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UP Lok Sabha Election Result 2019 : बेमेल गठबंधन से उत्तर प्रदेश में साइकिल पंचर

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सपा नेताओं का मानना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को जितना झटका लगा था उससे ज्यादा नुकसान इस चुनाव में बसपा से गठबंधन करके हो गया है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 07:38 PM (IST)Updated: Sat, 25 May 2019 01:05 PM (IST)
UP Lok Sabha Election Result 2019 : बेमेल गठबंधन से उत्तर प्रदेश में साइकिल पंचर
UP Lok Sabha Election Result 2019 : बेमेल गठबंधन से उत्तर प्रदेश में साइकिल पंचर

लखनऊ [अमित मिश्र]। लोकसभा चुनावों के नतीजों ने समाजवादी पार्टी को अभूतपूर्व दर्द दिया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पूरी ताकत झोंकने के बावजूद जहां कन्नौज में पत्नी डिंपल यादव को नहीं जिता पाए तो फीरोजाबाद और बदायूं में सांसद रहे उनके दोनों चचेरे भाई अक्षय यादव और धर्मेंद्र यादव भी अपनी सीट हार बैठे। उधर मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव की जीत का अंतर 2014 के मुकाबले केवल एक चौथाई रह जाने से भी पार्टी को गहरा झटका लगा है।

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यह भले ही आज ज्यादा मायने न रखता हो कि समाजवादी पार्टी की सत्ता मुलायम सिंह यादव की मर्जी से अखिलेश यादव के पास आई थी या अखिलेश ने जबरन हथिया ली थी लेकिन, यह जरूर खास बात थी कि पुत्र ने जब पिता की राजनीतिक विरासत संभाली तो उन नीतियों और सावधानियों को दरकिनार कर दिया, जिनकी बदौलत मुलायम ने पार्टी को खड़ा किया था। अखिलेश ने केवल पिता की जगह ही नहीं अपनायी, पिता के सियासी दुश्मनों को भी अपना लिया। नतीजा हुआ कि बेमेल गठबंधन के चक्कर में साइकिल का कबाड़ा हो गया।

मुलायम ने सियासत में अलग पहचान बनाने के लिए हमेशा संघर्ष का रास्ता चुना और कभी ऐसा गठबंधन नहीं किया, जिसमें उनके सम्मान या पार्टी की पहचान पर कोई आंच आने का खतरा हो। उनकी इस दृढ़ता ने एक वक्त में उन्हें प्रदेश में यादवों और मुसलमानों का एकछत्र नेता बना दिया था। मुलायम यही नसीहत पुत्र को देना चाहते थे लेकिन, खुद ही अपना नाम रखने का दावा करने वाले अखिलेश ने पिता को अनसुना कर दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके राहुल गांधी को दोस्त बनाया तो सरकार गंवा बैठे और अब लोकसभा चुनाव के लिए बसपा के आगे झुके तो न केवल परिवार की तीन सीटें खो दीं, बल्कि कुल सीटों की संख्या भी सात से घटकर पांच रह गई।

बसपा से गठबंधन करने को उत्सुक अखिलेश को मुलायम ने तब अपने तरीके से समझाया था कि इससे हाथी जिंदा हो जाएगा और सपा को नुकसान होगा लेकिन, परिवार और पार्टी में खुद को साबित करने को बेताब अखिलेश पिता का वह संकेत समझ नहीं सके। अखिलेश ने जब गठबंधन के तहत समझौता किया, तब भी मुलायम ने यह कहकर नाराजगी जताई थी कि आधी से ज्यादा सीटें तो हम बिना लड़े ही हार गए। अखिलेश के करीबी लोगों के मुताबिक उन्हें लगता था कि पिछले चुनाव में पांच सीटों पर सिमटी सपा इस बार अकेले दम पर उतनी सीटें नहीं ला पाएगी, जितनी उसे बसपा के साथ 37 सीटों के गठबंधन से मिल जाएंगी।

दौड़ने की कोशिश में फिसले

2017 का विधानसभा चुनाव आने से पहले अखिलेश ने न केवल पार्टी पर नियंत्रण स्थापित कर लिया, बल्कि आगे बढ़ने के लिए बड़ी और विरोधी पार्टियों से गठबंधन का वह रास्ता भी पकड़ लिया, जिससे मुलायम परहेज करते थे। यह आगे बढ़ने की अखिलेश की छटपटाहट ही थी, जिसने उन्हें पार्टी और मतदाताओं के स्वाभिमान की कीमत पर धुर विरोधी बसपा के आगे झुकने को मजबूर कर दिया। अखिलेश ने पत्नी से मायावती के पैर मंच पर छुआए और हर वो काम किया, जिससे न तो मायावती को कोई बात बुरी लगने पाए और न गठबंधन पर आंच आए।

'यूपी के दो लड़कों' वाले साथ से ज्यादा नुकसान 

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सपा नेताओं का मानना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से जुड़कर 'यूपी के दो लड़कों' वाले साथ से पार्टी को जितना झटका लगा था, उससे कहीं ज्यादा नुकसान उसका इस चुनाव में बसपा से गठबंधन करके हो गया है। गठबंधन के लिए अखिलेश की आतुरता और बसपा अध्यक्ष मायावती के आगे हर समझौते के लिए झुकने को तैयार रहने की जिद सपा के परंपरागत यादव वोट बैैंक के स्वाभिमान पर चोट कर गई। सपा-बसपा की संयुक्त रैलियों में लोगों ने जब देखा कि डिंपल यादव और तेजप्रताप यादव तो मायावती के पैर छू रहे हैैं लेकिन, मायावती के भतीजे आकाश ने मुलायम के पैर नहीं छुए तो मैनपुरी और कन्नौज सहित आसपास के यादवों के बीच एक अलग तरह का संदेश गया।

यादव इससे आहत हुए तो दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में जहां यादव व दलित मतदाताओं में परंपरागत रार चलती है, वहां दलितों ने भी सपा प्रत्याशियों से किनारा कर लिया। नतीजा यह हुआ कि बसपा तो सपा के वोट बैैंक के साथ शून्य से दस पर आ गई, लेकिन सपा की सात सीटें घटकर न केवल पांच रह गईं, बल्कि परिवार के तीन सदस्यों की भी सीट चली गई। यह तब हुआ जब एक तरफ बसपा से गठबंधन था तो उधर कांग्रेस ने भी सपा परिवार के प्रत्याशियों के सामने कन्नौज, बदायूं और फीरोजाबाद में उम्मीदवार नहीं उतारा था।

सपा संरक्षक मुलायम पहले ही आधी सीटों पर चुनाव लडऩे को आधी सीटेें हारना मान रहे थे तो अब इन नतीजों के बाद सपा के शीर्ष परिवार के भीतर से ही गठबंधन को लेकर सवाल उठने लगे हैैं। पार्टी में भी कार्यकर्ता अब बसपा के वोट बैैंक को लेकर आशंकित हैैं। उनका कहना है कि जैसे नतीजे आए हैैं उससे भविष्य अच्छा नहीं दिख रहा, जितनी जल्दी हो सके सपा को फिर अपने दम पर चलने के रास्ते पर आगे बढऩा होगा।

मुलायम को भी झटका

मैनपुरी से मुलायम ने 1996 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था। वह यहां के खेतों तक में भाषण दे चुके हैैं। सपा को उम्मीद थी कि पिछली बार 3.64 लाख वोटों के अंतर से जीते मुलायम इस बार रिकॉर्ड बनाएंगे लेकिन, कमजोर कहे जाने वाले भाजपा प्रत्याशी ने उन्हें ऐसी टक्कर दी कि जीत का अंतर 94 हजार रह गया।

रामपुर, मुरादाबाद व संभल में जीत

आजमगढ़ में अखिलेश यादव और मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव को जिताने के अलावा सपा के खाते में मुरादाबाद, रामपुर व संभल की सीटें आई हैैं। देर रात तक रामपुर में आजम खां और मुरादाबाद में डॉ.एसटी हसन जीत दर्ज करा चुके थे, जबकि संभल में डॉ.शफीकुर्रहमान भाजपा प्रत्याशी से करीब पौने दो लाख वोटों से आगे थे।

शिवपाल ने लगाई निर्णायक सेंध

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया बनाकर चुनाव उतरे शिवपाल ने जहां प्रदेश की पचास सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, वहीं फीरोजाबाद से अपने भतीजे अक्षय यादव के मुकाबले वह खुद मैदान में आ गए थे। शिवपाल का असर इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा प्रतिद्वंद्वी से अक्षय 28,781 वोटों से हारे, जबकि शिवपाल ने 91,651 वोट हासिल किए। माना जा रहा था कि शिवपाल ने चुनौती न दी होती तो उनको मिले वोट अक्षय के ही खाते में जाते। कई अन्य सीटों पर भी तीसरे नंबर पर नजर आ रहे शिवपाल के प्रत्याशियों ने सपा के वोटों में ही सेंध लगाई है। 

खास बातें

  1. पूरी ताकत झोंकने पर भी कन्नौज में नहीं बची डिंपल यादव की सीट
  2. बदायूं व फीरोजाबाद में अखिलेश के चचेरे भाइयों ने भी गवांई सीटें
  3. मैनपुरी में 2014 के मुकाबले एक चौथाई रह गया मुलायम की जीत का अंतर
  4. उपचुनाव में मिलीं गोरखपुर व फूलपुर की सीटें भी हाथ से गईं
  5. मुरादाबाद, संभल व रामपुर पर कब्जे से पार्टी को मिली कुछ राहत

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