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बेमिसाल रहा है नूतन का सफ़र, इन सदाबहार गानों संग जानिए उनका पूरा सफ़र

साल 1990 में उन्हें ब्रेस्ट कैंसर का पता चला। जिसके साल भर बाद 21 फरवरी 1991 को अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी। इस तरह से सिनेमा के अध्याय का दुखद अंत हुआ।

By Hirendra JEdited By: Published: Wed, 21 Feb 2018 09:37 AM (IST)Updated: Thu, 22 Feb 2018 08:57 AM (IST)
बेमिसाल रहा है नूतन का सफ़र, इन सदाबहार गानों संग जानिए उनका पूरा सफ़र
बेमिसाल रहा है नूतन का सफ़र, इन सदाबहार गानों संग जानिए उनका पूरा सफ़र

मुंबई। रुपहले पर्दे पर अपनी सौम्य और सशक्त अभिनय से गहरी छाप छोड़ने वाली अभिनेत्री नूतन की आज पुण्यतिथि है। नूतन का दौर ब्लैक एंड व्हाईट फ़िल्मों का दौर था लेकिन, उन्होंने अपने अभिनय से बड़े पर्दे पर जो रंग भरा वो आज भी बेहद गहरा और चटक है!

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नूतन का जन्म मुंबई में ही 4 जून 1936 को एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक जाने-माने निर्देशक और कवि रहे हैं जबकि उनकी मां शोभना समर्थ एक जानी-मानी अभिनेत्री थीं। ज़ाहिर है परिवार में कला को लेकर एक माहौल उन्हें विरासत में मिला। पंचगनी के एक कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वो उच्च शिक्षा के लिए स्विटज़रलैंड चली गईं। जहां वो तकरीबन एक साल तक रहने के बाद देश लौट आईं। बाद में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा भी था कि विदेश में बिताये गए वो एक साल उनके जीवन का सबसे यादगार वर्ष था। बता दें कि विदेश जाने से पहले वो कुछ फ़िल्में कर चुकी थीं जो कामयाब नहीं हो पायी। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ से डेब्यू किया था!

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नूतन साल 1952 में मिस इंडिया पीजेंट भी चुनी गयी थीं। नूतन को पहला बड़ा ब्रेक साल 1955 में आई फ़िल्म ‘सीमा’ में मिला। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने पहला फ़िल्मफेयर अवार्ड भी जीता। यहां से उनकी कामयाबी को एक नया आसमान मिला। एक के बाद एक कई फ़िल्में जैसे-‘पेईंग गेस्ट’, ‘अनाड़ी’, ‘सुजाता’ हिट साबित हुईं। वाकई हिंदी सिनेमा को अपनी समर्थ हीरोइन मिल गयी थी। 

साल 1963 में आई फ़िल्म 'बंदिनी' भारतीय सिनेमा जगत में अपनी संपूर्णता के लिए सदा याद की जाएगी। फ़िल्म में नूतन के अभिनय को देखकर ऐसा लगा कि केवल उनका चेहरा ही नहीं बल्कि हाथ-पैर की अंगुलियां भी अभिनय कर सकती हैं। बिमल रॉय की ‘बंदिनी’ नूतन के कैरियर में एक मील की पत्थर की तरह है। इसके अलावा ‘छलिया’, ‘देवी’, ‘सरस्वतीचंद्र’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘सौदागर’ जैसी 70 से ज्यादा फ़िल्में करने वाली नूतन अपार कामयाबी पाने के बावजूद सादगी की एक मिसाल रही हैं।

नूतन ने अपने कैरियर के टॉप पर पहुंचने के बाद साल 1959 में नेवी के लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी कर ली थी। उनका बेटे मोहनीश बहल भी एक्टर बने। बहरहाल, शादी ही नहीं बल्कि बेटे के जन्म साल 1961 के बाद भी वो लगातार अवार्ड विनिंग फ़िल्में करती रहीं। आज की तारीख में कोई अभिनेत्री ऐसा सोच भी नहीं सकती। आम तौर पर ऐसा मान लिया गया है कि शादी और बच्चे के जन्म के बाद एक हीरोइन के लिए फ़िल्मी सफ़र आसान नहीं होता। हां, करीना कपूर ख़ान की तरह अपवाद हो सकते हैं लेकिन, ऐसे कितने नाम हैं जिनके कैरियर पर मां बनने के बाद ब्रेक लग गया।

सीमा’, ‘सुजाता’, बंदिनी’, ‘मिलन’ और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फ़िल्मफेयर अवार्ड जीत कर नूतन ने साबित कर दिया कि वो अपनी दौर की टॉप की अभिनेत्री हैं। साल 1985 ‘मेरी जंग’ के लिए उन्होंने फ़िल्मफेयर से बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड भी जीता। भारत सरकार से पद्मश्री समेत कई सम्मान पाने वाली नूतन को साधना से लेकर स्मिता पाटिल जैसी अभिनेत्रियां अपना रोल मॉडल मानती रही हैं। आज के समय के एक बड़े निर्देशक संजय लीला भंसाली ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वो नूतन की तरह सहज और करिश्माई अभिनेत्री नहीं बना सकते।

उनके फ़िल्मों के अलावा जो गाने उन पर फ़िल्माये गए वह भी यादगार हैं और आज तक गुनगुनाये जाते हैं।  'छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा', सावन का महीना', 'चन्दन सा बदन', फूल तुम्हें भेजा है खत में' ये सब गीत सुपरहिट्स में गिने जाते हैं। इस लिंक पर आप सुन सकते हैं नूतन के कुछ सदाबहार नगमें-

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साल 1990 में नूतन को ब्रेस्ट कैंसर का पता चला। जिसके साल भर बाद 21 फरवरी 1991 को अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी। इस तरह से सिनेमा के अध्याय का दुखद अंत हुआ। आज भी वो अपनी फ़िल्मों और अपने निभाये गए किरदारों से याद की जाती हैं।


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