-----ब्लर्ब-----
हिमाचल में हादसों के खिलाफ चेतना और सतर्कता अनिवार्य है। जब हर पक्ष सतर्क होगा तभी हादसे रुक सकेंगे।
------------

हिमाचल प्रदेश में हादसे ऐसे नियमित क्रम की तरह हैं जिन्हें रोका जाना चाहिए। वीरवार को किन्नौर जिला मुख्यालय रिकांगपिओ से सोलन जा रही बस के रामपुर के पास दुर्घटनाग्र्रस्त होने से 28 लोग काल का ग्र्रास बन गए। बस चालक के अनुसार हादसे का कारण बस का पïट्टा टूटना बताया जा रहा है, हालांकि असली वजह का खुलासा जांच के बाद ही होगा। इस साल हिमाचल में यह दूसरा सबसे बड़ा हादसा हुआ है। इससे पहले नेरवा में बस के गहरी खाई में लुढ़कने से 45 लोग मौत के मुंह में समा गए थे। औसतन तीन लोग प्रदेश में रोजाना हादसे के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं। यह पिछले साल करीब 1163 लोग हादसों की वजह से ही मारे गए थे। यह कटु सत्य है कि करीब नब्बे फीसद हादसे मानवीय चूक के कारण होते हैं। हादसे किसी भी वजह से हों लेकिन इनमें होने वाले नुकसान की भरपाई कोई नहीं कर सकता। यह सही है कि हादसा जब होना होता है, हो ही जाता है.. उसके पीछे मानवीय चूक, तकनीकी खराबी, खराब सड़कें जैसे कई तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन मालवाहक में बैठने-बिठाने से अब तक गुरेज नहीं किया जा रहा है। क्या पुलिस हर वक्त हर स्थान पर रह कर हादसों को रोक सकती है? क्या यह संभव है कि प्रदेश के हर कोने में लगातार हो रहे हादसे बिना मानवीय विवेक के रोके जा सकें? क्या यह संभव है कि हर जगह निगरानी से ही हादसे रुकेंगे? जब तक सड़क पर चलने और वाहन चलाने का शिष्टाचार नदारद रहेगा, तब तक सुरक्षित यातायात की कल्पना करना बेमानी है। बड़े हादसे तो अपनी बारंबारता स्वयं ही याद करवाते हैं, छोटे-छोटे हादसे भी कम नहीं हो रहे हैं। जब तक यातायात नियम मालवाहकों में सामान और सब्जियों की तरह ठूंसे जाते रहेंगे, जब तक दोपहिया चालक उन्हें हेलमेट मान कर हाथों में टांगते रहेंगे, जब तक पहियों पर अनियंत्रित गति का जुनून सवार रहेगा, तब हादसों को कौन रोक सकता है। हिमाचल प्रदेश में मालवाहकों में प्रदेश के बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को कितने जख्म और कितना कष्ट दिया है, क्या वह किसी से छिपा है? होना यह चाहिए कि यातायात पुलिस तो यातायात नियमों को उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती से पेश आए ही, वाहन चालक भी समझें कि नियमों का पालन अपनी सुरक्षा के लिए भी किया जाता है।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]