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CG Election 2018: छत्तीसगढ़ चुनाव में गजराज भी बने मुद्दा

पिछले पांच सालों में हाथियों ने करीब 250 लोगों की जान ली है, लगभग 100 हाथी भी मारे जा चुके हैं।

By Rahul.vavikarEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 07:52 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 07:39 AM (IST)
CG Election 2018: छत्तीसगढ़ चुनाव में गजराज भी बने मुद्दा
CG Election 2018: छत्तीसगढ़ चुनाव में गजराज भी बने मुद्दा

रायपुर (नईदुनिया राज्य ब्यूरो)। छत्तीसगढ़ के दूसरे चरण के चुनाव में जंगली हाथी की समस्या भी एक बड़ा मुद्दा है। हसदेव अरण्य इलाके के गांवों में लोग हाथी की वजह से दहशत के दिनरात गुजार रहे हैं। पिछले पांच सालों में हाथियों ने करीब  250 लोगों की जान ली है, लगभग 100 हाथी भी मारे जा चुके हैं।

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छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला कहते हैं कि सरकार ने कोयला खदानों के लिए हाथी कॉरोडोर का खत्म कर दिया इसी का परिणाम है कि हाथी गांवों में आ रहे हैं। हालांकि सरकार की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जंगल से सटे इलाकों में वनाधिकार पट्टे देने से इंसानों का दखल हाथियों के क्षेत्र में बढ़ा है जिससे समस्या बढ़ रही है। कारण चाहे जो हो, चुनाव के दौरान गजराज मुद्दा बन रहे हैं।

दरअसल हाथी से प्रभावित इलाकों में विधानसभा की करीब 20 सीटें पड़ती हैं। हाथियों का दखल पूरे विधानसभा में भले न हो, जंगल से सटे इलाकों में तो इस मुद्दे का जोर है ही। निर्वाचन आयोग भी मतदान के दिन हाथी से बचने के उपायों पर गौर कर रहा है। यानी हाथी जो पहले गांव, घर, खेतों को प्रभावित कर रहे थे अब चुनाव को भी प्रभावित कर रहे हैं। हाथी मुद्दा है तो कांग्रेस कहां पीछे रहती।

कांग्रेस ने घोषणापत्र में वादा कर दिया कि हम आए तो लेमरू एलीफेंट रिजर्व बनाएंगे। भाजपा इस मुद्दे की काट तलाश रही है। भाजपा के प्रचार में बताया जा रहा है कि सरकार हाथी के मामले में कितनी संवेदनशील है। घरों-खेतों के नुकसान पर तुरंत मुआवजा दिया जाता है। हाथी को दूर रखने की तमाम परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। यही सरकार ऐसी है जो हाथी और मनुष्य दोनों का ख्याल रख सकती है। हालांकि इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति ही हो सकती है। वादों का कोई मतलब नहीं है। वोटर भी जानते हैं कि चाहे कोई भी हारे-जीते, हाथी के भय से रतजगा उन्हें ही करना है।

हसदेव अरण्य के जंगलों से सटे सरगुजा संभाग के सभी जिलों में हाथी समस्या हैं। जशपुर और कुनकरी, कोरबा जिले के पाली, रामपुर, रायगढ़ के लैलूंगा, तमनार, धरमजयगढ़ से लेकर महासमुंद जिले के कसडोल और बिलाईगढ़ तक हाथी चिंघाड़ रहे हैं और लोग अपने घरों को छोड़कर भागे-भागे फिर रहे हैं। हाथी अब राजधानी रायपुर के नजदीक तक आ रहे हैं। हालांकि हाथी चुनावी मुद्दा यहां नहीं हैं।

क्या गुल खिलाएंगे हाथी

हाथी बसपा का चुनाव चिन्ह है लेकिन यह हाथी वो हाथी नहीं है जिससे लोगों की राजनीतिक प्रतिबद्धता जुड़ सके। हाथी से परेशान लोग सभी राजनीतिक दलों में है। ग्रामीण किसी एक दल के नहीं हैं। गांवों में इस मुद्दे पर गरमागरम बहस चल रही है। सारी चर्चा का लब्बोलुआब तो यही निकल रहा है कि कोई भी आए क्या फर्क पड़ेगा। वैसे इसपर सभी की निगाह है कि इस बार हाथी क्या गुल खिलाता है।


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