अंबिका चौधरी साइकिल छोड़ हाथी पर सवार, फेफना से चुनाव लड़ेंगे
बलिया से समाजवादी पार्टी के बड़े कद्दावर नेता माने जाने वाले अंबिका चौधरी के बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने को सत्तारुढ़ दल के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
लखनऊ (जेएनएन)। समाजवादी पार्टी के थिंक टैक, मुलायम-शिवपाल के विश्वासपात्र और अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाये जाने के बाद मंत्रिमंडल से बर्खास्त किये गए अंबिका चौधरी साइकिल छोड़ आज हाथी पर सवार हो गए। बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने पार्टी के प्रदेश कार्यालय में उन्हें बसपा की सदस्यता ग्रहण करायी। मायावती ने अंबिका को बलिया की फेफना सीट से बतौर बसपा प्रत्याशी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़वाने का एलान भी किया।
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कानून के क्षेत्र से सियासत में कदम रखने वाले अंबिका चौधरी का बसपा में शामिल होना सपा के लिए करारा झटका है। उनकी छवि उन गिने-चुने नेताओं की है जिनकी लिखने-पढऩे में दिलचस्पी है। संसदीय प्रणाली के जानकार होने के साथ वह सदन के भीतर बहस मुबाहिसे में भी पारंगत हैं। यही वजह थी कि 1993 से लेकर 2007 तक लगातार चार बार सपा प्रत्याशी के रूप में बलिया के कोपाचीट विधानसभा क्षेत्र से जीत का सेहरा बंधवाने वाले अंबिका जब 2012 में जिले की फेफना सीट से चुनाव हार भी गए तो भी उनकी उपयोगिता को देखते हुए अखिलेश मंत्रिमंडल में उन्हें राजस्व मंत्री बनाया गया। वह पिछली मुलायम सरकार में भी राजस्व मंत्री थे। मंत्री बनने के लिए दोनों में किसी एक सदन का सदस्य होना जरूरी है, इसलिए सपा ने उन्हें विधान परिषद भेजा। हालांकि इस बार उनकी कार्यशैली से मुलायम खुश नहीं रहे और न ही अखिलेश। लिहाजा मुख्यमंत्री ने जुलाई 2013 में राजस्व महकमा उनसे छीनकर उन्हें पिछड़ा वर्ग और विकलांग कल्याण जैसे महत्वहीन विभाग का मंत्री बना दिया। अक्टूबर 2015 में उन्हें मंत्रिमंडल से ही बर्खास्त कर दिया गया। इस सबके बावजूद अंबिका मुलायम के करीब बने रहे और शिवपाल के विश्वासपात्र भी।
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अखिलेश यादव को हटाकर मुलायम ने जैसे ही शिवपाल को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो शिवपाल ने उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बनाने में देर नहीं की। लेकिन, सत्ताधारी यादव परिवार में चले संग्राम में मुलायम और शिवपाल के कमजोर पडऩे के बाद अंबिका के लिए स्थितियां असहज हो गईं। दिसंबर के आखिर में मुलायम ने सपा के जिन 393 उम्मीदवारों की सूची जारी की, उसमें तो फेफना सीट से अंबिका को सपा प्रत्याशी बनाया गया लेकिन अगले ही दिन अखिलेश की ओर से जारी की गई प्रत्याशियों की लिस्ट से उनका नाम नदारद था। दीवार पर लिखी जा रही इबारत को वह बखूबी समझ रहे थे और 16 जनवरी को निर्वाचन आयोग की मुहर लगने पर जब अखिलेश समाजवादी पार्टी में सर्वेसर्वा बनकर उभरे तो सपा सरकार और पार्टी में लगातार अपनी उपेक्षा से कुंठित अंबिका ने साइकिल छोड़ हाथी पर सवारी करना ही उचित समझा।
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बसपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद मीडिया से मुखातिब अंबिका चौधरी ने कहा कि वह समाजवादी पार्टी से बीते 25 वर्षों से उसकी स्थापना के समय से ही जुड़े रहे हैं। सपा में बीती 13 सितंबर से शुरू हुए जय-पराजय के सिलसिले में जो बातें सामने आयी हैं, वे नितांत गंभीर हैं। इस संग्राम की परिणति 16 जनवरी को निर्वाचन आयोग के फैसले के रूप में जब सामने आयी तो उससे यह साबित हो गया कि धर्मनिरपेक्ष, अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों की हिफाजत की बजाय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कोई और उद्देश्य था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके लोगों ने मुलायम सिंह यादव से जिस तरह का अनुचित व्यवहार कर उन्हें खारिज किया उससे प्रदेशवासियों में तो नाराजगी और असंतोष है ही, वह खुद भी इससे दुखी हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में यदि सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाली भाजपा को उप्र में खारिज नहीं किया गया तो 2019 में देश के सामने और कठिनाइयां आएंगी। लिहाजा सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के इस दौर में उन्होंने सपा की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा देकर बसपा में शामिल होना मुनासिब समझा। चौधरी को बसपा की सदस्यता ग्रहण कराने के बाद मायावती ने कहा कि बसपा में उन्हें सपा से ज्यादा आदर सम्मान मिलेगा। जवाब में चौधरी ने भी बसपा प्रमुख के प्रति आभार जताते हुए उनके दिशानिर्देश में पूरी तरह समर्पित होकर काम करने का भरोसा दिलाया।
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शिवपाल चाहें तो बसपा में स्वागत
इस दौरान मायावती ने कहा कि शिवपाल अगर बसपा में आना चाहें तो उनका स्वागत है। उन्होंने कहा कि पुत्रमोह में मुलायम सिंह ने अपने भाई शिवपाल को भी बलि का बकरा बना दिया। उन्होंने कहा कि मुलायम ने शिवपाल को जनता के सामने भी गिराने की कोशिश की है। इससे नाराज शिवपाल खेमे के लोग अखिलेश खेमे को नुकसान जरूर पहुंचाएगा और वोट दो खेमों में बंट जाएगा। ऐसे में जनता का वोट बर्बाद होगा और बीजेपी फायदा उठा लेगी।