बेटी की जुबानी, जोहरा सहगल के वो यादगार लम्हें...
प्रख्यात अभिनेत्री जोहरा सहगल ने कल 102 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। जोहरा की भारतीय सिनेमा से जुड़ी तमाम यादें हैं,
नई दिल्ली। प्रख्यात अभिनेत्री जोहरा सहगल ने कल 102 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। जोहरा की भारतीय सिनेमा से जुड़ी तमाम यादें हैं, लेकिन हम आपके साथ उनकी बेटी किरण सहगल की जुबानी मां से जुड़े कुछ यादगार लम्हें साझा कर रहे हैं। यह बातें किरण सहगल ने पिछले साल हमारे साथ साझा की थीं।
बात तब की है, जब मैं 12 साल की थी। मैं हमेशा की तरह घर पर अकेली थी। दोस्त (मैं अपने पिताजी को दोस्त कहती थी) और मां हमेशा काम में व्यस्त रहते थे। मेरे कुछ साथी आए और उन्होंने मुझसे पिक्चर देखने के लिए चलने को कहा। मैंने उनसे कहा कि मां घर पर नहीं हैं और मैं नहीं आ सकती। लेकिन वो जिद करने लगे तो मुझे मानना पड़ा। खैर, डरते-डरते हम बॉम्बे टॉकीज में फिल्म देखने चल पड़े। उस वक्त बस से आना-जाना होता था। लौटते में बस स्टॉप पर जैसे ही बस रुकी, हम उतरने लगे। चढ़ने वाली लाइन की तरफ देखते ही मेरे होश फाख्ता हो गए। लाइन में मां खड़ी थी! मां मुझे देखते ही बोलीं, 'यहां कैसे? किससे पूछकर घर से निकली? चल, वापस अंदर चल।' हम पिक्चर देख तो आए लेकिन मां ने जो डांट लगाई, वह आज तक भूली नहीं हूँ।
शूटिंग तो बोरिंग है
हमारा बचपन थिएटर के बीच बीता है। मेरा रुझान कभी अभिनय की तरफ नहीं रहा। मां की वजह से ही मैंने नृत्य सीखा और आज मेरी गिनती ओडिसी नृत्यांगनाओं में होती है। चीनी कम की शूटिंग के दौरान मैं उनके साथ जाती थी। शूटिंग में मैंने देखा, एक अभिनेता एक ही लाइन को बार-बार दोहरा रहा है। वह लाइन मुझे याद हो गई थी, लेकिन उसका रीटेक लेना खत्म नहीं हुआ। खैर, उसका शॉट पूरा हुआ तो दूसरा एक्टर रीटेक लेने में व्यस्त हो गया। जब मां की बारी आई, तो मां ने फटाफट अपने डायलॉग बोले और फिर हम घर चलने को हुए। मैंने मां से भी कहा कि 'सेट पर बैठना कितना बोरिंग है', तो मां ने कहा, 'इसलिए दर्शक मजे लेते हैं थिएटर में।' हम हंसते-हंसते अपने घर को चल दिए।
लाजवाब सेंस ऑफ ह्यूंमर
चीनी कम में मां के अभिनय को बहुत सराहा गया। एक दिन हमारे घर पर उनका इंटरव्यू लेने कुछ पत्रकार आए। मैं भी वहीं बैठी थी। मां का सेंस ऑफ ह्यूमर काफी अच्छा है। उनसे टीवी पत्रकार ने पूछा, 'आप कौन-कौन से रोल पसंद करती हैं?' मां ने पहले मेरी तरफ देखा। मैं समझ गई वह कुछ अटपटा बोलने वाली हैं। उन्होंने कहा, 'अरे भई, मेरी उम्र को देखकर मुझे मां और दादी मां के रोल ही तो मिलेंगे न! ऐसे सवाल पर मेरे लिए कहने को तुमने कुछ छोड़ा ही नहीं!'
पहनावे को लेकर सजग
मेरी मां आज भी अपने पहनावे पर उतना ही ध्यान देती हैं, जितना पहले देती थीं। हर शाम को वे अपनी अलमारी से कई सलवार सूट निकलवाती हैं और उनमें से एक पसंद करवाकर उसे चाव से पहनती हैं। उम्र की वजह से उन्हें काफी तकलीफें हो गई हैं, लेकिन फिर भी कपड़ों और गहनों को लेकर उनकी रुचि कम नहीं हुई है। शाम को उनका श्रृंगार शुरू होता है। मैचिंग का दुपट्टा, मैचिंग की चप्पल पहनना उन्हें आज भी पसंद है। लेकिन अब वे किसी से मिलना पसंद नहीं करती हैं। जब कोई फोन करता है तो उसे मना कर देती हैं, लेकिन अगर कोई बिना बताए पहुंच जाए तो उसे निराश भी नहीं करतीं!