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सरवन को मिली ये अंतर्राष्ट्रीय पहचान, न्यूयॉर्क फिल्म फेस्ट का बनी हिस्सा

फिल्म की कहानी एक ऐसे बेटे की कहानी है, जो बुरे राह पर चला जाता है और फिर वह अपने माता-पिता की जिंदगी में लौटने की कोशिश करता है।

By Rahul soniEdited By: Published: Mon, 20 Mar 2017 12:50 PM (IST)Updated: Mon, 20 Mar 2017 02:12 PM (IST)
सरवन को मिली ये अंतर्राष्ट्रीय पहचान, न्यूयॉर्क फिल्म फेस्ट का बनी हिस्सा
सरवन को मिली ये अंतर्राष्ट्रीय पहचान, न्यूयॉर्क फिल्म फेस्ट का बनी हिस्सा

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। करण गुलानी की फिल्म 'सरवन' 30 अप्रैल से 7 मई को होने वाले न्यू यॉर्क फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीन होने वाली है। यह पहली बार होगा, जब पंजाबी भाषा में बनी कोई फिल्म इस मुकाम तक पहुंची है। खास बात यह है कि इस फिल्म का निर्माण प्रियंका चोपड़ा ने किया है। फिल्म के निर्देशक करण इस बात से बेहद खुश हैं।

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करण इस फिल्म की जर्नी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वह प्रियंका से इस फिल्म के लिए मिलने नहीं गए थे। एक हिंदी फिल्म थी, जिसमें वह प्रियंका को कास्ट करना चाहते थे। उस वक्त प्रियंका ने करण को बताया कि अभी वह अपने हॉलीवुड के प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हैं। लेकिन संयोग यह रहा कि उन्होंने यह पूछ लिया कि करण अभी तुम क्या करोगे। करण ने उनसे अपनी इस पंजाबी फिल्म का जिक्र कर दिया। प्रियंका को फिल्म की कहानी बेहद पसंद आई और उन्होंने कहा कि वह यह फिल्म करेंगी और उसी दिन उन्होंने साइनिंग अमाउंट भी निकाल कर करण को दे दिया था। उस वक्त करण को यह नहीं पता था कि फिल्म को ऐसी कामयाबी मिलेगी।

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करण ने बताया कि इस फिल्म की कहानी ड्रग पर नहीं है, बस बैकड्रॉप ही है। फिल्म की कहानी एक ऐसे बेटे की कहानी है, जो बुरे राह पर चला जाता है और फिर वह अपने माता-पिता की जिंदगी में लौटने की कोशिश करता है। करण बताते हैं कि फिल्म की कहानी रियल इंसिडेंट्स से मिलती-जुलती है, जिसमें उन्होंने फिक्शन का इनपुट डाला है। कनाडा में एक जगह है, जहां काफी पंजाबी रहते हैं और सभी रईस पंजाबी ही हैं। सभी इस कदर पैसे के पीछे पागल हैं कि आपस में ही एक दूसरे को मारते रहते हैं। इस फिल्म का किरदार भी वहां मर्डर करके आया है और फिर पंजाब में आकर उसी घर में छुप जाता है, जिसके परिवारवालों की हत्या उन्होंने की है। फिर उसके बुरे होने से लेकर श्रवण कुमार बनने की कहानी है ये फिल्म।

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करण मानते हैं कि हम कई बार माता-पिता को टेकेन फॉर ग्रांटेड ले लेते हैं। लेकिन एक वक्त आता है, जब हमें रियलाइज होता है कि वह गलत है। उस वक्त देर हो जाती है। यह फिल्म कुछ ऐसे ही लोगों की है। करण ने यह भी बताया कि इस फिल्म की कहानी कहीं न कहीं उनकी जिंदगी के भी बेहद करीब है। करण की यह पहली फिल्म है और वे चाहते थे कि उनकी पहली फिल्म पंजाबी में ही बने। क्योंकि वह इस भाषा में काफी सहज थे और उन्हें लगता है कि पंजाब की भी ऐसी ही कहानियां हैं, जो दर्शकों तक पहुंचनी भी चाहिए।

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वे जल्द ही करण अब हिंदी फिल्मों की तरफ भी रुख कर रहे हैं। उन्होंने कई विज्ञापन और कुछ फिल्मों में बतौर असिस्टेंट भी काम किया है।


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