Move to Jagran APP

Delhi Election 2020: नारे वही जो जनता के मन को भाएं... और जीत दिलाएं

दिल्ली में चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के पोस्टर्स से ऐसे भरी होती थीं दीवारें। जागरण अर्काइव

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 03:08 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 03:08 PM (IST)
Delhi Election 2020: नारे वही जो जनता के मन को भाएं... और जीत दिलाएं
Delhi Election 2020: नारे वही जो जनता के मन को भाएं... और जीत दिलाएं

नई दिल्ली, संजीव कुमार मिश्र। नारे वही जो जन के भन भाएं...और जीत दिलाएं। कमरतोड़..जीतोड़ मेहनत करते हैं...क्रिएटिविटी के साथ एड़ी चोटी तक का जोर लगाते हैं बाकायदा प्रचार के लिए बैनर, नारे तैयार करने को विशेषज्ञ रखे जाते हैं। अब तो समय के साथ अब नारों की प्रकृति भी बदलती चली जा रही है। कभी ये नारे, समाज की वर्तमान स्थिति पर केंद्रित लिखे जाते थे लेकिन अब तो व्यक्ति केंद्रित होते जा रहे हैं। यही नहीं अब एग्रेसिव नारे भी खूब दिए जाते हैं।

loksabha election banner

नारों ने बनाया दिलचस्प : यह नारे ही हैं जिन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल जहां आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं की जुबां पर है तो वहीं लगे रहो  केजरीवाल नारा भी खूब लोेकप्रिय हो रहा है। आम आदमी पार्टी के पलटवार में कांग्रेस और भाजपा ने भी नारों की झड़ी लगा दी है। कांग्रेस का नारा, कांग्रेस वाली दिल्ली भी कार्यकर्ताओं में खासा पसंद किया जा रहा है। भाजपा ने इस चुनाव में देश बदला है, अब दिल्ली बदलेंगे और 5 साल दिल्ली बेहाल, अब नहीं चाहिए केजरीवाल नारा दिया है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता राहुल कहते हैं कि नारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए अलग-अलग प्रचार माध्यमों का सहारा लिया जा रहा है। अभी तक पार्टियों के स्तर पर प्रचार हो रहा है तो नारे भी पार्टी स्तर के लगाए जा रहे हैं। उम्मीदवारों के नामांकन के बाद चुनाव प्रचार में तेजी आने के साथ अभी और नए नारे व जुमले गढ़े जा रहे हैं। कांग्रेस दिल्ली में विकास की डोर टूटने, अपने 15 साल शासन चलाने के अनुभव की दलील देकर मतदाताओं को वापस जोड़ने में लगी है। यही नहीं नारों को पंक्तियों में गढ़कर भी ट्विटर, फेसबुक पर पोस्ट कर रही है।

दिल्ली को हमने बनाया, दुनिया में इसको नाम दिलाया। अब बुरा हुआ है इसका हाल, कांग्रेस संग बनाएं इसे खुशहाल। भाजपा का प्रचार अभियान संभाल रहे वरिष्ठ नेता सुभाष आर्या कहते हैं कि पहले चुनावी नारे अधिकतर जनता द्वारा या, किसी कार्यकर्ता द्वारा दिया जाता था। ये नारे आज के गोली मारों सालों की तरह एग्रेसिव नहीं होते थे, बल्कि बड़े साधारण और दिल को छूने वाले होते थे। जनता की बात करते थे कई बार ऐसा होता है कि नेता किसी जनसभा में जा रहे हैं, वहां किसी ने राह चलते कुछ गढ़ दिया और वो हिट हो गया।

बकौल आर्या, दरअसल नारे दो प्रवृति के होते हैं। जिसे पार्टी लांच करती है वो नारा हम एक साल की मेहनत के बाद गढ़ पाते हैं। इस पर बड़े नेता कड़ी मशक्कत करते हैं। लेकिन चुनाव के दौरान कई तात्कालिक नारे भी गढ़े जाते हैं। यह नारे, चुनाव के दौरान की परिस्थितियों पर आधारित होते हैं। हालांकि अब तो कंपनियां भी हायर की जा रही है। राजनीतिक दल इन कंपनियों को वस्तु स्थिति दे दी जाती है। कंपनियां एक वस्तु स्थिति पर बतौर नमूना 20 से 50 नारे गढ़ती हैं। जिसमें पार्टी अपनी पसंद अनुसार एक दो या फिर कई बार ज्यादे नारे चुनती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.