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World Water Day 2019: राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में सूख जाते हैं पानी के मसले

World Water Day 2019 पर्यटन नगरी शिमला पिछले साल सबसे बड़ा जल संकट झेल चुकी है लेकिन एक साल में जल संकट से निपटने के लिए नीतियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हो पाया है।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 10:41 AM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 11:52 AM (IST)
World Water Day 2019: राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में सूख जाते हैं पानी के मसले
World Water Day 2019: राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में सूख जाते हैं पानी के मसले

शिमला, रमेश सिंगटा। World Water Day 2019: 'रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून' रहीम का यह दोहा पानी के महत्व को साफ रेखांकित करता है। जल गुरु राजेंद्र सिंह से लेकर तमाम विशेषज्ञ पहाड़ों की जवानी और पानी को व्यर्थ न गंवाने की सलाह दे चुके हैं। लेकिन राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में हिमाचल के पानी के मसले सूख जाते हैं। राजनेताओं की आंख का पानी इस कदर खत्म हो गया है कि उन्हें पानी जैसा संवेदनशील मुद्दा नजर नहीं आता।

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आरोपों-प्रत्यारोपों और एक-दूसरे पर छींटाकशी के बीच जनता से जुड़े असल मुद्दे चुनावी शोरगुल में गायब हो जाते हैं। देश के उच्चतर साक्षरता वाले पहाड़ी राज्य हिमाचल में न तो जल साक्षरता आंदोलन चला और न ही यह बड़े दलों का एजेंडा बन पाया। प्रदेश की राजधानी एवं पर्यटन नगरी शिमला पिछले साल सबसे बड़ा जल संकट झेल चुकी है। इस बार गर्मी दस्तक देने वाली है। लेकिन एक साल में जल संकट से निपटने के लिए नीतियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हो पाया है।

शिमला ही नहीं, प्रदेश के कई शहर व गांव गर्मी में पेयजल किल्लत से जूझते हैं। हिमाचल को प्रकृति ने अपार जल संसाधन दिए हैं। यहां की जीवनदायिनी नदियों में पानी की कमी नहीं है। पहाड़ के पानी से पड़ोसी राज्यों के खेतों की फसलें लहलहाती हैं। लेकिन अपने राज्य में धारों और ऊंचाई वाले इलाकों में बसे लोगों को पानी मुहैया नहीं हो पाता है। उचित जल प्रबंधन के बिना पहाड़ का पानी गांवों से नीचे बहने दिया जाता है। उसके बाद इसे जिस मात्रा में लिफ्ट करना होता है, उससे कहीं कम लिफ्ट किया जाता है। नीचे से ऊपर पानी ले जाना सरकार के लिए भी महंगा साबित होता है। जल प्रबंधन की राजनीतिक दलों ने कभी ज्यादा चिंता नहीं की है। 

शिमला में निजी कंपनी पिला रही पानी
हिमाचल में सेना के छह छावनी क्षेत्रों योल, कसौली, सुबाथू, डगशाई, डलहौजी व बकलोह में पानी की सप्लाई स्थानीय निकाय के माध्यम से होती है। धर्मशाला व शिमला स्मार्ट सिटी हैं। धर्मशाला में पानी की आपूर्ति सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य (आइपीएच) विभाग करता है। शिमला में पानी की आपूर्ति पहले आइपीएच विभाग करता था। बाद में ग्रेट वाटर सप्लाई सर्कल बनाय गया। अब पानी की सप्लाई निजी कंपनी कर रही है। सरकार व नगर निगम ने अपनी जिम्मेदारी से हाथ पीछे खींच लिए हैं।

शिलाई में बिकता है पानी
सिरमौर जिला में शिलाई करीब 15 हजार की आबादी वाला कस्बा है। इस कस्बे में हर सीजन में पानी की किल्लत रहती है। कस्बे में पानी बिकता है। पेयजल व भवन निर्माण के लिए पानी की कीमत अलग-अलग है। गर्मी में पानी बंद बोतलों की तर्ज पर महंगा हो जाता है। साथ में टोंस नदी सटी है। लेकिन आज तक वहां से लिफ्ट स्कीम नहीं बनी। ग्रेविटी की स्कीम भी सिरे नहीं चढ़ पाई है।

  • 53604 - बस्तियां हैं हिमाचल में
  • 34 हजार बस्तियों में तय मानक 34 के हिसाब से मिल रहा पानी के सर्वे के अनुसार
  • 19 हजार से अधिक बस्तियों में मानक के अनुसार नहीं पानी।
  • प्रति व्यक्ति रोजाना 20 से 50 लीटर के बीच पानी मिल रहा 
  • 2003  के सर्वे के अनुसार 51848 बस्तियां थीं हिमाचल में। यह सर्वे 2005 में पूरा हुआ
  • 1 अप्रैल 2016 में शुरू हुआ नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम। इसके अनुसार बस्तियों की संख्या 53604 हो गई

 

पानी का मानक
विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देश के अनुसार केंद्र ने प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 70 लीटर पानी का मानक तय किया है। 

हिमाचल में पानी की योजनाएं

  • पेयजल योजनाएं 9393
  • उठाऊ योजनाएं 1820
  • ट्यूबवेल 285
  • ग्रेविटी योजनाएं 7288

1875 में बनी शिमला के लिए पानी की योजना
शिमला में पानी की योजना वर्ष 1875 में तैयार हुई थी। इस स्कीम में 1889, 1914, 1923, 1974, 1982, 1992 व 2008 में बढ़ोतरी की गई। इसके बावजूद बढ़ती आबादी के लिए यह योजना नाकाफी साबित हुई।

सप्ताह में एक दिन पेयजल आपूर्ति
गर्मियों में लगभग आधी योजनाओं में पानी कम हो जाता है। उस दौरान पेयजल की सप्लाई तीसरे व पांचवें दिन होती है। सैकड़ों गांवों में सप्ताह में एक दिन ही पानी की आपूर्ति हो पाती है। 

इन शहरों के लिए अलग पेयजल योजना
प्रदेश के 44 शहरों के लिए अलग पेयजल योजनाएं हैं। इनमें नयनादेवी, नादौन, रामपुर, ऊना, चुवाड़ी, कांगड़ा, ज्वालामुखी, नाहन, रोहड़ू, संतोषगढ़, मैहतपुर, देहरा, चंबा, रिवालसर, अर्की, दौलतपुर, जोगेंद्रनगर, मनाली, कुल्लू, कोटखाई, सुजानपुर, घुमारवीं, चौपाल, सुन्नी, पालमपुर, गगरेट, नगरोटा, हमीरपुर, मंडी, नालागढ़, नारकंडा, नूरपुर, पांवटा, ठियोग, डलहौजी, शाहतलाई, राजगढ़, सरकाघाट, भोटा, सोलन, भुंतर, जुब्बल व धर्मशाला शामिल है। 

विकास के एजेंडे में शामिल होगा पानी
चुनाव में राष्ट्रवाद, सर्जिकल स्ट्राइक व चौकीदार को चोर कहने वाले कांग्रेस के अपशब्द बड़ा मुद्दा होंगे। आधी सदी तक देश को लूटने वाली पार्टी अब भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है जिसे मुद्दा बनाया जाएगा। मोदी सबसे बड़ा मुद्दा होंगे। साथ ही राज्यस्तर पर पानी को विकास के एजेंडे में शामिल किया जाएगा। पानी भगवान का दिया हुआ प्रसाद है। इसे हर व्यक्ति, हर खेत तक पहुंचाना सर्वोच्च प्राथमिकता रहेगी। पीने के लिए शुद्ध पानी मिले, हर खेत को पानी मिले, इस कारण इसे पीएम फ्लैगशिप प्रोग्राम में रखा है। भाजपा शुद्ध पेयजल के लिए प्रतिबद्ध है।

-चंद्रमोहन ठाकुर, प्रदेश महासचिव, भाजपा

कांग्रेस शासन में नहीं रही पानी की कमी

यह प्रदेश की विडंबना है कि पानी जैसे संवेदनशील मुद्दे को घोषणापत्रों में जगह नहीं मिलती है। पानी बुनियादी सवाल है। हिमाचल में जड़ी-बूटी वाला पानी बहता है। अगर इसका दोहन किया जाए तो यह बोतलबंद पानी के बाजार पर भारी पड़ेगा। इससे राज्य सरकार को अरबोें की आय होगी। इस पर आधारित प्लांट लगें। वैज्ञानिकों को शोध करना चाहिए कि प्रदेश के शुद्ध पानी से कौन-कौन से रोग दूर हो सकते हैं। शिमला नगर निगम में कांग्रेस का शासन ज्यादा रहा तब यहां पानी की कमी नहीं थी।  -दीपक राठौर, सचिव, प्रदेश कांग्रेस कमेटी

नहीं हुआ स्थायी समाधान
भाजपा व कांग्रेस जैसे बड़े दल पानी को कभी मुद्दा नहीं बनाएंगे। ये दोनों दल पेयजल का निजीकरण कर रहे हैं। अगर मुद्दा बनेगा तो लोग हकों की आवाज उठाने लगेंगे। आइपीएच विभाग की स्कीमों को राज्य सरकारों ने आउटसोर्स कर दिया है। ऐसी 3300 स्कीमें हैं। गर्मी में पेयजल संकट हर बार होता है। लेकिन इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पाया। हमने नगर निगम क्षेत्र में पेयजल स्कीमों की लीकेज को रोका था। पहले लीकेज ठीक करने के नाम पर करोड़ों का गड़बड़झाला हुआ। जल संसाधनों पर कंपनियों का कब्जा होने लगा है। -संजय चौहान, पूर्व मेयर एवं माकपा नेता  


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