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यूपी चुनाव 2017: अमित शाह का दावा यूपी का चेहरा ही होगा सीएम

उत्तर प्रदेश में बड़ी विचित्र परिस्थिति में शासन चलाया गया है। समाजवादी पार्टी आती है तो बहुजन समाज पार्टी पर केस करती है। बसपा आती है तो सपा वालों पर केस करती है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sat, 25 Feb 2017 09:44 AM (IST)Updated: Sat, 25 Feb 2017 01:46 PM (IST)
यूपी चुनाव 2017: अमित शाह का दावा यूपी का चेहरा ही होगा सीएम
यूपी चुनाव 2017: अमित शाह का दावा यूपी का चेहरा ही होगा सीएम

वाराणसी (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश में सियासी पारा अब पूरब पर चढ़ चुका है। भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रथ की कमान थामे राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह वाराणसी में डेरा जमा चुके हैं।

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अपनी बेबाक शैली से विरोधियों को धराशायी करने वाले अमित शाह न केवल अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं बल्कि 300 सौ से ज्यादा सीटें जीतने का उनका दावा और पुख्ता हो चला है। भाजपा के मुख्यमंत्री के चेहरे पर छाई धुंध साफ करते हुए शाह कहते है कि चेहरा उत्तर प्रदेश से ही दिया जाएगा।
उत्तर प्रदेश के चुनावी समर के बीच महाराष्ट्र से आई खुशखबरी के दौरान अमेठी कोठी पर उनसे विस्तार से बात की वाराणसी के संपादकीय प्रभारी आलोक मिश्रा ने-
बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के चार चरण के चुनाव हो गए हैं। क्या अब घोषित करेंगे कि कौन होगा चेहरा ?
- मैं अभी बता नहीं सकता। पार्टी ने रणनीतिक कारणों से तय किया है, चुनाव के बाद घोषित करेंगे इसलिए घोषणा नहीं कर रहे।
चेहरा यूपी का होगा या बाहर का?
- निश्चिंत रहिए, यूपी से ही होगा।
चुनाव से पहले आपने तीन सौ से ज्यादा सीटों का दावा किया था। चार चरण के मतदान के बाद अब क्या दावा है?
- 300 से ज्यादा सीटें ही आएंगी। चरण-चरण आप लोग मत बदलते हो। मैं पहले दिन से ही कह रहा हूं कि 300 का आंकड़ा पार करेंगे। 11 को नतीजे आने दीजिए, सब स्पष्ट हो जाएगा।
बहुत मजबूती से दावा कर रहे हैं? 
- चुनाव से पहले मैंने 76 हजार किलोमीटर यूपी में यात्रा की है। एक साल पहले से मैं यहां मेहनत कर रहा हूं। एक माहौल बना है। 192 कार्य दिवसों में 17 हजार किमी परिवर्तन यात्रा निकाली, रैलियां कीं। हमें उत्तर प्रदेश की नब्ज मालूम है। उसी आधार पर दावा कर रहा हूं।
कानून व्यवस्था पर अखिलेश सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली भाजपा पर आरोप है कि सबसे ज्यादा दागियों को टिकट उसने दिए। ऐसे में उसका बेहतर कानून व्यवस्था देेने का वादा किस हद तक विश्वसनीय माना जाए ?
- उत्तर प्रदेश में बड़ी विचित्र परिस्थिति में शासन चलाया गया है। समाजवादी पार्टी आती है तो बहुजन समाज पार्टी पर केस करती है। बसपा आती है तो सपा वालों पर केस करती है। हम तो 15 वर्ष से आए ही नहीं तो हम पर दोनों ने केस कर दिए। हमारे कई नेताओं पर फर्जी मुकदमे चल रहे हैं। दागी किसे कहते हैं। दागी मुख्तार अंसारी को कहते हैं, अफजाल अंसारी को कहते हैं, अतीक को कहते हैं। बलात्कार के केस पर इनके मंत्री पर प्राथमिकी दर्ज की गई। प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए किसी पीडि़ता को सु्प्रीम कोर्ट में जाना पड़ता है। उसके बाद भी अखिलेश जी उसका प्रचार करने जाते हैं। कम से कम वो तो महिलाओं को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचे हैं।
आधी आबादी की बात भाजपा काफी करती है लेकिन टिकट देने में इसका अनुपालन नहीं किया गया ? 
- कौन कहता है कि हमने महिलाओं को तरजीह नहीं दी? सबसे ज्यादा टिकट भाजपा ने ही दिए हैं। 32 महिलाएं चुनाव मैदान में हैं। 
सत्ता में आने के बाद कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए भाजपा का रोडमैप क्या होगा?
- यदि तुष्टीकरण की राजनीति और पुलिस का राजनीतिकरण समाप्त हो जाए तो व्यवस्था काफी हद तक सुधर जाएगी। यह हमारे घोषणा पत्र में है। पुलिस की भर्ती को जात-पात के भेदभाव व धर्म के भेदभाव से दूर करने की जरूरत है। हम इसे पारदर्शी बनाएंगे। थानों का सांप्रदायिककरण, जातिकरण और राजीतिकरण कर दिया गया है। हम इसे बंद करेंगे। इसके अलावा भी बहुत कुछ हमारे घोषणा पत्र में है।
राम मंदिर बनाने का वादा कुछ भाजपा नेता लगातार कर रहे हैं। क्या भाजपा सरकार आने के बाद उस पर अमल होगा?
- सभी नेता एक ही बात कह रहे हैं कि संवैधानिक रूप से इसे बनाया जाएगा, जिसके दो ही तरीके हैं। या तो कोर्ट से आदेश मिल जाए या आपसी सहमति के आधार पर। इसी पर अमल होगा।
इस चुनाव में भाषणों का स्तर काफी गिर गया है। क्या स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह ठीक है?
- इसके लिए काफी हद तक मीडिया जिम्मेदार है। भाषण 40 मिनट का होता है, जिसमें एक मिनट वह बातें होती हैं जिसे मीडिया सुर्खियां बना देता है। व्यक्ति बोलता है तो लय में बोलता है। गुस्से व प्रतिक्रिया के कारण वह बोल देता है। मीडिया को इसे इतना तवज्जो नहीं देना चाहिए। 
चुनाव पूर्व आप सपा से अपनी लड़ाई मान रहे थे फिर दो चरणों बाद बसपा से। अब बाकी के चरणों में मुकाबला किससे है?
- ऐसा नहीं है। चुनाव पूर्व मैंने सपा से लड़ाई पूरे प्रदेश के संदर्भ में कही थी। प्रथम दो चरण में बसपा से ही लड़ाई है। परिस्थितियां चुनाव के दौरान बदलती गईं। बसपा ने पूर्वांचल में अफजाल अंसारी से हाथ मिला लिया तो अब गाजीपुर, मऊ आदि में बसपा से लड़ाई होनी है। समीकरण बदलते रहते हैं।
सपा गठबंधन को कम आंकने का मतलब?
- सपा ने तो 103 सीटों पर अपने उम्मीदवार ही खड़े नहीं किए। कांग्रेस के पास कैडर नहीं है और सपा का कैडर इनको स्वीकार नहीं करता। जब मैंने बयान दिया था तो यह सारी चीजें नहीं थी। अगर ऐसा नहीं होता तो आज भी सपा से ही लड़ाई होती लेकिन 103 सीट गंवाकर कोई कैसे लड़ेगा ?
अखिलेश तो कहते हैं कि काम बोलता है?
- विकास उत्तर प्रदेश में किस तरह से हुआ है। इसकी बानगी है कि जब मुलायम सिंह जी की यूपी में सरकार थी तो गंगा पर छह पुलों का भूमि पूजन दो दिनों में किया गया। उनका कार्यकाल समाप्त हो गया। उसके बाद बहन जी का कार्यकाल बीत गया। मुलायम सिंह के बेटे का कार्यकाल भी बीत गया लेकिन एक भी पुल बनकर तैयार नहीं हुआ। यह इस प्रदेश में विकास की स्थिति है फिर भी अखिलेश बोलते हैं कि काम हुआ है। आज उन पुलों के शिलान्यास के पत्थर तक नहीं बचे हैं। 
सत्ता में आने पर भाजपा की प्राथमिकता क्या होगी? 
- कुछ मुद्दों पर खासा काम करने की जरूरत है। कानून व्यवस्था की स्थिति, महिलाओं की सुरक्षा के अलावा तंत्र के अंदर से सांप्रदायिक व तुष्टीकरण की राजनीति को मूल सहित उखाड़ कर फेंकना, तभी यहां विकास हो सकता है।
सपा-कांग्रेस व बसपा नोटबंदी से बाहर आए कालेधन का खुलासा करने की मांग कर रहे हैं। भाजपा इसका खुलासा क्यों नहीं कर रही ?
- जब नोटबंदी नहीं थी तो ये कहते थे कि मोदी जी ने क्या किया, मोदी जी ने क्या किया। नोटबंदी की तो कहने लगे मोदी जी ने क्यों किया, क्यों किया। कुछ दिन ठहर जाइए, ये कालेधन पर कुछ और कहने लगेंगे।
महाराष्ट्र में आए नतीजे क्या संकेत दे रहे हैं?
- महाराष्ट्र में जब हम विधानसभा चुनाव जीते तब विरोधियों ने इसे लोकसभा चुनाव प्रभाव बताया लेकिन उसके बाद म्युनिसिपिलिटी के चुनाव, म्युनिसिपल कारपोरेशन के चुनाव और अब नगर महापालिकाओं व जिला परिषद के चुनाव के नतीजे उसका ठोस जवाब हैं।
उड़ीसा के निकाय चुनाव में भी भाजपा के बेहतर प्रदर्शन का कारण?
- उडी़सा में चुनाव काफी समय पहले से चल रहे हैं। उड़ीसा में जो हमारी संगठनात्मक गतिविधि बढ़ी है, हम दो साल से बहुत प्रयास कर रहे थे। वहां जीत का कारण नरेंद्र मोदी सरकार का काम है, जिसका असर निचले गरीब तबके तक गया है। इसी कारण उड़ीसा के आदिवासी इलाकों में भी हमें सफलता मिली है। हम अब कह सकते हैं कि भाजपा वहां मजबूत पार्टी बनकर उभरी है।
इस बढ़ते प्रभाव का कारण क्या है?
- इस चुनाव में जीत केंद्र के ढाई साल व महाराष्ट्र सरकार के दो साल के कामकाज का नतीजा है। सब जगह एकतरफा विजय मिली है। दोनों ही सरकारों के लिए यह उपलब्धि है। सरकारों के बेहतर कामकाज के कारण ही इस चुनाव में हमारे परंपरागत मतदाताओं के अलावा नए मतदाता हमसे जुड़़े।
मुंबई, उड़ीसा व अन्य राज्यों में कांग्र्रेस की जो स्थिति हुई है, उसे देखते हुए क्या कहा जा सकता है कि 2019 में भाजपा बनाम अन्य का नारा होगा?
- भाजपा बनाम अन्य की स्थिति तो बन ही चुकी है। 2019 में हमारे साथी हमारे साथ रहेंगे और उनके साथी दल उनके साथ। कांग्रेस सभी जगह इसलिए सिकुड़ती जा रही है।
आप इसका कारण क्या मानते हैं?
- कांग्रेस की यह हालत राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की खबर से हुई है। अभी उनका अध्यक्ष बनाना बाकी है। तब की गति देखिएगा।
काशी को क्योटो बनाने की बात बड़े जोर शोर से शुरू हुई थी लेकिन अब यह शोर थम सा गया है। क्या इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है?
- काशी को क्योटो बनाने की बात हमने नहीं मीडिया ने चलाई। काशी को क्योटो बनाना भी नहीं चाहिए। यह विश्व की सबसे पुरातन नगरी है। यहां का व्यक्ति दुनिया में चाहे जहां रहे, उसे हमेशा यही गर्व रहता है कि वह इस सबसे पुरातन नगरी का वासी है।
तो एमओयू करने की आवश्यकता क्यों?
- एमओयू का मतलब इसे क्योटो बनाना नहीं था। दो देशों में करार होता रहता है, यह करार संस्कृतियों के आदान-प्रदान का हो सकता है। अनुभव का आदान प्रदान हो सकता है। विकास के स्वरूप का आदान प्रदान हो सकता है लेकिन एक को दूसरे जैसा बनाने का नहीं हो सकता। हम तो काशी के विकास की बात करते हैं। हम चाहते हैं कि काशी का संपूर्ण विकास हो लेकिन उसकी आध्यात्मिक ऊंचाई एक इंच भी कम नहीं होनी चाहिए। क्योटो बनाने की जरूरत नहीं है।
वाराणसी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। अखिलेश यादव का आरोप है कि यहां कोई काम नहीं हुआ। विकास की इस धीमी गति का कारण क्या है?
विकास की गति धीमी नहीं है। जब आप रिंग रोड बनाते हैं तो दो साल में रिंग रोड समाप्त नहीं होता है। 24 साल से अटका हुआ रिंग रोड शुरू हुआ है, यह सकारात्मक है। मैं इसको धीमी गति नहीं मानता। केंद्र सरकार योजना दे सकती है, पैसा दे सकती है लेकिन उसका क्रियान्वयन तो राज्य सरकार के हाथ में ही होता है। इसे आप हमारे संविधान की खूबसूरती कहें या कुछ और लेकिन व्यवस्था तो यही है। दिक्कत दोनों सरकारों के अलग-अलग होने से होती है। यहां यही माइनस प्वाइंट है।

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