बहुत मजबूत है यह जोड़ टूटेगा नहीं, जानें क्यों अभेद्य है अकाली दल और भाजपा का गठबंधन
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के रिश्तों की डोर बेहद मजबूत रही है। तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद दोनो पार्टियों का गठबंधन अभेद्य रहा है।
चंडीगढ़, [अमित शर्मा]। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणिअकाली दल (शिअद) के सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल हमेशा कहते रहे हैं कि अकाली दल और भाजपा का गठबंधन दो पार्टियों का गठबंधन नहीं बल्कि 'खून और मांस' का रिश्ता है। ...और शायद यही वजह कि गठबंधन और महागठबंधन के सियासी दौर में मात्र हार-जीत के आंकड़ों तक सिमटी राजनीतिक साझ से कहीं ऊपर उठ चुका अकाली दल आज एनडीए यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सबसे विश्वसनीय और स्थिर सहयोगी का रुतबा हासिल कर चुका है।
भाजपा के साथ यही एकमात्र दल है, जिसकी पूरे विश्व में अल्पसंख्यक समुदाय विशेष की पार्टी के रूप में पहचान है। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान अविभाजित पंजाब के राजनीतिक गलियारों में सिखों को प्रतिनिधित्व देने के मकसद से 1920 में गठित शिरोमणि अकाली दल की इस राजनीतिक सांझ की शुरुआत1969 में हो गई थी। उस समय पहली बार मुख्यमंत्री बने प्रकाश सिंह बादल ने जनसंघ की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था।
अगले कुछ दशकों दौरान अनेक उतार चढ़ाव देख चुकी इस दोस्ती ने एक नया मुकाम हासिल किया 1996 में। उस समय प्रदेश में स्थिर सरकार देने का दावा कर शिअद-भाजपा गठबंधन अस्तित्व में आया। राज्य में प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनते ही देश में राजग के गठन की नींव भी पड़ गई। आगे चलकर 1999 के लोकसभा और फिर 2002 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में गठबंधन के खराब प्रदर्शन से निचले स्तर पर अकाली दल और भाजपा कैडर में बेशक आरोप प्रत्यारोप के दौर ने कई बार गठबंधन टूटने की चर्चाओं को बल दिया, लेकिन गठबंधन धर्म के प्रति अकाली दल नेतृत्व हमेशा दृढ़प्रतिज्ञ रहा।
बात चाहे 2000 में तत्कालीन आरएसएस प्रमुख केएस सुदर्शन द्वारा सिख धर्म को हिंदू धर्म का हिस्सा बताने पर पनपे राष्ट्रीय विवाद से बादल और गुरचरण सिंह टोहरा के बीच पैदा हुए मतभेद की हो या फिर हाल ही में ही तख्त श्री हजूर साहिब व तख्त श्री पटना साहिब मैनेजिंग कमेटी में भाजपा सरकारों की दखलंदाजी की, शिरोमणि अकाली दल ने 'राजनीतिक ब्लैकमेलिंग' से दूरी बनाए रखी। हालांकि भाजपा के प्रति इस दृढ़ प्रतिज्ञा ने अकाली दल के भीतर अक्सर अंदरूनी कलह को जन्म दिया और इसी के चलते सूबे में अकाली दल कई बार विघटित भी हुआ। लेकिन यह गठबंधन समय के साथ कुछ ऐसे मजबूत होता गया कि इसे हिंदू-सिख एकता का प्रतीक माना जाने लगा।
2014 के लोकसभा चुनाव में तिकोने मुकाबले में पंजाब के 13 में से छह सीटें जीतकर इस गठबंधन ने 35 फीसद वोट हासिल किए और कांग्रेस मात्र तीन सीट पर सिमट गई थी। दो वर्ष पहले 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी शिअद-भाजपा गठबंधन चुनावी इतिहास में सबसे बुरा प्रदर्शन कर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी खो बैठा, लेकिन वोट के मामले में इस गठबंधन को करीब 31 फीसद वोट शेयर हासिल हुआ।
मौजूदा समय में भी भाजपा के प्रति इस अटूट वफादारी को लेकर सिख समुदाय में पंथक राजनीतिकारों के सीधे निशाने पर आए बादल बेशक पार्टी स्तर पर एक अन्य विघटन का शिकार हो एक तरह से 'अस्तित्व की जंग' ही लड़ रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही गठबंधन से हासिल 'अभेद्य' वोट फीसद का अंकगणित पेश कर अकाली दल नेतृत्व यही साबित कर रहा है कि अगर राजग के समग्र दृष्टिकोण के साथ किसी दल का वैचारिक दृष्टिकोण मेल खाता है तो वह निसंदेह शिअद ही है।