CG Election 2018: राजनीति की बिसात पर उपेक्षित संरक्षित जनजाति बिरहोर
बिरहोर जाति के लिए केन्द्र और प्रदेश सरकार की बहु प्रचारित योजनाएं भी बिरहोरों की पहुंच से कोसो दूर है।
जशपुरनगर । बिरहोर समाज के अधिकांश लोग समाज के बीच में रहते हुए भी मुख्यधारा से कोसो दूर है। इस समाज के लोगों को सतर के दशक में तात्कालिन मध्य प्रदेश सरकार ने जंगल से निकाल कर रायगढ़ और जशपुर जिले के चिन्हांकित स्थानों पर बसाया था। सरकार की योजना बिरहोरों को शिक्षा और रोजगार उपलब्ध करा कर विकास के रास्ते पर लाना था। लेकिन चार दशक से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी यह समाज के बीच रह कर भी समाज से पूरी तरह से कटा हुआ है।
इस उपेक्षित बिरहोर की सामाजिक,आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति पहाड़ी कोरवाओ से भी खराब है। बिरहोर,अपनी जरूरत पूरा करने के लिए अब भी प्लास्टिक के बोरे से रस्सी बनाने और मजदूरी पर ही निर्भर है। राजनीतिक उपेक्षा की स्थिति यह है कि इस समाज के लोग अपने जनप्रतिनिधियों को भी ठीक से नहीं पहचानते हैं।
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार बिरहोर की संख्या,पहाड़ी कोरवाओं से कापᆬी कम है। जिले के बगीचा,कुनकुरी और मनोरा विकास खण्ड के 94 गांवों में 4 हजार 1 सौ 10 परिवार निवासरत हैं। इनकी कुल जनसंख्या 14 हजार 6 सौ 8 है। वहीं बिरहोर जनजाति जिले के कुनकुरी,बगीचा,कांसाबेल,दुलदुला और पत्थलगांव विकास खण्ड के 12 गांव में मात्र 1 सौ 61 परिवार ही है।
इनकी कुल आबादी भी मात्र 5 सौ 15 है। इनमें 2 सौ 49 महिला और 2 सौ 66 पुरूष शामिल हैं। अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे बिरहोर राजनीति के वोट बैंक के गणित में पिᆬट नहीं बैठते हैं। यही कारण है कि पहाड़ी कोरवाओं की तरह इन्हें अब तक ना तो राजनीति में महत्व मिल पाया है और ना सुर्खियां।
रस्सी के सहारे गुजर रही है जिंदगी -
पांच दशक गुजरने के बाद भी बुलडेगा में स्थापित बिरहोर जाति के लोगों को बदहाल जिंदगी से मुक्ति नहीं मिल पाई है। जंगल से निकल कर मानव बस्ती में दिन गुजारने के बावजूद अब तक समाज में पूरी तरह से घुलमुल नहीं पाए हैं। बिरहोर बस्ती के 75 वर्षिय बुजुर्ग सोनसाय ने नईदुनिया को बताया कि इस बस्ती में 22 परिवार के 50 लोग निवास करते हैं।
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए इस बुजुर्ग ने बताया कि जंगल में रहने के दौरान उनके पूर्वज रस्सी बनाने काम करते थे। जंगल से निकल कर बस्ती में आने के बाद भी वे पटसन से रस्सी बनाया करते थे। सोनसाय बताते है कि रस्सी बनाने की कला बिरहोर समाज के लोगों को विरासत में मिलती है।
इसे सिखने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन समय की मार से उनका यह पारम्परिक व्यवसाय दम तोड़ने लगा है। पटसन तो अब मिलता नहीं,इसलिए सीमेंट की बोरियों से वे रस्सी बनाने का काम करते हैं। सीमेंट की बोरियों को वे 2 रूपए प्रति बोरे की हिसाब से घूम-घूम कर खरीदते हैं और इनसे रस्सी बना कर बाजार में बेचते हैं। लेकिन इन दिनों बाजार में फैक्ट्री में बने रस्सी के बढ़ते प्रचलन ने उनके व्यवसाय को लगभग खत्म कर दिया है और वे मजदूरी पर आश्रित होते जा रहे हैं।
गांव में स्कूल के बावजूद शिक्षा से हुए दूर -
बिरहोर जाति में शिक्षा की अलख जगाने के लिए प्रदेश सरकार ने पत्थलगांव तहसील के बुलडेगा के बिरहोर बस्ती में एक प्राथमिक शाला शुरू की है। चालू शिक्षा सत्र में इस स्कूल की दर्ज संख्या 22 है। इनमें से अधिकांश बच्चें बिरहोर समाज के ही है। लेकिन अशिक्षा अब भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
जागरूकता के अभाव में इस जाति के अधिकांश लोग स्कूल के दहलीज से दूर ही हैं। युवा अब भी मजदूरी और रस्सी के सहारे ही अपने परिवार की गाड़ी खिंच रहे हैं। इस बस्ती के अधिकांश लोग अब भी निरक्षर है। जो थोड़े बहुत पढ़े हुए हैं वे प्राथमिक शाला के बाद पढ़ाई छोड़ चुके हैं।
वनवासी जीवन के आदी रह चुके बिरहोरों को शिक्षा और रोजगार के साथ आम जीवन में घुल-मिल कर रहने के लिए जागरूक करने का कोई प्रयास अब तक नहीं हुआ है। बिरहोर जाति के लिए केन्द्र और प्रदेश सरकार की बहु प्रचारित योजनाएं भी बिरहोरों की पहुंच से कोसो दूर है।
इस गंभीर मामले में स्थानीय प्रशासन ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। यहीं हाल दूसरी योजनाओं की भी है। आश्चर्य की बात है कि विशेष संरक्षित जनजाति के लोगों का सुध लेने के लिए बस्ती तक कोई जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचता। इस बस्ती के निवासी ना तो किसी अधिकारी को पहचानते हैं और ना ही जनप्रतिनिधि को।
बदहाली पर नहीं होता शोरगुल -
पहाड़ी कोरवा की तरह बिरहोर जनजाति भी केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित विशेष जनजाति है। इन्हें भी से सभी शासकीय सुविधाएं मिली हुई है जिसका लाभ पहाड़ी कोरवाओं को मिलता है। जनसंख्या के लिहाज से बिरहोज जाति पहाड़ी कोरवाओं के मुकाबले काफी कम है। यही वजह है कि बिरहोर जाति का पिछड़ापन और इनकी बदहाली की चर्चा ना तो कभी राजनीति का मुद्दा बनती है और ना ही इसको लेकर शोर गुल मचता है।
बुलडेगा की तरह ही बुरी स्थिति बेहराखार की भी है। वर्ष 2015 में सन्ना में लंबू राम की मौत के बाद पहाड़ी कोरवाओं की बदहाली को लेकर जमकर बवाल हुआ था। इस बवाल को ठंडा करने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को आना पड़ा था। लेकिन बिरहोर जाति अब भी राजनीतिक,प्रशासनिक और सामाजिक उपेक्षा का शिकार हो कर मनुष्य बस्ती में रहते हुए समाज की मुख्यधारा से कोसो दूर बदहाल जिंदगी गुजारने के लिए विवश है।
एक नजर आंकड़ों पर -
तहसील गांव जनसंख्या
कुनकुरी 01 66
बगीचा 04 187
कांसाबेल 04 99
दुलदुला 01 56
पत्थलगांव 02 107