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शेर सिंह की राजनीतिक चेतना को बना दिया था मजाक, आज भी भुगत रहा वनराजि समाज

वन राजि समाज के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से स्‍कूल की मांग करने वाले शेर सिंह को उन्‍होंने रेडियो उपहार में दिया था जब वे वापस लौटे तो लोगों को लगा यही मांगने गए थे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 10:08 AM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 07:28 PM (IST)
शेर सिंह की राजनीतिक चेतना को बना दिया था मजाक, आज भी भुगत रहा वनराजि समाज
शेर सिंह की राजनीतिक चेतना को बना दिया था मजाक, आज भी भुगत रहा वनराजि समाज

पिथौरागढ़, ओपी अवस्थी : प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति वनराजि के व्यक्ति ने 29 साल पहले जिले से बाहर कदम रखा था। गणतंत्र दिवस के मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर देश भर आदिवासी सदस्यों से मुखातिब हुए थे। तब वनराजि शेर सिंह रजवार ने अपने क्षेत्र के लिए एक स्कूल की मांग रखी। पीएम ने उपहार में उन्हें एक रेडियो दिया। शेर सिंह जब लौटे तो उनके पास रेडियो देख क्षेत्र में यह बात फैल गई कि रजवार ने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री से रेडियो मांगा था। इस चर्चा ने वनराजि समाज की राजनीतिक चेतना को शून्य बताते हुए मजाक का विषय ही बना डाला। यह मजाक वनराजि समाज पर इस कदर भारी पड़ा है कि आजादी के 71 साल बाद भी उनकी स्थिति जस की तस ही है।

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सीमांत पिथौरागढ़ जिले की तहसील डीडीहाट के कूटा चौरानी गांव में रहने शेर सिंह गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने वाले पहले सदस्य थे। उस समय देश के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा थे। दिल्ली में जब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने शेर सिंह से पूछा तो उसने अपने समाज के बारे में बताते हुए अपने गांव में बच्चों के लिए स्कूल मांगा। तब पीएम चंद्रशेखर ने उसे एक रेडियो/टेप रिकार्डर (टू इन वन) उपहार में दिया। टेप के लिए कैसेट नहीं होने से शेर सिंह ने एक दुकान से इसके बदले सामान्य रेडियो लिया। जो आज भी उनके पास सुरक्षित है।

शेर सिंह की इस मांग पर पहली बार 1993 में कूटा चौरानी गांव में प्राथमिक विद्यालय भी खुला। स्कूल खुलने की बात तो हाशिए पर चली गई मगर, शेर सिंह के दिल्ली जाकर पीएम से रेडियो मांगने की बात चर्चा में रही। आज भी नौ गांवों में रहने वाले 625 वनराजि मतदाता होने के बाद भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं।

अभियंता ने लिख दिया बिजली नहीं चाहते हैं वनराजि

इस गांव तक बिजली पहुंचाने की प्रक्रिया के तहत विभाग का एक अभियंता गांव पहुंचा। उसने एक बुजुर्ग रजवार से बात की जो बधिर था। अभियंता ने अपनी रिपोर्ट में लिख दिया कि वनराजि बिजली नहीं चाहते हैं। लिहाजा आज तक बिजली नहीं पहुंची।

वनराजियों पर शोध कर डेढ़ सौ लोग ले चुके हैं पीएचडी

एक ओर डीडीहाट और धारचूला में रहने वाले वनराजियों पर शोध कर लगभग डेढ़ सौ लोग पीएचडी कर चुके हैं। दूसरी तरफ जिनके जीवन पर शोध हुआ उनके जीवन का स्तर आज भी दयनीय ही है।

वनराजि समाज से ही गगन रजवार दो बार विधायक बने

राज्य बनने के बाद धारचूला विधानसभा क्षेत्र बना, जिसे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया। इससे अनारक्षित वर्ग में आक्रोश फैल गया था।  2002 में इस क्षेत्र में एक अलग राजनैतिक समीकरण बन गया। क्षेत्र के सामान्य वर्ग के लोग लामबंद हो गए। सामान्य वर्ग बहुल क्षेत्र की जनता ने राजनीतिक दलों से किनारा कर सर्वसम्मति से वनराजि समुदाय के एक युवक गगन रजवार को अपना प्रत्याशी बनाया और उसे जिता कर विधानसभा भेज दिया। 2007 में सीट के आरक्षित रहने पर इसी प्रक्रिया को दोहराया गया। 2012 में सीट के सामान्य होते ही राजनैतिक दल सक्रिय हो गए और वनराजि क्षेत्र का विधायक हाशिए पर चला गया।

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