीन महीने का कोर्स किया। वहां मैंने बहुत कुछ सीखा।
‘सिटीलाइट्स’ के लिए चुनाव कैसे हुआ?
पहले इसका निर्देशन अजय बहल कर रहे थे। मैं उनसे मिली थी। मैंने ऑडिशन भी किया था। हंसल मेहता आए तो उन्हें मेरा ऑडिशन पसंद नहीं आया। मैंने हंसल सर को फोन किया कि मुझे यह फिल्म करनी है। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि तुम अर्बन लड़की की तरह हो। हमें गरीब घर की लड़की चाहिए। पर फिर से ऑडिशन हुआ तो अचानक कुछ अच्छा हो गया और मैं चुन ली गई।
...तो कैसा रहा आपका अब तक का लाइफ और सिनेमा का अनुभव?
सिनेमा की सबसे बड़ी खूबी मेरे लिए यही है कि मैं किसी और दुनिया में चली जाती हूं। पत्रलेखा की चिंताएं, सपने, परिवार की समस्याएं सिनेमा में जाते ही खत्म हो जाती हैं। मुझे कुछ याद ही नहीं रहता है। सिनेमा के न रहने पर मेरी लाइफ में सारी समस्याएं सामने आ जाती हैं।
‘लव गेम्स’ के पहले क्या चिंताएं थी? यह फिल्म कैसे मिली?
‘सिटी लाइट्स’ के बाद मुझे तीन-चार फिल्में मिलीं। मैं कोई फैसला नहीं कर पा रही थी। सात महीने बीत गए। मैं भट्ट साहब के पास गई। भट्ट साहब ने कहा कि विक्रम फिल्म बना रहा है। जाकर उनसे मिल लो। विक्रम सर ने कहा कि मैं अलग तरह की फिल्म बना रहा हूं। एक काम करो, तुम एक फोटोशूट करके आओ। मैंने तुम्हें उस अवतार में देखा नहीं है। मैंने ग्लैमरस फोटोशूट करवाया। विक्रम सर ने फोटो देखा और एक दिन बाद फोन किया कि तुम हमारी फिल्म कर रही हो।
इस फिल्म में कैसा किरदार निभा रही हैं?
मेरा किरदार बहुत ही स्ट्रांग है। पहनावा और सोच एकदम अलग है। रमोना हाई सोसाइटी की लड़की है। वह लाइफ अपनी शर्तों पर जीती है। उसे तीन चीजें पसंद है। लव गेम खेलना, जीतना और कोकिन। उसके मन मुताबिक कुछ न हो तो वह छोड़ती नहीं है। वह विनर है। हर चीज अपने नजरिए से देखना चाहती है। उसके लिए कुछ भी सही या गलत नहीं है।
रमोना और पत्रलेखा तो बिल्कुल अलग हैं। ‘सिटी लाइट्स’ की राखी भी अलग थी। रमोना को निभाना राखी जितना ही कठिन था या उससे ज्यादा?
रमोना राखी से ज्यादा कठिन है। राखी के पास दिल था। वह जो कर रही थी, अपने परिवार के लिए कर रही थी। रमोना के पास दिल ही नहीं है, वह सिर्फ अपने बारे में ही सोचती है।