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दिलीप कुमार जैसा 'देवदास' बनना चाहते थे धर्मेंद्र, बर्थडे पर किया ट्रेजडी किंग को याद

दिलीप साहब की अदाकारी नए देवदासों के लिए पाठशाला की तरह रही है। ये वो किरदार है, जिसे हर एक्टर अपने करियर में कभी ना कभी निभाना चाहता है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Mon, 11 Dec 2017 03:39 PM (IST)Updated: Tue, 12 Dec 2017 06:58 AM (IST)
दिलीप कुमार जैसा 'देवदास' बनना चाहते थे धर्मेंद्र, बर्थडे पर किया ट्रेजडी किंग को याद
दिलीप कुमार जैसा 'देवदास' बनना चाहते थे धर्मेंद्र, बर्थडे पर किया ट्रेजडी किंग को याद

मुंबई। हिंदी सिनेमा के हर दौर में बेहद शानदार अभिनेता हुए हैं, मगर दिलीप कुमार जैसा शायद ही दूसरा मिले। 11 दिसंबर को 95 साल के हो चुके दिलीप साहब ने अपने अभिनय से कई पीढ़ियों को प्रेरित किया है। इनमें धर्मेंद्र का नाम भी शामिल है, जिन्होंने दिलीप कुमार से प्रभावित होकर ही सिनेमा की तरफ़ क़दम बढ़ाया था।

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धर्मेंद्र अक्सर दिलीप कुमार के लिए अपनी दीवानगी का ज़िक्र करते रहे हैं। ख़ास बात ये है कि धर्मेंद्र को कुछ साल पहले एक अवॉर्ड फंक्शन में लाइफ़ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड से नवाज़ा गया था, जिसे उन्होंने दिलीप साहब के हाथों ही लिया। इस मौक़े पर, दिलीप कुमार ने धर्मेंद्र के बारे में कहा था कि वो उन्हें देखकर अक्सर ये सोचते थे कि ख़ुदा से पूछूंगा, मुझे इतना ख़ूबसूरत क्यों नहीं बनाया। बहरहाल, दिलीप कुमार भले ही 50-60 के दशक के अभिनेता हों, मगर उनका अभिनय आज भी प्रासंगिक है। यही वजह है कि धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन से लेकर शाह रुख़ ख़ान तक के अभिनय में कभी ना कभी दिलीप साहब की झलक दिख जाती है। धर्मेंद्र ने ट्विटर पर दिलीप कुमार को जन्मदिन की शुभकामनाएं भी दी हैं, जिसमें उन्होंने ये स्वीकार किया है कि उनसे प्रेरित होकर ही वो एक्टर बने।

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वैसे तो दिलीप कुमार ने तमाम ऐसे किरदार निभाये हैं, जिनकी चमक वक़्त के साथ बढ़ती रही है, लेकिन उनका सबसे यादगार रोल देवदास का रहा है। वैसे तो इस कहानी पर कई फ़िल्में बनी हैं, मगर1955 में बिमल रॉय के डायरेक्शन में आयी देवदास की बात अलग है। इस फ़िल्म में दिलीप साहब की अदाकारी नए देवदासों के लिए पाठशाला की तरह रही है। ये वो किरदार है, जिसे हर एक्टर अपने करियर में कभी ना कभी निभाना चाहता है। धर्मेंद्र के दिल में भी ये ख्वाहिश थी कि वो देवदास बनकर पर्दे पर आएं। बॉलीवुड के हीमैन के ये मौक़ा मिला भी, मगर ख़्वाहिश पूरी ना हो सकी।

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देवदास पर गुलज़ार फ़िल्म बनाना चाहते थे। इस फ़िल्म में देवदास के किरदार के लिए धर्मेंद्र को चुना था, जबकि चंद्रमुखी और पारो के किरदारों के लिए उन्होंने शर्मिला टैगोर और हेमा मालिनी को फाइनल किया था। फ़िल्म का मुहूर्त भी हुआ, लेकिन बदकिस्मती से फ़िल्म इससे आगे नहीं बढ़ सकी। धर्मेंद्र को भी इसके बाद गुलज़ार के निर्देशन में काम करने का मौक़ा नहीं मिला। सोचिए, अगर ये फ़िल्म बनकर रिलीज़ होती तो धर्मेंद्र को देवदास के किरदार में देखना कितना दिलचस्प अनुभव होता। धर्मेंद्र भले ही देवदास बनने से चूक गए हों, लेकिन उनके भतीजे अभय देओल के ये मौक़ा मिल गया, जब अनुराग कश्यप ने उन्हें देव.डी में देवदास का किरदार निभाने का मौक़ा दिया था।

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बंगाली साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के क्लासिक नॉवल देवदास के ज़ितने वर्ज़न बड़े पर्दे पर आए हैं, उतने शायद ही किसी और नॉवल के आए हों। लगभग सभी भाषाओं के सिनेमा में देवदास पर फ़िल्में बन चुकी हैं। हिंदी सिनेमा में भी देवदास को अलग-अलग वक़्त में पर्दे पर उतारा जा चुका है। देवदास पर सबसे पहले 1928 में साइलेंट फ़िल्म बनी। 1936 में पीसी बरुआ ने केएल सहगल को देवदास बनाया। 2002 में संजय लीला भंसाली ने शाह रूख़ ख़ान को देवदास बनाकर अमर कर दिया। अब सुधीर मिश्रा और देवदास के नाम से फ़िल्म बना रहे हैं, जिसमें राहुल भट्ट देवदास बने हैं। हालांकि इस देवदास की बैकग्राउंड पॉलिटिक्स है।


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