यूपी चुनाव: तहजीब के शहर लखनऊ में तर्कों का बाजार
गृहमंत्री राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र होने के नाते भाजपा के लिए लखनऊ का चुनाव महत्वपूर्ण है तो सपा के लिए भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं क्योंकि नौ में से सात सीटें उसके पास हैं।
लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। परसों होने वाले मतदान में लखनऊ की चुनावी तपिश किसे कितना प्रभावित करेगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यहां कई सीटों पर मुकाबला रोचक हो चला है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र होने के नाते भाजपा के लिए लखनऊ का चुनाव महत्वपूर्ण है तो समाजवादी पार्टी के लिए भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं क्योंकि नौ में से सात सीटें उसके पास हैं। सभी दलों के पास जीत के लिए अपने-अपने तर्क हैं।
लखनऊ में चौक के मक्खन बाजार में सुबह चाय की दुकान पर जुटे कुछ लोगों में चर्चा इस बात की है कि मोदी यहां क्यों नहीं आए। तुरंत ही जवाब भी मिलता है, जरूरत भी क्या है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह का क्षेत्र है। स्थानीय व्यापारी निखिल सिंघल साथियों से ही पूछ बैठते हैं कैंट क्या हाल है। फिर बात मुलायम परिवार से होती हुई नोटबंदी से भाजपा के नफा नुकसान तक पहुंच जाती है। बानवाली गली निवासी पंकज मेहरोत्रा और बजाजा निवासी शाहिद कहते हैं कि कैंट में मामला फंसा सा लगता है।
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कभी अटल विहारी वाजपेयी का संसदीय क्षेत्र रहे लखनऊ में इस बार सियासी तपिश को भांप पाना आसान नहीं लगता। अलबत्ता नित नये घटनाक्रम चुनाव को रोचक बनाते हैं। चर्चा के विषय भी अलग हैं। बसपा प्रमुख मायावती, मुख्यमंत्री अखिलेश और भाजपा के तमाम बड़े मंत्रियों की सभाएं हो चुकी हैं। लेकिन, मुस्लिम बहुल क्षेत्र में वोटरों को रिझाने के लिए न मंत्री आजम खां दिखे और न अहमद हसन। बानवाली गली निवासी पंकज मेहरोत्रा अपना कयास बताते हैं कि मुसलमान मतों में इस बार विभाजन हो सकता है।
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बसपा ने भी अपनी निगाहें लगा रखी हैं। युवा अनूप और अबाद काजिम इसे काटते हैं कि युवा मुसलमान पूरी तरह अखिलेश के साथ नजर आ रहा है। इस बात से औरों का भी इत्तिफाक नजर आता है कि इस बार लखनऊ में किसी एक दल की फिजां नहीं बह रही है। बिना किसी लहर के हो रहे चुनाव में मतदाताओं का रूख जानने में उम्मीदवार व राजनीतिक पंडित भी कोई भविष्यवाणी नहीं कर पा रहे हैं।
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राजनाथ के लिए अहम : अटल की कर्मभूमि रहे लखनऊ को समय के साथ राजनाथ सिंह ने अपनी कर्मभूमि बना लिया है। यही कारण है कि इस चुनाव में कमल खिलाने के लिए उन्होंने कई सभाएं की हैं। शहरी मतदाता किस करवट जाते हैं, उससे राजनाथ सिंह का राजनीतिक कद भी तय होगा। टिकट बंटवारे में नए चेहरों और दलबदलुओं को तवज्जो देने वाली भाजपा को अपने जमीनी कार्यकर्ताओं का भी विरोध झेलना पड़ रहा है। मतदाताओं को लुभाने से ज्यादा भाजपा नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं को मनाने में समय देना पड़ रहा है। पिछले चुनाव में शहर की पांच में से चार सीटें भाजपा ने गंवा दी थी। इस बार चुनौती बड़ी है।
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सपा की चुनौती : राजधानी लखनऊ की नौ सीटों के चुनाव से ही पूरे प्रदेश की नब्ज पढ़ी जाएगी। पिछले चुनाव में यहां की नौ सीटों में सात सपा के पास रही थीं। पूर्वी की एक सीट भाजपा के पास और कैंट की सीट कांग्र्रेस के पास थी। नौ सीटों में चार सरोजनीनगर, मोहनलाल गंज, मलिहाबाद, बीकेटी में ग्र्रामीण क्षेत्र भी आते हैं। सपा को इन पर भी इस बार कड़ी चुनौती मिल रही है। शहर क्षेत्र की उसके कब्जेवाली सीटों उत्तर, मध्य और पश्चिमी पर भी उसका इम्तिहान होना है। बसपा और भाजपा ने भी मतों के ध्रुवीकरण को ध्यान में रखते हुए ही अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं।
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खास मुकाबले: लखनऊ में दो सीटों पर मुलायम घराने की प्रतिष्ठा जुड़ी है। कैंट क्षेत्र से मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव मैदान में हैं तो सरोजनीनगर से अखिलेश यादव के चचेरे भाई और बदायूं से सांसद धर्मेद्र यादव के भाई अनुराग सिंह यादव मैदान में हैं। यहां सपा सरकार से बर्खास्त मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला ने बागी के रूप में राष्ट्रीय लोकदल से ताल ठोंक रखी है। सरोजनीनगर में भाजपा ने नए चेहरे के रूप में स्वाती सिंह को उतारा है।
मायावती पर टिप्पणी करने वाले दयाशंकर सिंह के जेल जाने के बाद स्वाती सिंह ने ही मोर्चा संभाला था और और चर्चा में आ गईं थीं। कैंट सीट से भाजपा उम्मीदवार डा.रीता बहुगुणा जोशी मैदान में हैं। चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आईं रीता जोशी के सामने मुलायम सिंह की छोटी बहू है। मंत्री अभिषेक मिश्र और रविदास मेहरोत्रा भी चुनावी मैदान में हैं। मोहनलालगंज संसदीय सीट से भाजपा सांसद कौशल किशोर की पत्नी जय देवी मलिहाबाद से भाजपा उम्मीदवार हैं।
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गठबंधन की गांठ : भले ही राहुल गांधी और अखिलेश यादव एक साथ यहां रोड शो करके चुनाव में साथ चलने का संदेश दिया लेकिन, सपा-कांग्रेस का गठबंधन मध्य सीट पर नहीं दिख रहा है। सपा ने मंत्री रविदास मेहरोत्रा को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने मारूफ खान को। दोनों ही अपने को गठबंधन का सही उम्मीदवार बता रहे हैं। हालांकि कांग्रेस यह बयान दे चुकी है कि मारूफ खान चुनावी मैदान से हट गए हैं, लेकिन मारूफ खान मैदान में डटे हुए हैं। गठबंधन में पड़ी गांठ से अन्य दल को इसका लाभ मिलने की चर्चा है।
प्रमुख उम्मीदवार
डा. रीता बहुगुणा जोशी (भाजपा कैंट सीट से) इस सीट से रीता पिछले चुनाव में कांग्रेस टिकट पर जीती थीं।
अपर्णा यादव (मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक सिंह की पत्नी) (कैंट से सपा उम्मीदवार)
अनुराग सिंह यादव (मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चचेरे भाई) (सरोजनीनगर से सपा उम्मीदवार)
प्रो. अभिषेक मिश्र (मंत्री राज्य सरकार) सपा उम्मीदवार उत्तरी सीट
रविदास मेहरोत्रा (मंत्री राज्य सरकार) सपा उम्मीदवार मध्य सीट
शारदा प्रताप शुक्ला (बर्खास्त मंत्री) सपा से बागी, राष्ट्रीय लोकदल से अब उम्मीदवार
स्वाती सिंह (मायावती पर टिप्पणी करने वाले भाजपा से निष्कासित दयाशंकर की पत्नी)
नकुल दुबे (बसपा के पूर्व मंत्री व बक्शी का तालाब से बसपा उम्मीदवार)
बृजेश पाठक (पूर्व राज्यसभा सदस्य बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल, अब भाजपा से मध्य क्षेत्र से उम्मीदवार)
आशुतोष टंडन (पूर्वी से भाजपा उम्मीदवार व मौजूदा विधायक और पूर्व मंत्री लालजी टंडन के पुत्र)।