उत्तर बंगाल के अलीपुरदुआर लोकसभा सीट मतदान को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 11 अप्रैल को उत्तर बंगाल के अलीपुरदुआर लोकसभा सीट के लिए होने वाले मतदान को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
सिलीगुड़ी, अशोक झा। कहते हैं दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, लेकिन 2019 में पश्चिम बंगाल के बूते भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का दावा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कर रही हैं। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस बार उत्तर प्रदेश के अलावा बंगाल से भी आस लगाए बैठे हैं इसलिए लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 11 अप्रैल को उत्तर बंगाल के अलीपुरदुआर लोकसभा सीट के लिए होने वाले मतदान को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि इस क्षेत्र में सर्वाधिक 200 से अधिक चाय बगान और उससे जुड़े पांच लाख से अधिक आदिवासी श्रमिक। चाय श्रमिकों की नाराजगी सभी दलों के लिए घातक साबित हो सकती है। इस संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा चाय बगान बंद हैं। चाय श्रमिकों को आजादी के पूर्व से अबतक घर बनाने के लिए अपनी जमीन तक नहीं मिली है। न्यूनतम मजदूरी को लेकर सालों से वे आंदोलन करते आ रहे हैं। आश्वासन और बैठकों के दौर के अलावा उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हो पाया है।
इस बात को कांग्रेस की ट्रेड यूनियन इंटक के नेता आलोक चक्रवर्ती और माकपा की ट्रेड यूनियन सीटू के नेता गौतम घोष भी स्वीकार करते हैं। इन नेताओं का कहना है कि चाय बगान की उपेक्षा अपनी चरम सीमा पर है। उसी तरह चाय श्रमिकों का रोष भी उबाल पर है। इसे समय रहते शांत नहीं किया गया तो उत्तर बंगाल की पहचान माना जाने वाला चाय उद्योग समाप्त हो जाएगा। भाजपा की ट्रेड यूनियन के नेता जॉन बारला का कहना है कि चाय श्रमिकों को कांग्रेस, वाममोर्चा और अब तृणमूल कांग्रेस ने सिर्फ वोट बैंक के लिए इस्तेमाल किया। इसी संसदीय क्षेत्र के मदारीहाट के मतदाताओं ने मनोज तिग्गा को विधायक बनाया। उनके कामकाज से लोग इतने प्रभावित हैं कि उन्हें आस जगी है कि अगर लोकसभा चुनाव में भी भाजपा का साथ उन्हें मिले तो उनकी समस्या का समाधान होगा।
इसके विपरीत अलीपुरदुआर के विधायक सौरव चक्रवर्ती का कहना है कि जब से सत्ता में मां-माटी-मानुष की सरकार आई है, तभी से चाय श्रमिकों की समस्याएं दूर करने का लगातार प्रयास कर रही है। चाय बगानों की समस्याओं के समाधान के लिए बोर्ड बनाकर 100 करोड़ रुपये भी दिए गए। कई तरह के विकास कार्य भी किए जा रहे हैं। यही कारण है चाय श्रमिकों के बीच के ही नेता दशरथ तिर्की को तृणमूल ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। दूसरी पार्टी भी चाय श्रमिकों की नाराजगी को ध्यान में रखकर ही अपने उम्मीदवार का चयन करने में लगी है। 27 ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच ज्वाइंट फोरम उनकी समस्याओं को लेकर पहली अप्रैल से आंदोलन की घोषणा कर चुका है।