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इमरजेंसी पर फिल्म बनाना कोई गुनाह है क्या - मधुर भंडारकर

निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार 28 जुलाई को रिलीज़ हो रही है।

By Rahul soniEdited By: Published: Wed, 05 Jul 2017 06:43 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jul 2017 07:21 PM (IST)
इमरजेंसी पर फिल्म बनाना कोई गुनाह है क्या - मधुर भंडारकर
इमरजेंसी पर फिल्म बनाना कोई गुनाह है क्या - मधुर भंडारकर

मुंबई। मधुर भंडारकर मसाला फिल्मों वाले मेकर नहीं हैं लेकिन हर बार कोई ऐसा मसाला जरूर ढूंढ कर लाते हैं जिससे कभी फिल्म की जमकर चर्चा होती है तो कभी बवाल। इस बात तो विषय आपातकाल की कहानी है और नाम इंदु सरकार रखा है। पर मधुर इस कहानी को किसी परिवार विशेष का हिस्सा नहीं मानते।

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जागरण डॉट कॉम से ख़ास बातचीत में उन्होंने कई सारी बातों पर सफाई दी। उनके साथ फिल्म में इंदु सरकार का किरदार निभा रहीं कीर्ति कुल्हरी भी मौजूद थीं। पढ़िए खास बातचीत - 

फिल्म की कहानी आपातकाल और इंदिरा गांधी से जुड़ी लगती है, क्या एेसा ही है?

मधुर- फिल्म की कहानी आपातकाल पर आधारित है, ये सही है लेकिन फिल्म में 70 फीसदी फिक्शन है और 30 फीसदी रियलिटी। वो भी मैनें खुद से नहीं सोची है। ये आपातकाल पर लिखी गईं किताबों में है और शाह कमीशन में लिखा गया है। 2015 में आपातकाल को 40 साल पूरे हुए थे। तब से लेकर अब तक बहुत लोगों ने इस पर लिखा है। कई चैनलों पर दिखाया भी गया है। दूरदर्शन की डॉक्यूमेंट्री है। इसमें काल्पनिक कुछ भी नहीं है। फिल्म में अगर कुछ काल्पनिक है तो वो है कीर्ति कुल्हरी का किरदार। 

फिल्म में क्या सबकुछ वैसा नहीं देखने मिलेगा जैसा आपातकाल में हुआ था?

मधुर- आपातकाल के दौरान अंडरग्राउंड एक्टिविटी प्रशासन के खिलाफ होती है। एक तरह से एक्टिविज्म होता है। उस समय पर्चे फेंकना या फिर जेल में यहां से वहां इन्फॉर्मेशन पहुंचाना। वहीं, मीसा के कानून के तहत लोग अंदर जाते हैं। नसबंदियां की जाती हैं। लोग उस समय भेष बदल के छिपा करते थे। प्रेस पर ताला था। यह सब आपातकाल के दौरान हुआ था। यह मैं नहीं कह रहा हूं, यह सब लिखा गया है। बस फिल्म में इसके अंश डाले गए हैं, जो शाह कमीशन के मुताबिक है। 

आपकी फिल्म को लेकर बवाल हो रहा है। आरोप है कि एक परिवार विशेष को ध्यान में रख कर फिल्म बनाई गई है ताकि किसी को राजनीतिक फायदा पहुंचे ?

मधुर - ये सरासर गलत है। लोग कह रहे हैं भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए फिल्म बनाई है। अगर फिल्म प्रायोजित होती तो 2019 के इलेक्शन के आसपास रिलीज़ करता। कुछ महीने पहले हुए चुनाव के समय ही रिलीज़ कर देता। मुझे पीरियड फिल्म बनानी थी, जो मेरे बजट में हो। तो मैंने वह किया। सिर्फ बैकड्रॉप आपातकाल का है। बात करें पहले आई फिल्मों की तो मणिरत्नम ने रोजा और बॉम्बे बनाई थी, क्या वो सेंसेटिव इश्यू नहीं था।

सीधा सवाल क्या कांग्रेस की तरफ से आपको फोन आये हैं फिल्म को लेकर ?

मधुर- किसी का नाम नहीं लूंगा। मेरे मित्र हर पार्टी में हैं। हमारी फिल्म हर कोई देखता है और सब तारीफ़ करते हैं। जहां तक सवाल है कांग्रेस पार्टी के नेताओं के फोन का, तो हां आए हैं। उन्होंने कहा कि किरदारों के नाम बदल सकते हैं क्या ? लेकिन अभी फिल्म को सेंसर बोर्ड जाने में चार दिन बाकी हैं। यह मुझे पता है वो गुड फेथ में मुझे बोल रहे हैं। यह स्टैंड पार्टी से संबंधित है। लेकिन फिल्म में मेरे द्वारा चेंज करने से डॉक्यूमेंट्री और किताबों में भी बदलाव हो जाएगा क्या ? मेरे ख्याल से फिल्म को टोटेलिटी की नज़र से देखना चाहिए। अगर मुझे फिल्म बनाने से रोका जाता है, तो मेरा यह सवाल यह है कि, उन डॉक्यूमेंट्री को भी हटाना चाहिए जो दूरदर्शन पर दिखाई गई थीं और आज भी यूट्यूब पर अवेलेबल हैं। वहीं, जिन्होंने किताबें लिखी हैं उनको भी मना करना चाहिए। अगर कोई सेंसेटिव इश्यू पर फिल्म बनाता है तो बस लोग उसके पीछे पड़ जाते हैं। अब मैं किसी से पूछकर तो फिल्म बनाउंगा नहीं।

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मधुर- कांग्रेस से एनओसी की फिल्म को कोई जरुरत नहीं है। ट्रेलर में गांधी नाम का यूज किया है। अगर मैनें एक जगह डायलॉग दिया है कि आज गांधी के मायने बदल चुके हैं। अब इसमें किस गांधी की बात कर रहा हूं, किसी का नाम क्लीअरली नहीं लिया है। हां अगर किसी को आपत्ति है तो सेंसर जैसा कहेगा उसके बाद मेरे हिसाब से चेंजेज़ करूंगा।

इंदु सरकार में आप क्या है कीर्ति, ये आपको समझ में आया?

कीर्ति - फिल्म की इंदु काल्पनिक। वो जिस किरदार में हैं, उसको लगता है कि, इमरजेंसी गलत है। उसका पति एक सरकारी बाबू है। इस बीच घर पर हसबैंड-वाइफ में झगड़े होते हैं। अलग-अलग बात को लेकर। यह एक कॉन्फिलिक्ट है। वो भी इंदु के पॉइंट अॉफ व्यू से।

मनोज खाडिलकर


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