विधानसभा चुनाव : जलेसर ने घुंघरू की न सुनी झंकार, मुरझा रहे गुलाब
दो दशक से ज्यादा स्थापित औद्योगिक आस्थान में शुरू हुए कुछ उद्योग भी उद्यमियों के लिए चुनौती बने हुए हैं।
जागरण संवाददाता, एटा। पिछले विधानसभा चुनाव में वादा तो किया था कि जलेसर के घुंघरू-घंटी की खनक और गूंजेगी। गुलाब खेती और इत्र का कारोबार भी उनके जीतने के बाद खूब महकेगा। पांच साल बीत गए, लेकिन न घंटी की खनक हुई न महक फैली। वायदे और इरादे झूठे ही निकले। पांच साल बाद अब फिर चुनाव आया तो फिर वही वायदे हैं..।
जलेसर का घुंघरू घंटी उद्योग:
देश ही नहीं, विदेशों तक घुंघरू घंटी के लिए विख्यात जलेसर नगरी का उद्योग तमाम समस्याओं से लगातार जूझ रहा है। उद्यमियों के समक्ष सड़क परिवहन, बैंकों से आसान ऋण की अनुपलब्धता, कच्चे माल के लिए स्थानीय स्तर पर पीतल व कोयला के डिपो की व्यवस्था जैसी समस्याएं लगातार गहराती जा रहीं हैं। 300 से ज्यादा इकाइयां यहां पिछले दस सालों में आधी रह गईं हैं। निर्मित माल के निर्यात में सहूलियतें नहीं। अब तो कारीगरों का भी पलायन होने से घुंघरू घंटी उद्योग की झंकार हल्की होने लगी है।
विगत के विधानसभा चुनावों के दौरान वायदे किए गए कि नगरी को राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़वाया जाएगा। ऋण सुविधा के अलावा कच्चे माल के लिए भी नजदीक डिपो खुलवाने के साथ माल के निर्यात में भी सुविधा दी जाएंगी। उद्योग से जुड़े हर वर्ग ने इन्हीं वायदों पर भरोसा कर मतदान में भागीदारी दिखाई। नेताजी चुनाव तो जीत गए, मगर अपने वायदे भूल गए। यहां तक कि उद्योग की स्थानीय समस्याओं का भी निराकरण कराने में दिलचस्पी नहीं ली। कारोबारी निर्मल कुमार कहते हैं कि अच्छा राजस्व देकर भी उद्योग की उपेक्षा की जा रही है। धीरे-धीरे उद्योग हाथ से निकलने जैसे हालात हैं।
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गुलाब उत्पादन और इत्र कारोबार:
बेरोजगारी के दौर में जनपद को गुलाब के फूल का उत्पादन तथा इत्र उद्योग से नए आयाम मिलने की उम्मीद थी। बेरोजगारी भी दूर होती और एक अच्छा उद्योग फल-फूल जाता। जरूरत जनप्रतिनिधियों की सक्रियता और सरकारी स्तर से प्रोत्साहन की थी। वर्ष 2010 तक सिर्फ 800 हेक्टेयर से शुरू हुई गुलाब की खेती 6 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल तक पहुंच गई है। लोगों ने इसके जरिए इत्र उद्योग विकसित करने के प्रयास किए।
एक नजर एटा के उद्योग जगत पर
पंजीकृत कारखाने - 311
लघु उद्योग- 4961
खादी ग्रामोद्योग इकाई - 50
जनप्रतिनिधियों ने भी वायदा किया कि गुलाब मंडी खुलेगी और इत्र उद्योग को मदद दिलाई जाएगी। इन वायदों की उम्मीदों पर ही जलेसर और निधौली कलां क्षेत्र के 50 से ज्यादा गांव बड़े गुलाब उत्पादन क्षेत्र के रूप में विकसित भी हुए। न वायदे पूरे हुए और सुगंध बिखेरने वाले गुलाब लाभ देने के बजाए घाटे का सौदा बनने लगे तो गुलाब उत्पादन सिमटने लगा। गुलाब उत्पादक बॉबी जादौन, विनोद सिंह कहते हैं कि अब भी उत्पादकों को सहूलियतें मिलें तो गुलाब की सुगंध से पूरा जिला महक सकता है।
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इन उद्योगों पर भी उपेक्षा की मार
दो दशक से ज्यादा स्थापित औद्योगिक आस्थान में शुरू हुए कुछ उद्योग भी उद्यमियों के लिए चुनौती बने हुए हैं। बात चाहें चिकोरी के उत्पादन और निर्यात की हो या फिर रबर और प्लास्टिक उद्योग की। यही नहीं, जिले का भट्ठा उद्योग सबसे सफल माना जाता था, वह भी सरकारी कांटों और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी से लगातार सिमट रहा है। वायदे तो बेरोजगारी कम करने के और उद्योगों को चमकाने के किए गए, लेकिन पांच साल बाद भी स्थिति वही है। बड़े उद्योग तो न बढ़े, लघु उद्योग घटते गए।