सोशल मीडिया बना चुनाव आयोग के लिए चुनौती, ढूंढे नहीं मिल रहे एक्सपर्ट
लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया एक बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। चुनाव आयोग सोशल मीडिया पर नजर तो रख रहा है लेकिन वह बहुत प्रभावी नहीं दिख रहे।
चंडीगढ़ [कैलाश नाथ]। सोशल मीडिया चुनाव आयोग के लिए चुनौती बन गया है। क्षण प्रतिक्षण सोशल मीडिया पर आने वाली जानकारी का स्वरूप न सिर्फ बदल रहा है बल्कि एक ही समय पर कई प्रकार की जानकारी आ रही हैं। पार्टियों व नेताओं के लिए सोशल मीडिया एक मजबूत हथियार बनता जा रहा है। लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया एक बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। चुनाव आयोग सोशल मीडिया पर नजर तो रख रहा है, लेकिन वह बहुत प्रभावी नहीं दिख रहे, क्योंकि आयोग को सोशल मीडिया एक्सपर्ट मिल नहीं पा रहे।
पंजाब के मुख्य चुनाव अधिकारी डॉ. एस करुणा राजू भी यह मानते हैं कि यह एक नया सेक्टर और नई चुनौती है। हम राजनीतिक पार्टियों के एकाउटों पर तो नजर रख सकते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर किसी चीज के जनरेट होने के कई और भी स्रोत मौजूद हैं।
डॉ. राजू कहते हैं, आयोग ने सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए टीम बनाने के निर्देश दिए हैं। इस टीम में एक्सपर्ट को शामिल करने के लिए कहा गया है, लेकिन एक्सपर्ट कौन है? इसकी पहचान करना मुश्किल हो रहा है, जबकि मोबाइल फोन हरेक व्यक्ति के हाथ में पहुंच गया है और लगभग सभी मोबाइल उपभोक्ता सोशल मीडिया से भी जुड़ चुके हैं।
आयोग के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सोशल मीडिया पर प्रचार सामग्री या किसी पार्टी के हक में अपील डालने आदि के पोस्ट डालने पर यह जांच करना मुश्किल है कि प्रत्याशी या पार्टी ने ही वह डाला है। वहीं, उनके ओरिजनल स्रोत की जानकारी लेना भी आसान नहीं है। वहीं, नया सेक्टर होने के कारण इस पर लगाम लगाने के लिए कानून भी नहीं है।
यह पर दिक्कतें
- प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया में किसी भी प्रकार का विज्ञापन जारी करने से पहले चुनाव आयोग से मंजूरी लेनी पड़ती है। विज्ञापन जारी करने पर खर्च प्रत्याशी या पार्टी के खाते में जुड़ता है। सोशल मीडिया में ऐसा नहीं है।
- किसी पार्टी या प्रत्याशी के हक में प्रचार या उसके हक में किसी प्रकार का वीडियो सोशल मीडिया पर आने के बाद यह पता करना मुश्किल की वीडियो या प्रचार सामग्री प्रत्याशी या पार्टी ने ही दिया है। क्योंकि सोशल मीडिया पर आने वाली सामग्री का स्रोत पता करना मुश्किल।