Rajasthan Election 2018: जानिए अशोक गहलोत के बारे में, बिस्किट खाते-खिलाते पढ़ लेते थे लोगों का मन
Rajasthan CM Ashok Gehlot: अशोक गहलोत ने तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जानिए कैसे एक जादूगर के घर में पैदा हुआ यह शख्स राजनीति का जादूगर बन गया...
जयपुर। 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने के बाद अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। अशोक गहलोत राजस्थान के जननेता माने जाते हैं। कहा जाता है कि वे कार्यकर्ताओं के लिए 24 घंटे उपलब्ध होते हैं। किसी के लिए भी उनसे फोन पर बात करना आसान है। उन्हें बड़े नेताओं वाले तामझाम पसंद नहीं। जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें -
- पढ़ाई: अशोक गहलोत का जन्म 3 मई 1951 को जोधपुर में मशहूर जादूगर लक्ष्मण सिंह गहलोत के यहां हुआ था। उन्होंने विज्ञान और कानून से ग्रेजुएशन करने के अलावा अर्थशास्त्र से एमए की पढ़ाई की है।
- लो-प्रोफाइल नेता: अशोक गहलोत 5 दशक से राजनीति में हैं और मुख्यमंत्री समेत संगठन के कई अहम पदों पर रह चुके हैं, लेकिन उनकी गिनती लो-प्रोफाइल नेताओं में होती है। वे तड़क-भड़क से दूर रह कर राजनीति करना पसंद करते हैं।
- प्रचार के दौरान बिस्किट का कमाल: अशोक गहलोत को जानने वाले बताते हैं कि वे हमेशा अपने साथ कार में बिस्किट लेकर चलते हैं। जहां भी मौका मिलता है, सड़क किनारे उतरकर लोगों को जुटा लेते हैं और चाय के साथ बिल्किट खाते हुए जनता की नब्ज भांपते हैं। शायद यही उनकी कामयाबी का राज है।
- शादी के मंडप से बिना दहेज लौटे थे: गहलोत की शादी 27 नवंबर 1977 को जयपुर निवासी सुनीता से हुई थी। उन्होंने शादी से पहले शर्त रखी थी कि एक पैसे का दहेज नहीं लेंगे। शादी के समय सुनीता के परिवार ने एक पलंग और कुछ बर्तन दहेज के लिए जुटाए तो गहलोत उसे भी छोड़कर चले आए थे। बताते हैं कि आज भी अपने ससुराल से वे शगुन के रूप में मात्र एक रुपया लेते हैं।
- कई पीढ़ियों की सियासत के गवाह: अशोक गहलोत राजस्थान के एक मात्र नेता हैं जिन्हें इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते केंद्रीय मंत्रिमंडल में काम करने का मौका मिला। यही कारण है कि आज वे राहुल गांधी के करीबी हैं।
- हारे थे पहला विधानसभा चुनाव: अशोक गहलोत ने 1977 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर जोधपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ा था। तब उन्हें करीब 4500 मतों से हार मिली थी। हालांकि अपने स्वभाव के अनुसार, वे इस हार से निराश नहीं हुए और अगले ही दिन से क्षेत्र में घूम-घूमकर काम करने लगे। इसी का नतीजा रहा कि गहलोत पहली बार 1980 में जोधपुर से ही सांसद चुने गए और बाद में पांच बार संसद में जोधपुर का प्रतिनिधित्व किया।