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Lok Sabha Elections: फिर होगी किसानों के दर्द और नशे के मर्ज की चर्चा

पंजाब में लोकसभा चुनाव में फिर नशा बेरोजगारी किसानों की कर्जमाफी ही बड़े मुद्दे होंगे। हमेशा की तरह इस बार भी लोकसभा चुनाव में पंजाब में बड़े मुद्दे स्थानीय ही हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 10:34 AM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 05:28 PM (IST)
Lok Sabha Elections: फिर होगी किसानों के दर्द और नशे के मर्ज की चर्चा
Lok Sabha Elections: फिर होगी किसानों के दर्द और नशे के मर्ज की चर्चा

जालंधर [विजय गुप्ता]। दिसंबर 2016 में पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष की कमान मिलने के बाद रैली में गुटका साहिब को मस्तक से स्पर्श करते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सौगंध खाई थी कि उनकी सरकार बनने पर पंजाब से तीस दिन में नशे का खात्मा हो जाएगा। संदेश स्पष्ट था- उनके एजेंडे में न केवल नशे की समस्या को दूर करना शामिल है , बल्कि धर्म ग्रंथ को सर्वोच्च सम्मान देना भी उनकी सरकार का परम कर्तव्य होगा। वही धर्म ग्रंथ जिनकी बेअदबी के मुद्दे ने शिरोमणि अकाली दल व भाजपा गठबंधन को पंजाब की सत्ता से बाहर कर दिया।

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अब दो साल बाद लोकसभा चुनाव में भी फिर इन्हीं मुद्दों के साथ ही नशा, बेरोजगारी, किसानों की कर्जमाफी भी बड़े मुद्दे होंगे। हमेशा की तरह इस बार भी लोकसभा चुनाव में पंजाब में बड़े मुद्दे स्थानीय ही हैं। राज्य की कैप्टन सरकार के दो साल और केंद्र में मोदी सरकार के पांच साल के काम और योजनाओं को भी जनता की कसौटी पर परखा जाना है। सूबे की 13 सीटों पर मतदान सबसे आखिरी चरण में 19 मई को होना है।

कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के बाद से बेअदबी के मुद्दे को जिंदा रखा है क्योंकि विपक्षी अकाली दल के खिलाफ उसके तरकश में यही सबसे तीखा तीर है। नए सिरे से एसआइटी बनी, कुछ बड़े पुलिस अफसर गिरफ्तार हुए। बादल पिता-पुत्र व अभिनेता अक्षय कुमार से पूछताछ हुई। पंथक वोट बैंक में यह मुद्दा प्रभाव छोड़ेगा। लेकिन इसके साथ ही नशे को तीस दिन में खत्म करने का दम भरकर सत्ता हासिल करने वाली कैप्टन सरकार इसी मुद्दे पर घिर भी रही है।

बेशक एसटीएफ का गठन कर सरकार दावा कर रही है कि सूबे में नशे की सप्लाई चेन तोड़ी गई है, लेकिन अब भी नशे की बड़ी खेप पकड़ा जाना सवाल भी खड़े करता है। बीते दो साल में करीब 35 युवा नशे के कारण दुनिया छोड़ चुके हैं। यहां नशे का एक बड़ा कारण बेरोजगारी रही है और बड़ा मुद्दा भी। सरकार ने घर-घर नौकरी का वादा किया और रोजगार मेलों में पांच लाख 35 हजार युवाओं को नौकरी का दावा भी किया जा रहा है। हालांकि, युवाओं का कहना है कि उन्हें उनकी योग्यता के मुताबिक वेतन नहीं मिल रहा है।

करीब 1300 युवाओं ने चयन होने के बावजूद नौकरी ठुकरा दी। वहीं अकाली दल व भाजपा उसे सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद रखने पर घेरती है। कर्मचारियों के कई वर्ग स्थायी होने की मांग को लेकर आंदोलित रहे हैं जो चुनाव में खासा असर डाल सकते हैं। हरित क्रांति की धरती पंजाब का किसान तो हर चुनाव में मुद्दा रहता है, इस बार भी है।

किसानों की कर्जमाफी का वादा कांग्रेस सरकार ने किया था और अभी तक तीन चरणों में पांच लाख 83 हजार किसानों का दो लाख तक का कर्ज माफ किया गया है। अगले चरण में खेत मजदूरों का कर्ज भी माफ होगा। इसके बावजूद किसानों की आत्महत्याएं रोकने में कैप्टन सरकार कामयाब नहीं हो पाई है। कैप्टन के कार्यकाल में 457 किसानों ने आत्महत्या की है।

पंजाब में उद्योगों को पांच रुपये प्रति यूनिट बिजली देने का वादा पूरा नहीं हुआ है। जीएसटी व नोटबंदी का असर व्यापार पर पड़ने की बात पहले उद्यमी करते थे, लेकिन अब यह मुद्दा इतना नहीं है। हां, बिजली जरूर मुद्दा है। पंजाब में काफी तादाद पूर्व सैनिकों की है। वन रैंक, वन पेंशन की पहले चर्चा होती थी लेकिन हाल ही में हुई घटनाओं के बाद राष्ट्रीय अस्मिता अघोषित मुद्दा जरूर बन गई है। सतलुज व ब्यास का प्रदूषण, कानून व्यवस्था बड़े मुद्दे हैं लेकिन विडंबना है कि किसी भी दल ने इन्हें कभी चुनावों में अपने एजेंडे में प्रमुखता से शामिल नहीं किया।

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