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तनिष्ठा की ये फ़िल्म दिखाएगी भारत की पहली महिला डॉक्टर का संघर्ष

तनिष्ठा कहती हैं कि ये लाइफ़ स्टोरी पर्दे पर दिखाना ज़रूरी है। डॉक्टर रुक्माबाई फिलहाल फ़िल्म फेस्टिवल में दिखाई जा रही है। उसके बाद सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी।

By मनोज वशिष्ठEdited By: Published: Tue, 21 Feb 2017 05:30 PM (IST)Updated: Sun, 26 Feb 2017 01:56 PM (IST)
तनिष्ठा की ये फ़िल्म दिखाएगी भारत की पहली महिला डॉक्टर का संघर्ष
तनिष्ठा की ये फ़िल्म दिखाएगी भारत की पहली महिला डॉक्टर का संघर्ष

मुंबई। हिंदी सिनेमा में इस वक़्त Biopic Era चल रहा है। विद्या बालन से लेकर आमिर ख़ान तक बायोपिक फ़िल्मों के ज़रिए रियल लाइफ़ करेक्टर्स को पर्दे पर ला रहे हैं। तनिष्ठा चटर्जी भी एक बायोपिक फ़िल्म में लीड रोल निभा रही हैं, जो देश की पहली महिला डॉक्टर के संघर्ष को सिल्वर स्क्रीन पर लेकर आएगी।

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ये फ़िल्म डॉक्टर रुक्माबाई की ज़िंदगी पर आधारित है, जिन्हें भारत की पहली प्रैक्टिसिंग लेडी डॉक्टर माना जाता है। तनिष्ठा को इस किरदार में फिट होने से पहले काफी तैयारी करनी पड़ी है। ख़ासकर उन चुनौतियों के मद्देनज़र, जो डॉक्टर रुक्माबाई को फेस करनी पड़ी थीं। पीटीआई से हुई बातचीत में तनिष्ठा ने कहा- "वो इतिहास प्रसिद्ध हीरो की तरह हैं, जिन्हें भुला दिया गया। ये अफ़सोस की बात है कि कोई उन्हें नहीं जानता, लेकिन वो प्रैक्टिस करने वाली भारत की पहली महिला डॉक्टर हैं। जब मैंने उनकी बायोग्राफ़ी पढ़ी तो मैं हिल गई।''

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डॉक्टर रुक्माबाई को अनंत महादेवन ने डायरेक्ट किया है। डॉक्टर रुक्माबाई का रोल निभाना तनिष्ठा के लिए इसलिए भी चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि इसमें यंग एज से 91 साल का सफ़र है। इस रोल के लिए उन्हें कई भाषाएं भी सीखनी पड़ी हैं। तनिष्ठा बताती हैं- ''सिर्फ़ उम्र की बात नहीं थी, मुझे इसके लिए मराठी सीखनी पड़ी, क्योंकि फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ मराठी में है। जब वो छोटी होती हैं, तो मराठी बोलती हैं, जब वो मेडिसिन पढ़ने इंग्लैंड जाती हैं तो इंग्लिश बोलती हैं और वापस आकर जब गुजरात में हॉस्पिटल खोलती हैं तो गुजराती और हिंदी बोलती हैं। इसलिए सब भाषाओं पर काम करना पड़ा।''

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रुक्माबाई को शुरू में काफी संघर्ष करना पड़ा क्योंकि महिला होने की वजह से कोई उनके पास इलाज करवाने नहीं जाना चाहता था। उन्हें ऐसे कई सामाजिक प्रतिरोधों से लड़ना पड़ा और 90 साल की उम्र तक वो हर रोज़ अस्पताल जाती रहीं। 11 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी, लेकिन अपनी चाइल्ड मैरिज को उन्होंने स्वीकार नहीं किया।

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इसके लिए उन्होंने क़ानूनी लड़ाई लड़ी, जिसके बाद 1891 के कंसेंट एक्ट में 12 साल की उम्र को बदलकर 16 साल किया गया था। तनिष्ठा कहती हैं कि ये लाइफ़ स्टोरी पर्दे पर दिखाना ज़रूरी है। डॉक्टर रुक्माबाई फिलहाल फ़िल्म फेस्टिवल में दिखाई जा रही है। उसके बाद सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी।


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