बर्थडे: गैरेज में कारें ठीक करने वाला बच्चा एक दिन बन गया गुलज़ार, जानें 5 रोचक बातें
सबसे बड़ी चीज़ जो उन्होंने हासिल की है वह यह कि शायरी, सिनेमा और साहित्य की हर महफ़िल में गुलज़ार का नाम अदब से लिया जाता है!
मुंबई। अपने शब्दों की जादूगरी से दुनिया भर के करोड़ों फैंस के दिलों पर राज करने वाले गुलज़ार का आज 83 वां जन्मदिन है! उन्होंने एक गीतकार, संवाद लेखक, पटकथा लेखक से लेकर एक डायरेक्टर तक की भूमिका में एक अमिट छाप छोड़ी है।
लगभग 50 से भी ज्यादा सालों से गुलज़ार लगातार एक्टिव हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी उनके पास बहुत काम हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा को गर्व और सुकून करने के ढेरों मौके दिए। आइये जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें!
जन्म और परवरिश
गुलज़ार का जन्म 18 अगस्त 1936 में दीना, झेलम जिला, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था, जोकि अब पाकिस्तान में है। उनके बचपन का नाम था- सम्पूर्ण सिंह कालरा। गुलज़ार अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान हैं। उनके पिता का नाम माखन सिंह कालरा और मां का नाम सुजान कौर था। गुलज़ार के बचपन में ही उनकी मां का निधन हो गया था। देश के विभाजन के समय उनका पूरा परिवार पंजाब के अमृतसर में आकर बस गया।
कार मैकेनिक के रूप में किया काम
अमृतसर से कुछ काम की तलाश में गुलज़ार साहब मुंबई चले आए। मुंबई आकर उन्होंने एक गैरेज में बतौर मैकेनिक का करना शुरू कर दिया। वह खाली समय में शौकिया तौर पर कवितायें लिखने लगे। गैरेज के पास ही एक बुकस्टोर वाला था जो आठ आने के किराए पर दो किताबें पढ़ने को देता था। गुलज़ार को वहीं पढ़ने का चस्का सा लग गया।
विमल रॉय से मुलाक़ात, बदली ज़िंदगी
एक दिन तब के मशहूर डायरेक्टर विमल रॉय की कार ख़राब हो गयी। विमल संयोग से उसी गैरेज पर पहुंचे जहां गुलज़ार काम किया करते थे। विमल रॉय ने गैरेज पर गुलज़ार को देखा, उनकी किताबें देखी। पूछा कौन पढता है ये सब? गुलज़ार ने कहा- मैं! विमल रॉय ने गुलज़ार को अपना पता देते हुए अगले दिन मिलने को बुलाया। गुलज़ार साहब विमल रॉय के बारे में बाद करते हुए आज भी भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि "जब मैं पहली बार विमल रॉय के दफ़्तर गया तो उन्होंने कहा कि अब कभी गैरेज में मत जाना!"
पहला ब्रेक
विमल रॉय जिन्हें गुलज़ार विमल दा कहते थे उनके साथ रहते हुए गुलज़ार की प्रतिभा निखरकर सामने आने लगी। और साल 1963 में आई फ़िल्म 'बंदिनी'। बिमल रॉय की इस फ़िल्म में धर्मेंद्र, अशोक कुमार और नूतन जैसे बड़े स्टार थे। इस फ़िल्म के सभी गाने शैलेंद्र ने लिखे थे लेकिन एक गाना संपूर्ण सिंह कालरा ने लिखा था यानी गुलज़ार ने लिखा था। फ़िल्म का वो गाना ‘मोरा गोरा अंग लेइ ले, मोहे श्याम रंग देइ दे’ ख़ूब पसंद किया गया और वहां से शुरू हो गयी गुलज़ार की अद्भुत, अनोखी यात्रा।
शादी और अलगाव
1973 में गुलजार ने अभिनेत्री राखी से शादी कर ली। पर जब उनकी बेटी मेघना लगभग डेढ़ वर्ष की थी तब यह रिश्ता भी टूट गया। हालांकि दोनों में तलाक कभी नहीं हुआ और मेघना को भी हमेशा अपने पैरेंट्स का प्यार मिलता रहा। बीते साल होली के मौके पर गुलज़ार और राखी की ये तस्वीर खूब वाइरल हुई थी!
कई फ़िल्मफेयर अवार्ड्स, नेशनल अवार्ड्स, साहित्य अकादमी, पद्म भूषण और 2008 में आई ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के गाने ‘जय हो’ के लिए ऑस्कर अवार्ड, साल 2012 में 'दादा साहब फाल्के अवार्ड' ये बताता है कि इस एक शख्स ने कितना कुछ हासिल किया। सबसे बड़ी चीज़ जो उन्होंने हासिल की है वह यह कि शायरी, सिनेमा, साहित्य की हर महफ़िल में गुलज़ार का नाम अदब से लिया जाता है। जागरण डॉट कॉम के तमाम पाठकों की तरफ से उन्हें जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं!