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त्वरित टिप्पणीः अपने करिश्मे ने भी कैप्टन अमरिंदर को बनाया पंजाब का ‘सरदार’

पंजाब में कांग्रेस की जीत के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह का करिश्मा और सुनियोजित ढंग से की गई चुनावी रणनीति को भी श्रेय जाता है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 12 Mar 2017 12:15 PM (IST)Updated: Sun, 12 Mar 2017 03:58 PM (IST)
त्वरित टिप्पणीः अपने करिश्मे ने भी कैप्टन अमरिंदर को बनाया पंजाब का ‘सरदार’
त्वरित टिप्पणीः अपने करिश्मे ने भी कैप्टन अमरिंदर को बनाया पंजाब का ‘सरदार’
चंडीगढ़ [मीनाक्षी शर्मा]। पंजाब में बदलाव तो तय था, लेकिन इतने बड़े अंतर से जीत की उम्मीद कांग्रेस ने भी नहीं लगाई थी। एग्जिट पोल और राजनीतिक कयास धरे के धरे रह गए। कई एग्जिट पोल और राजनीतिक पंडित कहीं त्रिशंकु, कहीं कांटे की टक्कर की बात करते रहे, हालांकि कुछ ने कांग्रेस की जीत भी बताई थी लेकिन इतनी एकतरफा नहीं। शायद पंजाब के लोगों के मन को वह नहीं पढ़ पाए।

पंजाब ने फिर पूर्ण बहुमत नहीं, प्रचंड बहुमत की सरकार दी और अपने पंजाब के कप्तान को वापस ले आए। दस साल बाद सही में अपने ही जन्मदिन पर अमरिंदर सरकार की वापसी बेहद शानदार तरीके से हुई है। कयास पहले लगे.. कयास अब भी लगेंगे कि इस बार के चुनाव में एंटी इंकंबेंसी की वजह से कांग्रेस को जीत मिली। सही में सत्ता विरोधी लहर मुखर थी, फिर त्रिकोणीय मुकाबले में आम आदमी पार्टी को उसे भुनाना चाहिए था तो फिर आप का यह 20 वाला आंकड़ा न आता। इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि जीत ज्यादा कांग्रेस की रीति-नीतियों और मुद्दों पर तो मुनस्सर रही ही, कैप्टन का करिश्मा और सुनियोजित ढंग से की गई चुनावी रणनीति को भी श्रेय जाता है।

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‘काफी विद कैप्टन’ और ‘घर-घर कैप्टन’ आदि कई प्रोग्राम कैप्टन ने ऐसे किए थे जिनसे वह लोगों और खासकर युवाओं से सीधे जुड़े थे। वह खुद अपने फेसबुक और ट्वीटर अकाउंट आदि हैंडल करते हैं और युवाओं के कई सवालों के जवाब वहां देते थे। एसवाइएल और किसानों आदि को लेकर जहां उनका स्टैंड स्पष्ट था वहीं पंजाब के ड्रग्स के मुद्दे को भी भुना गए कि सत्ता संभालते ही चार हफ्ते में ड्रग्स खत्म करेंगे। पूर्व की तरह अकालियों, खासकर बादल परिवार के खिलाफ कड़े व गरम लहजे से उन्होंने इस बार दूरी बनाए रखी। उनका सकारात्मक तरीके से पूरा फोकस पंजाब के हर वर्ग पर था।

अकाली-भाजपा के खिलाफ जनता का रोष तो जमकर था। हालांकि विकास कार्य हुए और लोग मानते भी थे लेकिन कुछेक मुद्दों पर सरकार अपने-आप को उस घेरे से बचा न पाई। वो चाहे ड्रग्स का था, चाहे करप्शन का। फिर बदलाव की बयार ने तो हिला ही दिया। सिंगल डिजिट तक सिमटेंगे, इससे निकल कर दहाई तक तो पहुंचे और अच्छे मार्जिन से दिग्गजों ने साख भी बचा ली। आखिर में डेरे के समर्थन, जिससे सिख नाराज थे, उससे भी उनके काडर सिख वोट का इधर-उधर होना भी अकाली दल को भारी पड़ा, तो बेअदबी के मामलों का रोष भी चुनाव में ङोलना पड़ा।

पंजाब के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा तिकोना मुकाबला रहा या दिखता रहा। नतीजों की जमीनी हकीकत तो कुछ और ही निकल कर आ गई। मालवा की 69 में अधिकतर सीटों पर आप का दबदबा बताया जा रहा था मगर उसे मात्र 18 सीटें ही वहां मिली और 40 कांग्रेस को । पंजाब ने पूरे दिल से कैप्टन को पंजाब का बादशाह बना दिया और जिस यकीन से बनाया है, उम्मीद है कि उसी शिद्दत से मुंह बाए खड़े मुद्दों को वादों के मुताबिक निपटाएंगे। अब किसानों की दुर्दशा, बेरोजगारी और नशा जैसी चुनौतियां उनके सामने है। अब कसौटी पर खरा उतरने का उनका समय है। तभी वह सही मायनो में पंजाब के कप्तान होंगे।


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