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तीन हिस्‍सों में बंट गई हरियाणा की सियासी राजधानी, नाम की रह गई चौधर

किसी भी नेता को अपने पक्ष में माहौल बनाना होता है तो सबसे पहले पहुंचते हैं जींद। अपने-अपने हितों के लिए जिले को तीन लोकसभा क्षेत्रों में बांट दिया। पढ़ें जींद की जुबानी ये कहानी।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 04:34 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 11:56 AM (IST)
तीन हिस्‍सों में बंट गई हरियाणा की सियासी राजधानी, नाम की रह गई चौधर
तीन हिस्‍सों में बंट गई हरियाणा की सियासी राजधानी, नाम की रह गई चौधर

जींद [कर्मपाल गिल]। मैं जींद हूं..। बीते समय में हरियाणा की राजनीतिक राजधानी रहा हूं। मैंने कई नेताओं को राजनीति के फलक तक पहुंचाया। जाने कितने ही नेता मेरे सीने पर पैर रख आगे बढ़ गए। किसी पार्टी या नेता को रैली करनी हो या नई पार्टी बनानी हो, सभी ने मेरी गोद को चुना। मतलब निकला तो मुझे भूला दिया। परिस्थितियां गवाह रही हैं कि मेरे राजनीतिक कद से कुछ लोगों को चिढ़ हो गई। टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। एक बाजू नरवाना थी। इसे सिरसा लोकसभा के हवाले कर दिया। दूसरी बाजू उचाना को हिसार के हवाले कर दिया। मेरा दिल माने जाने वाले जींद, सफीदों और जुलाना हलकों को सोनीपत को दे दिया। अब मैं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा हूं।

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देश आजाद होने के बाद मुङो रोहतक संसदीय सीट के साथ जोड़ा गया था। तब भी सभी सांसद रोहतक के ही बनते थे। सभी पार्टियां रोहतक के नेताओं को ही टिकट देती थी। तब रोहतक लोकसभा सीट से लहरी सिंह, रणबीर सिंह, मुख्तयार सिंह, रिजक राम, रणधीर सिंह सांसद बने। इनमें मेरी धरती का कोई नेता नहीं था। मुझे किनारे किया हुआ था। मेरी किस्मत वर्ष 1972 में जागी। जब मुझे हिसार लोकसभा क्षेत्र के साथ जोड़ा गया। इसके बाद तो ज्यादातर चुनावों में मेरा ही दबदबा रहा। वर्ष 1977 में मेरे बेटे इंद्र सिंह श्योकंद जनता पार्टी की टिकट पर संसद पहुंचे थे। वर्ष 1984 में हिसार सीट पर मेरी गोद में खेलने वाले बीरेंद्र सिंह ने ओमप्रकाश चौटाला को हराकर संसद में प्रवेश किया। इस जीत में बड़ा रोल मेरा ही था। तब हिसार संसदीय क्षेत्र में जींद, उचाना, नरवाना, कलायत, राजौंद हलके आते थे। इसके बाद भी कई चुनावों में मेरी तूती बोलती रही।

मैंने जयप्रकाश का दिया साथ 1989 में मैंने जयप्रकाश के सिर पर हाथ रखा और वह पहली बार संसद पहुंचे। 1991 में नारायण सिंह हिसार से लोकसभा चुनाव जीते। 1996 में फिर जयप्रकाश सांसद बने। 1998 में भी जींद के ही सुरेंद्र बरवाला पहली बार सांसद बने। अगले साल 1999 में हुए चुनाव में भी जींद के सुरेंद्र बरवाला को जीत हासिल हुई। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में जींद के जय प्रकाश फिर संसद पहुंचे। हिसार लोकसभा सीट पर मेरा दबदबा लगातार बना रहा लेकिन मेरे इस सियासी दबदबे को कुछ नेता पचा नहीं पाए और उन्होंने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में हुए नए परिसीमन में मेरे टुकड़े कर दिए। नए परिसीमन के तहत 2009 में हुए चुनाव में मुझे हिसार, नरवाना और सोनीपत लोकसभा सीटों में इस तरह बांट दिया कि सभी जगह से मेरा दबदबा खत्म हो सके। मुझे चौ. देवीलाल के परिवार की सियासी रियासत माना जाता था, लेकिन अब समय बदल गया। पिछले चुनावों में किसी पार्टी ने मेरे किसी नेता को तरजीह नहीं दी थी।

जीत के लिए जींद में तीन जगह के नेता टेकेंगे माथा
जींद में परिसीमन से पहले छह विधानसभा हलके थे। परिसीमन के बाद राजौंद को खत्म करके जींद में पांच विधानसभा क्षेत्र कर दिए गए। इससे जिले में कुल वोटरों की संख्या घट गई। दूसरे नजरिए से देखें तो जींद जिले की चौखट पर अब तीन जगह के नेता वोट मांगने आएंगे। यानी पूरे हरियाणा में जींद अकेला ऐसा जिला है, जो तीन लोकसभा सीटों पर अपना असर दिखाएगा। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में जींद जिले में 7 लाख 49 हजार 7 मतदाता थे। वर्ष 2009 में परिसीमन के कारण यह संख्या घट गई थी और 6 लाख 86 हजार 207 मतदाता बच गए थे। 2014 में हुए चुनाव में 1 लाख 62 हजार 572 नए मतदाता जुड़े थे। अब 2019 में मेरे वोटरों की संख्या बढ़कर 9 लाख 12 हजार 122 हो गई है।


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