राजस्थान चुनावः यहां बागियों को मनाने में जुटी भाजपा और कांग्रेस, दिए ये अॉफर
Rajasthan Election 2018. श्रीगंगानगर और बीकानेर जिले की 13 में स 8 सीटों पर दोनों पार्टियों को बगावत के बुखार से ग्रस्त होना पड़ रहा है।
बीकानेर/श्रीगंगानगर (राजस्थान), संदीप सिंह धामू। चुनावी चौसर बिछते की टिकट की महत्वाकांक्षा पूरी न होने पर भाजपा और कांग्रेस में बागियों ने भी ताल ठोक दी है। श्रीगंगानगर और बीकानेर जिले की 13 में स 8 सीटों पर दोनों पार्टियों को बगावत के बुखार से ग्रस्त होना पड़ रहा है। नवंबर के ठंडे दिनों में पार्टी प्रत्याशियों के समक्ष प्रतिद्वंद्वी से निपटने के साथ साथ अपनी ही पार्टी के बागी से भी दो चार होना पड़ रहा है। बागियों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए मान मनुहार की जा रही है। किसी को पार्टी में मान सम्मान देने और किसी सरकार बनने पर राजनीतिक पद देने तक का ऑफर भी दिया जा रहा है।
वीरवार को अपरान्ह तीन बजे तक नामांकन वापस लिए जा सकते हैं। इससे भाजपा व कांग्रेस में बागियों से नामांकन लेकर चुनाव मैदान से हटाकर अपने खेमों में लाकर डेमैज कंट्रोल की कवायद की जा रही है। दोनों ही पार्टियों ने इसकी रणनीति बनाते हुए प्रदेश आलाकमान के वरिष्ठ नेताओं को बागियों के उबाल पर ठंडे छींटे मारने की जिम्मेदारी सौंपी है। बागियों के साथ लगे पार्टी पदाधिकारियों से भी संपर्क किया जा रहा है।
भाजपा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व प्रदेशाध्यक्ष मदन सैनी खुद ही बागियों से संपर्क कर पार्टी हित में उन्हें पीछे हटने के लिए कह रहे हैं। कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के साथ संभाग स्तरीय नेताओं को बागियों से संपर्क करने की जिम्मेदारी गई है।
दोनों जिलों की तीन तीन सीटों पर खतरा ज्यादा
दोनों जिले की आठ में से तीन तीन सीटों पर बागियों से दोनों पार्टियां ज्यादा खतरा महसूस कर रही है। इसमें श्रीगंगानगर जिले की श्रीगंगानगर, रायसिंहनगर, श्रीकरणपुर और बीकानेर जिले की बीकानेर पूर्व, बीकानेर पश्चिम और श्री डूंगरगढ़ है। इसके अलावा सादुलशहर में कांग्रेस और लूणकरनसर में भाजपा में बगावत है।
वर्ष 1993 में भाजपा लहर में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत को पटखनी मिलने से चर्चा में आई पंजाब से सटी श्रीगंगानगर सीट पर इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही बगावत है। भाजपा में टिकट के दावेदार पूर्व मंत्री राधेश्याम गंगानगर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। दो अन्य दावेदार टिकट न मिलने से खफा हैं। इनमें शामिल प्रहलाद टाक बसपा और अमित कारगवाल आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। इससे भाजपा प्रत्याशी विनीता आहूजा के सामने मत विभाजन का खतरा है। ऐसे ही खतर से कांग्रेस प्रत्याशी अशोक चांडक जूझ रहे हैं।
चांडक के सामने जयदीप बिहाणी और राजकुमार गौड़ बागी होकर चुनाव लड़ रहे हैं। श्रीकरणपुर में भाजपा की ओर से खनन राज्यमंत्री सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को दोबारा प्रत्याशी बनाए जाने पर महेंद्र रस्सेवट निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। उन्हें टीटी विरोधियों का समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस में पूर्व राज्य मंत्री गुरमीत सिंह कुन्नर को प्रत्याशी बनाए जाने से कुन्नर विरोधियों ने एकजुट होकर माकपा व गंगनहर संघर्ष समिति के समर्थन से पूर्व जिलाध्यक्ष पृथीपाल सिंह संधू को उम्मीदवार बनाया है। रायसिंहनगर में चार महीने पार्टी में शामिल हुई विधायक सोना देवी को कांग्रेस की ओर से टिकट देने से दो पूर्व विधायक दौलतराज और सोहन नायक पार्टी के खिलाफ ही एकजुट हो गए हैं। दौलत राज की मदद से सोहन नायक निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
टिकट बदलने के प्रयोग से दोनों ही सीटों पर बगावत
बीकानेर में कांग्रेस की ओर से टिकट बदलने के प्रयोग से दोनों ही सीटों बीकानेर पूर्व और बीकानेर पश्चिम में बगावत हो गई है। बीकानेर पश्चिम में पहले कन्हैयालाल झंवर और पूर्व से जिलाध्यक्ष यशपाल गहलोत को प्रत्याशी बनाया था। थोड़े ही समय में टिकटों में बदलाव किया गया। पश्चिमी से पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व नेता प्रतिपक्ष बीडी कल्ला को झंवर की जगह प्रत्याशी बना दिया। झंवर को पूर्व सीट से पहले घोषित प्रत्याशी यशपाल गहलोत की टिकट काट कर प्रत्याशी बना दिया। गहलोत का टिकट कटने से माली सैनी समाज नाराज है। इस समाज के नेता गोपाल गहलोत ने दोनों ही सीटों से कांग्रेस के खिलाफ नामांकन दाखिल किया है। गोपाल गहलोत कांग्रेस की टिकट की दावेदारी जता रहे थे।
इधर भी है बगावत:
श्रीगंगानगर जिले की सादुलशहर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी जगदीशचंद्र जांगिड़ के सामने बागी ओम बिश्नोई, बीकानेर जिले की श्री डूंगरगढ़ से भाजपा के बागी वर्तमान विधायक किशनाराम और लूणकरनसर से भाजपा के बागी प्रभूदयाल चुनाव लड़ रहे हैं।
बगावत की वजह: भविष्य में मजबूत दावेदारी और लोस चुनाव में वापसी की संभावना
विधानसभा चुनाव में बगावत की दो प्रमुख वजह है। पहला पार्टी की ओर से नजरअंदाज किए जाने पर अपनी ताकत का अहसास करवाना और अच्छे वोट मिलने पर अगली बार मजबूत दावेदारी बनना है। दूसरी वजह अप्रैल 2019 में लोकसभा चुनाव के लिए दोनों पार्टियां फिर आमने सामने होगी। तब चार महीने बाद ही वोट जुटाने के लिए बागियों को पार्टी में शामिल करना पार्टियों की मजबूरी होगी।