फ्लैश बैक : मटमैला कुर्ता पहन बैलगाड़ी से करते थे प्रचार, यही थी बुंदेलखंड में सियासत के केंद्र रहे राम सजीवन की पहचान
चार बार बने चित्रकूट सदर से विधायक तीन बार बने सांसद कम्युनिस्ट पार्टी के बाद बसपा से जुड़कर की जनता की सेवा
चित्रकूट [शिवा अवस्थी]। खादी का मटमैला कुर्ता पहनकर पुराने बैनर, पैदल, साइकिल व बैलगाड़ी से प्रचार करने वाले खांटी मजदूर व किसान नेता राम सजीवन सिंह के इर्द-गिर्द बुंदेलखंड की सियासत पांच दशक तक घूमती रही। वह चित्रकूट सदर विधानसभा क्षेत्र से चार विधायक बने और बांदा सीट से तीन बार चुन कर दिल्ली दरबार में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। शुरुआत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से हुई। इसके बाद करीब दो दशक तक बसपा की सक्रिय राजनीति से जुड़ाव रहा। हर लोकसभा व विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी सादगी की चर्चाएं जोर पकड़ लेती हैं।
1962 में लड़े पहला चुनाव, लगातार रहे सक्रिय
आजादी के बाद राम सजीवन सिंह पटेल ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। 1962 में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया से लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इसके बाद चित्रकूट सदर कर्वी विधानसभा क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया। यहां पर पांच साल गांव-गांव घूम कर कड़ी मेहनत की। इसका प्रतिफल जनता ने उनको वर्ष 1967 में जीत का तोहफा देकर दिया। इसके बाद 1974, 1977 व 1986 में वह सीपीआइ से विधायक चुने गए। आठ बार लोकसभा का चुनाव लड़े। 1989 में पहली बार बांदा सीट पर सीपीआइ से सांसद बने। वर्ष 1996 व 1999 में बसपा की टिकट पर सांसद चुने गए।
रात को गांवों में रुक कर समझते थे ग्रामीणों की पीड़ा
राम सजीवन के प्रतिनिधि रहे व बेहद करीबी अधिवक्ता मुन्ना लाल ङ्क्षसह बताते हैं कि वह किसान, गरीब या कोई भी हो, सबके साथ हमेशा चलने के लिए तैयार रहे। उनका चुनाव लडऩे और प्रचार का तरीका जुदा रहा। सांसद बनने से पहले तक पैदल, साइकिल, बैलगाड़ी व बाइक पर चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे। अक्सर कर्वी के गांवों में शाम ढलने के बाद पहुंचकर वहीं रात गुजार कर चौपाल में ग्रामीणों का सुख-दुख बांटते थे। उनकी बहू रश्मि व पौत्र दीपक किशोर ङ्क्षसह ने बताया कि वह सादगी की मिसाल थे।
लोकसभा चुनाव के परिणाम
1962 : सीपीआइ-हारे
1984 : सीपीआइ-हारे
1989 : सीपीआइ-जीते
1991 : सीपीआइ-हारे
1996 : बसपा-जीते
1998 : बसपा-हारे
1999 : बसपा-जीते
2004 : बसपा-हारे