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स्टार को फिल्में ढूंढ़ती हैं, निर्माता नहीं

मुंबई। नए कलाकारों को अपनी फिल्मों के जरिए मंच प्रदान करना चाहते हैं निर्माता अनुभव सिन्हा। फिल्म 'जिद' में उन्होंने दिया है तीन नए कलाकारों को मौका अनुभव सिन्हा में फिल्मों को लेकर एक किस्म की बेचैनी है। वे लगातार फिल्में बनाना चाहते हैं। वे ज्यादा से ज्यादा नए कलाकारों

By deepali groverEdited By: Published: Thu, 27 Nov 2014 01:54 PM (IST)Updated: Thu, 27 Nov 2014 02:24 PM (IST)
स्टार को फिल्में ढूंढ़ती हैं, निर्माता नहीं

मुंबई। नए कलाकारों को अपनी फिल्मों के जरिए मंच प्रदान करना चाहते हैं निर्माता अनुभव सिन्हा। फिल्म 'जिद' में उन्होंने दिया है तीन नए कलाकारों को मौका अनुभव सिन्हा में फिल्मों को लेकर एक किस्म की बेचैनी है। वे लगातार फिल्में बनाना चाहते हैं। वे ज्यादा से ज्यादा नए कलाकारों और निर्देशकों को मुकम्मल मंच प्रदान करना चाहते हैं। महज साल भर में ही वे तीन ऐसी फिल्में दे चुके हैं, जिनकी कमान नए कलाकार और फिल्मकारों के हाथ है। उनके बैनर बनारस मीडिया वक्र्स की अगली पेशकश 'जिद' है। वह फिल्म बोल्ड कंटेंट और दृश्यों के चलते खासी चर्चा में है।

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अनुभव बताते हैं, 'फिल्म को लोग इरौटिक थ्रिलर करार दे रहे हैं। वह पूरी तरह सही नहीं है। फिल्म उससे कहीं आगे की कहानी है। वह सच्चा प्यार करने वाली लड़की माया के जज्बात और जुनून को बयां करती है। एक लड़की जब प्यार में धोखा खाती है तो वह क्या कर सकती है, यह फिल्म उस बारे में है। मेरी कोशिश सदा यही रही कि फिल्म को रियल टच दिया जाए। लिहाजा फिल्म में रोमांस उसी तेवर और कलेवर का है।

फिलहाल बतौर निर्माता मैं ऐसी फिल्में करना चाहता हूं, जो ज्यादा से ज्यादा नए लोगों को फायदा पहुंचाए। सितारों पर हम कितना बोझ डालते रहें। 'वॉर्निंग' ने बीते साल इंडस्ट्री को सुमित सूरी दिया। 'गुलाब गैंग' से लोगों को सौमिक सेन की प्रतिभा का पता चला। वे अनुराग बासु के साथ अब एक बायोपिक फिल्म लिख रहे हैं। 'जिद' निश्चित तौर पर इंडस्ट्री को मनारा के रूप में उम्दा अभिनेत्री देने वाली है। वे खासी मेहनती और प्रतिभाशाली हैं। आने वाले समय में वे सफल होती हैं तो मैं यह कहता नहीं फिरूंगा नहीं कि वे मेरी खोज हैं। मेरा मानना है कि हर कलाकार को फिल्म ढूंढ़ती है, फिल्मकार नहीं।

आगे मेरे पास दो-तीन ऐसी स्क्रिप्ट हैं, जो नॉर्थ इंडिया केंद्रित हैं। एक सीरियस किस्म की पॉलिटिकल फिल्म भी है। बनारस मीडिया वक्र्स तैयार करने के पीछे मेरा मकसद ही है कि अब मैं अपनी मिट्टी की कहानी लोगों को सुनाऊं। जिनका इंडस्ट्री में गॉडफादर नहीं, उनके काम आऊं। मैं अपने जरिए बनारस का अक्स ग्लोबल पटल पर रख सकूं।

'जिद' बनाने की जड़ में मैं खुद भी हूं। मैं बचपन से बड़ा जिद्दी रहा हूं। जिद को हम हमेशा गलत संदर्भ में लेते हैं, मगर अगर हममें जिद न हो तो हम शायद वहीं के वहीं रह जाएं, जहां से हमारी शुरुआत हुई हो। मैं इलाहाबाद और बनारस में पला-बढ़ा हूं। अब सोचता हूं कि मैंने बनारस के ऊपर कोई फिल्म क्यों नहीं बनाई? आगे जल्द बनारस पर लौटूंगा।'

(अमित कर्ण)


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