Election: विधानसभा चुनाव को लेकर असमंजस बरकरार, नेशनल कांफ्रेंस ने कोर्ट जाने की चेतावनी दी
भारतीय चुनाव आयोग विधानसभा चुनावों के अलावा विधान परिषद की छह सीटों के चुनाव कराने पर विचार कर रहा है।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। विधानसभा चुनाव को लेकर अभी भी असमंजस बरकरार है। निर्वाचन आयोग ने अगले सप्ताह फिर केंद्रीय गृह मंत्रलय और संविधान विशेषज्ञों से राज्य के हालात व चुनाव के संदर्भ में विचार विमर्श करने का फैसला किया है। इस बीच, प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस ने कोर्ट में जाने की चेतावनी दी है।
संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, विधानसभा भंग होने या किसी सरकार के गिरने पर छह माह में विधानसभा चुनाव कराने जरूरी हैं। परिस्थितियों के आधार पर चुनाव को कुछ समय के लिए स्थगित करते हुए राष्ट्रपति शासन की अवधि को बढ़ाया जा सकता है। जम्मू कश्मीर में वर्ष 1990 से 1996 तक राष्ट्रपति शासन लागू रह चुका है। सूत्रों ने बताया कि मंगलवार को भी चुनाव आयोग नई दिल्ली में बैठक होने जा रही है। इसमें जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने को लेकर कोई अंतिम एलान होगा, लेकिन इसकी संभावना नहीं है। चुनाव आयोग ने यह फैसला अगले सप्ताह होने वाली बैठक तक टालने का मन बनाया है। वह चाहता है कि गृह मंत्रलय के अलावा संविधान विशेषज्ञों से राय लेकर चुनाव का एलान करे।
आयोग ने राज्य गृह विभाग और राज्य में कार्यरत विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों से मुख्य निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट मांगी है। बताया जा रहा है कि भारतीय चुनाव आयोग विधानसभा चुनावों के अलावा विधान परिषद की छह सीटों के चुनाव कराने पर विचार कर रहा है। इनमें पंचायत और नगर निकाय कोटे की सीटें भी हैं। इन सीटों के लिए चुनावी तैयारियां जारी हैं। तिथि का एलान नहीं हुआ है। कहा जा रहा है कि आयोग विधानसभा चुनाव के साथ परिषद की सीटों पर चुनाव का एलान करेगा।
विधानसभा चुनाव टालने में भाजपा का हाथ : हर्षदेव
पैंथर्स पार्टी के प्रधान हर्षदेव सिंह ने आरोप लगाया है कि भाजपा राजनीतिक फायदे के लिए चुनाव आयोग के कामकाज में हस्तक्षेप कर रही है। जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव को टालने में भाजपा का ही हाथ है। सोमवार को प्रेस वार्ता में हर्षदेव ने कहा कि भाजपा के कई नेता अब अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव करवाने की बात कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि चुनाव आयोग के फैसलों की जगह भाजपा के नेता ही फैसला लेना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग के अधिकारों पर भाजपा का कब्जा हो चुका है। यह पहली बार है जब चुनाव आयोग केंद्र सरकार की सलाह ले रहा है। अगर विधानसभा चुनाव को और अधिक समय तक टाला जाता है तो यह चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह होगा।
20 जून से है राष्ट्रपति शासन: जम्मू कश्मीर में जून 2018 को भाजपा के समर्थन वापसी के बाद तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार गिर गई थी। उसके बाद राज्यपाल शासन लागू हो गया। 21 नवंबर 2018 को राज्यपाल ने निलंबित विधानसभा को भंग कर दिया था। 20 जून 2018 को राज्यपाल शासन की समयावधि समाप्त होने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया।
सितंबर-अक्टूबर में चुनाव कराने का सुझाव: बीते साल विधानसभा भंग करने के बाद केंद्र सरकार ने सुरक्षा परिदृश्य का हवाला देते हुए विधानसभा चुनाव को कुछ समय तक टाले रखा। सभी को उम्मीद थी कि संसदीय चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होंगे। गत मार्च में चुनाव आयोग ने संसदीय चुनाव का एलान तो किया, लेकिन विधानसभा चुनाव को स्थानीय हालात के आधार पर कुछ समय तक टालने का हवाला देते तीन विशेष पर्यवेक्षक तैनात कर उन्हें हालात और चुनाव के संदर्भ में रिपोर्ट देने के लिए कहा था। तीनों पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट दाखिल कर चुके हैं। उसमें उन्होंने जो विकल्प दिए, उसमें उन्होंने सितंबर-अक्टूबर में चुनाव कराने का सुझाव दिया है।
अवाम को निर्वाचित सरकार का हक: नेकां : नेकां के प्रांतीय प्रधान नासिर असलम वानी ने कहा कि राज्य में एक साल से निर्वाचित सरकार नहीं है। पंचायत, नगर निकाय व संसदीय चुनाव भी हो चुके हैं। पूरी उम्मीद है कि लोस चुनाव का परिणाम घोषित होने के साथ विस चुनावों का एलान हो जाएगा। अगर अब चुनाव को टालने का अगर प्रयास हुआ तो हम राज्य में निर्वाचित सरकार के लिए अदालत का सहारा लेने को मजबूर हो जाएंगे। लोगों को निर्वाचित सरकार का हक है।
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