शहर, समाज की प्रगति के पांच प्रमुख आधार-अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और सुरक्षा पर 12 शीर्ष विशेषज्ञों की राय

प्राइम टीम, नई दिल्ली। एक सभ्य और प्रगतिशील राष्ट्र की पहचान उसके जीवंत लोकतंत्र से होती है, और एक क्रियाशील लोकतंत्र की नींव एक जागरूक मतदाता है। और, एक 'जागरूक मतदाता' वह है जो न केवल उम्मीदवारों को बल्कि राष्ट्रीय विकास के मूलभूत स्तंभों - अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और सुरक्षा को भी समझता है, जो उनकी, उनके परिवार, समाज, शहर और राष्ट्र की प्रगति के आधार हैं। जागरण न्यू मीडिया की 'मेरा पावर वोट' पहल गहन शोध और शीर्ष विशेषज्ञों के सहयोग से इन सभी महत्वपूर्ण विषयों पर मतदाता जागरूकता बढ़ाने का एक समर्पित प्रयास है। हमारा अभियान स्पष्ट है- मतदाताओं को ईवीएम का बटन दबाने से पहले प्रभावी निर्णय लेने के लिए जागरूक करना।

हर सेगमेंट को गहराई से समझने के लिए हमने उसे चार हिस्से में बांटा है। इसमें महिला, युवा, शहरी मध्य वर्ग और किसान शामिल हैं। डेटा और रिसर्च के जरिए आजादी से अब तक इन क्षेत्रों की विकास यात्रा बताई है। साथ ही, विषय विशेषज्ञों के साथ मिलकर भविष्य की चुनौतियां समझने और उनका समाधान भी तलाशने की कोशिश की है।

इस कैंपेन के लिए हमने उद्योग संगठन फिक्की के महासचिव शैलेष पाठक, एनएचएआई के पूर्व सलाहकार वैभव डांगे, अर्थशास्त्री मनोरंजन शर्मा, आईपी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा. दुर्गेश त्रिपाठी और बेनेट यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर डा. मनीष भल्ला, लेफ्टिनेंट कर्नल (रि) अमरदीप त्यागी और लेफ्टिनेंट कर्नल (रि) जे.एस.सोढ़ी समेत एक दर्जन से अधिक विशेषज्ञों को अपने साथ जोड़ा।

तो इस चुनाव में वोट जरूर डालिए, लेकिन उससे पहले शिक्षा, स्वास्थ्य, इकोनॉमी, इन्फ्रा और सुरक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों पर देश के हालात भी जान लीजिए।

इकोनॉमीः महिलाओं को सशक्त, युवाओं को हुनरमंद बनाना जरूरी, मध्य वर्ग और किसान को आय की चिंता

विभिन्न वर्गों के लिए इकोनॉमी की स्थिति पर हमने इन्फोमेरिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट तथा केनरा बैंक के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट डॉ. मनोरंजन शर्मा और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ गवर्मेंट एंड पब्लिक पॉलिसी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. अवनींद्र नाथ ठाकुर से बात की।

इकोनॉमी पर चर्चा का वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें

विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान ने महिलाओं को हर तरह की समानता दी, लेकिन वास्तविक रूप में ऐसा नहीं हो सका। हमें महिला सशक्तीकरण, उनकी शिक्षा और आय सृजन के स्रोत बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। भारत में महिलाओं के लिए काम की जगह आना-जाना आज भी काफी चुनौतीपूर्ण है। असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। जेंडर इक्वलिटी हो तो भारत की जीडीपी 700 अरब डॉलर बढ़ सकती है। (वीडियो)

युवाओं के लिए विशेषज्ञ स्किल गैप दूर करने को सबसे जरूरी मानते हैं। इसके लिए स्किल बेस्ड ट्रेनिंग और शिक्षा की क्वालिटी पर ध्यान देने की आवश्यकता है। डेमोग्राफिक डिविडेंड के लिए हमारे पास सिर्फ 15 साल का समय बचा है, इसलिए हमें रोजगार सृजन तेजी से करना पड़ेगा। (वीडियो)

शहरी मध्य वर्ग के सामने महंगाई के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, ट्रांसपोर्टेशन के बढ़ते खर्च की समस्या है। विशेषज्ञों ने इसके लिए पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने का सुझाव दिया। उनका कहना है कि बेरोजगारी बड़ी चुनौती है, खासकर शिक्षित वर्ग में। उनमें अंडर-एंप्लॉयमेंट की भी समस्या है, जिसे दूर करना अहम है। (वीडियो)

किसानों की बात करें तो करीब 66% आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और 47% लोग खेती पर निर्भर हैं, जबकि जीडीपी में कृषि का योगदान सिर्फ 15% है। दूसरी तरफ किसानों के सामने जलवायु संकट के रूप में नई समस्या आ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हम ऐसी प्रैक्टिस शुरू करें जो जलवायु के मुफीद हो और स्थानीय स्तर पर उसे अपनाया जा सके, तो वह एक अच्छा समाधान हो सकता है। भारत में 80% से 82% छोटे किसान हैं। उनकी उत्पादकता बढ़ाने के उपाय करने होंगे। (वीडियो)

इन्फ्रास्ट्रक्चरः इन्फ्रा में एक रुपया लगाने से साढ़े तीन रुपये का फायदा

इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर हमने उद्योग संगठन फिक्की के महासचिव शैलेष पाठक और एनएचएआई के पूर्व सलाहकार वैभव डांगे से बात की। देश में उल्लेखनीय इन्फ्रास्ट्रक्चर के सवाल पर पाठक ने कहा, अगर मुझसे कोई साल 2000 में कहता कि 2024 तक भारत में ढेर सारे एक्सप्रेस वे बन चुके होंगे, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बन चुका होगा, देश में RRTS बन रही होगी या बुलेट ट्रेन परियोजना शुरू होने वाली होगी, तो मैं विश्वास नहीं करता। लेकिन आज ये सब मौजूद हैं। पाठक ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वह है इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स को स्पीड और स्केल के साथ पूरा करना।

वैभव डांगे ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। जैसे हमारे शरीर में रक्त धमनियां होती हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर हमारी अर्थव्यवस्था की धमनियां होती हैं। धमनियां जितनी सशक्त होती हैं, हमारा शरीर उतनी ही मजबूती से काम करता है। रोड, रेलवे, एविएशन या बंदरगाह से ही सारा सामान ट्रांसपोर्ट होता है, यह सब अच्छे इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ही निर्भर है। हमारा इन्फ्रास्ट्रक्चर जितना मजबूत होगा, हमारी अर्थव्यवस्था भी उतना ही मजबूत होगी।

देखें वीडियो- इन्फ्रा  में 1 रुपया लगाने से साढ़े तीन रुपये का फायदा, अगले दो दशक में बनेंगे विकास के अनेक मौके

डांगे ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर का दूसरा सबसे बड़ा एडवांटेज ये है कि इस पर खर्च होने वाला सारा पैसा कैपिटल एक्सपेंडिचर होता है और उसके फायदे कई तरीके से होते हैं। यह हमारी अर्थव्यवस्था को गति देने का काम करता है। इसलिए दुनिया में जब भी अर्थव्यवस्थाएं कठिन दौर से गुजरती हैं तो अर्थशास्त्री सबसे पहले उस देश की सरकार को कहते हैं कि आप इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करिए।

देखें वीडियो- ऐसे इन्फ्रा पर फोकस हो जिससे बाद में युवाओं के लिए रोजगार बढ़ें: विशेषज्ञ

डांगे ने कहा कि पिछले दस साल में हमने बहुत तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर में परिवर्तन देखा है। पहले, देश में रोजाना लगभग 10-11 किमी हाईवे बन रहा था, आज 35 किमी बन रहा है। एयरपोर्ट की संख्या 76 से बढ़कर डेढ़ सौ के आस-पास हो गई है। हमारे बंदरगाहों की क्षमता कई गुना बढ़ गई है। वाटरवे पर फोकस एक बहुत यूनिक परिवर्तन है। आज गंगा में बनारस से सामान के सीधा हल्दिया और वहां से बांग्लादेश तक जाता है। यह ट्रांसपोर्ट का सबसे सस्ता माध्यम है।

देखें वीडियो: नीति निर्माताओं को टियर-2, टियर-3 शहरों के इन्फ्रा पर फोकस करना चाहिए: विशेषज्ञ

पाठक ने कहा, एक पुरानी कहावत है कि “Where there is a will, there’s a way” और “Where there is no will, there’s a survey”, तो हमारे यहां सर्वे ही होते रहते थे, काम पूरे नहीं होते थे। आज हमारे यहां काम हो रहे हैं और वो भी स्पीड और स्केल के साथ। उदाहरण के लिए, मुंबई के ट्रांस हार्बर लिंक की बात 1965 से हो रही थी, लेकिन वह अब बना।

डांगे ने कहा कि जिस तरह इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हो रहा है, उससे निवेश, रोजगार, क्रय शक्ति सबको मदद मिलेगी। अब तो राज्यों में एक्सप्रेस वे को लेकर स्वस्थ प्रतियोगिता चल रही है। पाठक ने कहा, इकोनॉमिक्स में कहा जाता है कि आप एक रुपया इन्फ्रास्ट्रक्चर में लगाइएगा तो साढ़े तीन रुपये का फायदा मिलेगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर में जिस तरह निवेश हुआ है, उससे आप सोच सकते हैं आने वाले बीस साल में कितने मौके बनने वाले हैं।

शिक्षा : एनईपी साबित होगा गेमचेंजर, डिजिटल एजुकेशन के मामले में अव्वल भारत

देश में शिक्षा के क्षेत्र में आए आमूल-चूल बदलावों और चुनौतियों को लेकर हमने आईपी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन के विजिटिंग फेलो डा. दुर्गेश त्रिपाठी और बेनेट यूनिवर्सिटी के आईक्यूएसी के डायरेक्टर और न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस सोसाइटी के सदस्य डा. मनीष भल्ला से बात की।

वीडियोNEP साबित होगा गेमचेंजर, विकसित भारत में अहम होगी भूमिका

उनका कहना है, आजादी के बाद शिक्षा में महिलाओं ने काफी तरक्की है। स्टेम में भारतीय महिलाओं का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। आर्ट्स, स्पेस और इकोनॉमिक्स में भी उनका योगदान लगातार बढ़ रहा है। दुर्गेश त्रिपाठी कहते हैं कि इसमें एक और ‘एम’ जोड़ने की आवश्यकता है। वह एम प्रबंधन का है। इससे समग्र तस्वीर सामने आएगी। सर्व शिक्षा अभियान समेत सरकार की कई योजनाओं ने इस बदलाव में अहम भूमिका निभाई है।

डा. मनीष भल्ला कहते हैं कि सरकार की नीतियां गांव तक पहुंची हैं। इंटरनेट और डिजिटलीकरण की सुविधा भी गांव के लोगों को मुहैया हो रही है। सरकार ने एक नारा दिया था बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। डिजिटल लाइब्रेरी जैसे इनीशिएटिव बेहद काम के साबित हो रहे हैं। साइंस विषय में महिलाओं को बढ़ते रुझान से भी तस्वीर बदली है।

वीडियो : डिजिटल एजुकेशन, इनक्लूजन के मामले में भारत बन रहा अव्वल

ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा के बारे में दुर्गेश त्रिपाठी कहते हैं कि भारत विकासशील से विकसित होने की प्रक्रिया में है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा केंद्रों की संख्या बढ़ानी होगी। उनकी पहुंच और एक्सेसबिलिटी को भी मजबूत करना होगा।

वीडियो : गांव में शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियां और समाधान

राष्ट्रीय शिक्षा नीति कैसे युवाओं का जीवन बदलेगी, इस प्रश्न पर डा. मनीष भल्ला कहते हैं कि एनईपी से गुणवत्ता में बदलाव आएगा। करीकुलम में फ्लेक्सिबिलिटी से छात्रों के लिए मौके के साथ नए आयाम बढ़ेंगे। एनईपी गेमचेंजर है और यह करियर के विकल्प बढ़ाएगा। इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुसार लोग तैयार होंगे।

वीडियो : महिलाओं को समान अवसर मुहैया कराना प्राथमिकता

शिक्षा में एआई के बढ़ते इस्तेमाल पर दुर्गेश त्रिपाठी कहते हैं, मैं मानता हूं कि एआई का असर नौकरियों पर पड़ेगा। जब कंप्यूटर देश में आया था, इस तरह के कयास लगाए जाते थे कि लोगों की नौकरियां चली जाएंगी। लोगों को एआई का सदुपयोग करना आना चाहिए। एआई क्रिएटिविटी को सपोर्ट करता है लेकिन उससे आगे नहीं जा सकता है। भारत आने पर बिल गेट्स ने एक इंटरव्यू में कहा था कि आने वाले समय में भारतीय युवा विश्व में नंबर वन होंगे, डिजिटल एजुकेशन में भारत का योगदान विश्व में अव्वल होगा और भविष्य भारत के युवाओं का होगा।

वीडियो : शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियां और समाधान

सुरक्षा: आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए कई मोर्चों पर करनी होगी तैयारी

देश की सुरक्षा मजबूत बनाने के अब तक के प्रयासों, आज की जरूरतों और चुनौतियों के बारे में हमने रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल अमरदीप त्यागी से बात की।

युवाओं में ड्रग्स की बढ़ती लत पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल त्यागी कहते हैं कि भारत दो बड़े ड्रग्स सप्लायर्स के बीच फंसा है। एक तरफ गोल्डन ट्रैंगल है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान। दुश्मन देश चाहते हैं कि भारत को किसी भी तरह से कमजोर किया जाए। हमें देश में आने वाले ड्रग्स पर लगाम लगाने के साथ नशे की चपेट में आ चुके युवाओं को भी बाहर निकालने की कोशिश करनी होगी।

रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल त्यागी कहते हैं कि किसी भी देश के पास प्राकृतिक संसाधन सीमित होते हैं। शरणार्थी इन संसाधनों पर बोझ बढ़ाने के साथ कई समस्याएं भी पैदा करते हैं। रोजगार के बेहतर मौके न मिलने से ये अपराध में लिप्त हो जाते हैं। पिछले एक साल में सिर्फ 16 रोहिंग्या को वापस भेजा जा सका है। हमें इसमें तेजी लानी होगी और बॉर्डर फेंसिंग मजबूत करनी होगी।

आत्मनिर्भर भारत अभियान को रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल त्यागी बड़ी पहल मानते हैं। वे कहते हैं 1962 में चीन से युद्ध के दौरान हमारे पास संसाधन नहीं थे, कोई देश हथियार देने को भी तैयार नहीं था। हमें अपनी सुरक्षा मजबूत करने के लिए आत्मनिर्भर होना ही पड़ेगा। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि पिछले वित्त वर्ष में 85 देशों को 21 हजार करोड़ के हथियार निर्यात किए गए। आज हम हथियारों के 23वें नम्बर के एक्सपोर्टर हैं। कोई भी देश रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हुए बिना सैन्य शक्ति नहीं बन सकता है।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल त्यागी कहते हैं कि सेना में महिलाओं को पहले सिर्फ मेडिकल सर्विस में रखा जाता था। आज महिलाओं को परमानेंट कमीशन दिया जा रहा है। सेना में 108 महिलाएं कमांड करने की स्थिति में हैं। इसमें इंजीनियर, आर्डिनेंस और आर्टिलरी भी हैं। अभी इंफ्रेंट्री एंड आर्मर्ड में महिलाएं नहीं हैं पर जल्द ही इन क्षेत्रों में भी महिलाओं की भूमिका बढ़ेगी।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी कहते हैं कि भारतीय सेना के ज्यादातर जवान गांवों से आते हैं। अग्निवीर योजना ने युवाओं के लिए रोजगार के मौके बढ़ाएं हैं। युवाओं को 4 साल की नौकरी के बाद 12 लाख कैश मिलेगा जिससे वो रोजगार शुरू कर सकते हैं। लेकिन इतनी जल्दी रिटायरमेंट एक सामाजिक समस्या है। 75 फीसदी अग्निवीर गांव लौट कर जाएंगे तो उनमें रिजेक्श्न का भाव होगा। सेना में इस तरह कम समय की सेवा को कहीं भी सफलता नहीं मिली है। एक सैनिक को पूरी तरह ट्रेंड होने में 8 साल लग जाते हैं। युवाओं को पारंपरिक युद्ध की तैयारी के लिए अग्निवीर स्कीम में सुधार किया जाना चाहिए।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी कहते हैं कि आज चीन की सेना दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में है। उसने हाल ही दावा किया था कि वो दुनिया के किसी भी हिस्से में अलग-अलग 6 डोमेन में युद्ध लड़ने को तैयार है। समुद्र, आकाश, जमीन, साइबर, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेट्रम और स्पेस वॉरफेयर डोमेन में वो किसी भी देश से लड़ सकते हैं। चीन के इस दावे से अमेरिका भी घबराया हुआ है और ताइवान का युद्ध टालने में लगा है। चीन के खतरे को देखते हुए हमें अभी काफी तैयारी करनी होगी।

स्वास्थ्य: पोलियो-चेचक के खात्मे के साथ शिशु एवं मातृ मृत्यु दर में आई कमी, गांवों तक पहुंच रहा आधुनिक इलाज

आजादी से अब तक भारत में स्वास्थ्य विस्तार का दायरा काफी बढ़ा है, इस क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की गई है। पर चुनौतियां अब भी बरकरार हैं। इसे लेकर हमने एक्सपर्ट पैनल में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसीडेंट व इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय संयोजक (ऑर्गन डोनर) डॉ. अनिल गोयल, गुड़गांव पारस हेल्थकेयर के रेडिशन ऑन्कोलॉजी की ग्रुप डायरेक्टर एंड हेड ऑफ डिपोर्टमेंट डॉ. इंदु बंसल और दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट व आईएमए के संयोजक (आयो गांव चले) डॉ. वीके मोंगा से बात की। उन्होंने बताया कि कैसे आज भारत में स्वास्थ्य सबसे बड़ा फैक्टर होने के साथ इससे जुड़ी कई सुविधाएं लोगों के लिए सुविधाजनक हो गईं हैं।

आईएमए के राष्ट्रीय संयोजक (ऑर्गन डोनर) डॉ. अनिल गोयल ने बताया कि 1950 के आसपास सिर्फ 28 मेडिकल कॉलेज थे, आज उनकी संख्या 750 तक पहुंच गई है। इतना ही नहीं एक एम्स से आज 23 एम्स हो गए हैं, जिनमें से 19 कार्यरत हैं। यह बताता है कि हमारी प्रगति इस क्षेत्र में कैसे हो रही है या अब तक हुई है। उन्हाेंने कहा कि सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर मैं देखता हूं कि भारत में जन्म के समय जो बच्चों व गर्भवती महिलाओं की मौत होती थी, वह बहुत ही अधिक व चिंताजनक थी। इस पर बहुत काम हुआ है और आज शिशु मृत्यु दर व मातृ मृत्यु दर आजादी के समय की तुलना में कई गुना कम हो गई है।

गुड़गांव पारस हेल्थकेयर के रेडिशन ऑन्कोलॉजी की ग्रुप डायरेक्टर एंड हेड ऑफ डिपोर्टमेंट डॉ. इंदु बंसल बताती हैं कि गांव-गांव तक डिलीवरी व बच्चे के इलाज की सुविधा होना भी एक बड़ा फैक्टर रहा है। मेडिकल कॉलेज व एम्स जैसे संस्थानों की संख्या बढ़ने से इलाज की सुविधाएं भी बढ़ी हैं। स्वच्छ भारत अभियान की भी भारत में बीमारी को कम करने और खुले में शौच जैसी समस्या को खतम करने में बड़ी भूमिका रही है। इससे कई संक्रमित बीमारी जो महिलाओं को खुले में शौच करने से होती थी, उसमें काफी हद तक पूरी तरह कमी आ गई है। इसके अलावा आज भारत में सेनेटरी के उपयोग करने से भी कई बीमारियों की समस्याएं कम हुई है।

भारत में स्वास्थ्य को लेकर आईएमए के संयोजक (आयो गांव चले) डॉ. वीके मोंगा का कहना है कि मेडिकल कॉलेज, एम्स, मेडिकल सीट व आधुनिक संसाधन से लेकर कोविड वैक्सीन तक के अविष्कार का सफर भारत का रहा है। आज भारत में मौजूद इलाज सुविधा व बड़ी बीमारियों की विशेषज्ञता को देखते हुए कई देशों के मरीज इलाज कराने आ रहे हैं। भारत हेल्थ टूरिज्म के रूप में दुनिया में अपनी छाप छोड़ रहा है। टेलिमेडिसिन जैसी सुविधा से गांव- कस्बों में मेट्रो शहर के बड़े विशेषज्ञ इलाज-दवा के साथ कई बड़ी सर्जरी तक को अंजाम दे रहे हैं।

चुनौतियों को लेकर डॉ. गोयल का कहना है कि हमें विदेश से यह सीखना है कि मेडिकल के क्षेत्र में रिसर्च बढ़ाया जाए। विदेश में बनने वाली मेडिकल से जुड़ी नई तकनीक व मशीनरी को लेकर हमें आत्मनिर्भर होना होगा। इस पर जोर देने से हमें दुनिया के लिए बाजार बन जाएंगे। वहीं डॉ. मोंगा का कहना है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर लगातार काम करना होगा। बड़ी बीमारियों के इलाज को लोगों की पहुंच तक लाना होगा। महंगा इलाज आज भी बड़ी जनसंख्या के लिए एक समस्या है।

डिस्क्लेमरः इस लेख में व्यक्त विचार विशेषज्ञों के हैं। इसका मकसद मतदान का सही फैसला लेने में एंपावर करना है, किसी पक्ष के लिए मत को प्रभावित करना नहीं।