जीवन सरीखा है थिएटर - अनंत महादेवन
एक्टर, स्क्रिप्टराइटर, फिल्म डायरेक्टर अनंत महादेवन छोटी उम्र से ही स्टेज पर अभिनय करते आ रहे हैं। सिनेमा और थियेटर में एक्सपेरिमेंट के महारथी कहलाने वाले अनंत नाटकों में अभिनय का मोह क्यों छोड़ नहीं पाते हैं
एक्टर, स्क्रिप्टराइटर, फिल्म डायरेक्टर अनंत महादेवन छोटी उम्र से ही स्टेज पर अभिनय करते आ रहे हैं। सिनेमा और थियेटर में एक्सपेरिमेंट के महारथी कहलाने वाले अनंत नाटकों में अभिनय का मोह क्यों छोड़ नहीं पाते हैं...
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आप कई गंभीर मसलों पर सिनेमा बना चुके हैं और पुरस्कृत हुए। फिर भी थियेटर एक्टिंग का मोह क्यों छोड़ नहीं पाते हैं?
सभी क्रिएटिव एक्टिविटीज को प्रारंभिक शिक्षा थियेटर ही देता है। टेलीविजन और सिनेमा के साथ संगत होने के बावजूद थियेटर एक सशक्त माध्यम है, जिसे कलाकार उपेक्षित नहीं कर सकते हैं। थियेटर से मैं 35 सालों से जुड़ा हुआ हूं, लेकिन आज भी जब मुझे इसके लिए लाइव परफॉर्मेंस देना होता है, तो यह मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं होता है।
‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ में आपका किस तरह का रोल है?
‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ नाटक में पारंपरिक शादियों के पैमाने पर मजाक उड़ाया गया है। मैं दुल्हन के पिता के रोल में हूं, जो बेटी की अपनी शादी की तैयारियों के तामझाम पर चकित है।
थियेटर, टेलीविजन, सिनेमा, इन तीनों के लिए आगे आपकी क्या योजना है?
भारत और विदेश में मैं स्टेज पर और कई नाटकों को प्ले करना चाहता हूं। फिल्मों में मैं एक्सक्लूसिव रोल करना जारी रखूंगा, ताकि भारतीय सिनेमा की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो। दुर्भाग्य से टीवी निष्क्रिय हो गया है, जिसकी मरम्मत मुश्किल है।
फिल्मों में कई तरह के प्रयोग के आइडियाज कहां से आते हैं? क्या नाटकों के लिए भी इस तरह का प्रयोग करते हैं?
फिल्ममेकर के रूप में मैं हमेशा चैलेंजिंग सब्जेक्ट्स की तलाश में रहता हूं। थियेटर में भी एक्टर के रूप में लगातार एक्सपेरिमेंट करता रहा हूं। शेक्सपियर, बादल सरकार, विजय तेंदुलकर, मोहन राकेश और आर्थर मिलर के लिखे नाटकों के अभिनय में मैंने खूब प्रयोग किए हैं।
बचपन से स्टेज एक्टिंग के प्रति प्रेम किस तरह जगा?
थियेटर के लिए मेरा प्रेम जन्मजात है। स्कूल-कॉलेज में मैं नाटकों में अभिनय का शौकीन था। आगे प्रोफेशनल स्टेज पर मैं अभिनय कर रहा हूं। मेरे लिए यह माध्यम एक चुंबक की तरह काम करता है। परिवार का कोई भी सदस्य थियेटर से अटैच्ड नहीं था। यह मेरे लिए दुर्भाग्य की बात थी। इससे मुझे छोटी उम्र में ही बेहतर एक्सपोजर मिल पाता।
पहले और अब में क्या अंतर पाते हैं?
थियेटर हमेशा क्लासिकल, एक्सपेरिमेंटल और मॉडर्न तीनों रहे हैं। मैंने तीनों के लिए काम किया है। मैंने इंस्पेक्टर जनरल, गूगल प्ले में नौटंकी स्टाइल में आला अफसर बनकर स्टेज पर लाइव गाया और डांस किया है। मैं ‘हेमलेट’ का पोलोनियस बना हूं और मॉडर्न इंग्लिश थियेटर की तरह ‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ कर रहा हूं। हर बार अगर कोई डायरेक्टर थियेटर के लिए नया और रोचक करने की कोशिश करता है, तो मैं खुद ब खुद उसकी ओर आकर्षित हो जाता हूं।
विजय तेंदुलकर, मोहन राकेश जैसे बड़े नामों के साथ काम करने के कुछ खास अनुभव बताएं?
मैंने विजय तेंदुलकर और मोहन राकेश के लिखे नाटकों पर एक्टिंग की है। मैं जब तेंदुलकर के नाटकों-‘खामोश अदालत जारी है’, ‘अंजी’, ‘कमला’ और ‘जात ही पूछो साधू की’ में काम कर रहा था, तो उनसे बातचीत करने का मौका मिला था। वे नाटक के महान प्रतिनिधि थे। इतनी छोटी उम्र में वह अनुभव मेरे लिए एक सीख के समान था।
दूरदर्शन के जमाने के सीरियल और इन दिनों के सीरियल में कितना अंतर आ गया है?
दूरदर्शन पर वैसे सीरियल दिखाए जाते थे, जिसे बासु चटर्जी, बी आर चोपड़ा, ऋषिकेश मुखर्जी, सई परांजपे, सईद मिर्जा, कुंदन शाह, एम एस सथ्यू जैसे गंभीर फिल्म मेकर्स बनाते थे। आज यह काम एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर्स के हाथों में है, जिन्हें कोई आइडिया नहीं है। वे सिर्फ अपनी सैलरी और पैसे बचाने के जुगाड़ में लगे रहते हैं। टेलीविजन इन दिनों अपने निम्नतम स्तर पर है।
थियेटर, टेलीविजन, सिनेमा, इन तीन विधाओं में सबसे बढ़िया कौन लगता है?
तीनों मीडिया आकर्षक हैं। टेलीविजन जिंदगी के सामने छोटा है। फिल्म लार्जर दैन लाइफ है और थियेटर जीवन सरीखा है।
क्या आपको लगता है कि कुछ और हासिल करना बाकी है?
मैं ताउम्र लर्नर ही बना रहना चाहता हूं। जो मुकाम थियेटर और सिनेमा के नामचीन लोग बना चुके हैं, मैं जब तक उन ऊंचाइयों को छू नहीं लेता हूं, तब तक मैं संतुष्ट नहीं हो सकता। अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है।
एक वाक्य में खुद को परिभाषित करें?
एक बढ़िया स्टूडेंट।
स्मिता
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