-उत्तराखंड के स्कूलों से ड्रापआउट बच्चों की बढ़ती संख्या से साफ है कि नीतियों में बदलाव की जरूरत है। वक्त आ गया है कि शिक्षा को रोजगार से जोड़ा जाए।
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तकरीबन अस्सी फीसद साक्षरता दर वाले उत्तराखंड के लिए यह खबर चौंकाने वाली है कि प्रदेश में ड्राप आउट बच्चों की संख्या बढ़ रही है। आंकड़े इंगित कर रहे हैं कि हालात किस कदर चिंताजनक हैं। स्थिति यह है कि माध्यमिक शिक्षा में 15 हजार से अधिक और प्राथमिक शिक्षा में दो हजार से अधिक विद्यार्थी स्कूल छोड़ रहे हैं। चिंता इसलिए भी ज्यादा है कि पहाड़ के साथ मैदानी इलाकों में भी ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है। मसलन राजधानी देहरादून इस मामले में शीर्ष पर है। यहां यह आंकड़ा साढ़े आठ हजार है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में चमोली में स्थिति खराब है, जहां दो हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं बीच में ही स्कूल को अलविदा कह रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है। क्या यह माना जाए कि इसके लिए गुणवत्ता परक शिक्षा का अभाव जिम्मेदार है। दरअसल, ऐसा मान लेना भी जल्दबाजी ही होगी। वजह यह कि सुविधा संपन्न शहर देहरादून और हरिद्वार में यह आंकड़ा सर्वाधिक है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय बढ़कर एक लाख 54 हजार रुपये वार्षिक हो गई है। सरकार के नजरिए से देखें तो आर्थिक हालात बेहतर हुए हैं। इसके अलावा सरकारी स्तर पर स्कूलों में तमाम तरह की सुविधाएं भी दी जा रही हैं। ऐसे में बच्चों का शिक्षा से विमुख होना योजनाओं पर भी सवाल खड़ा करता है। हालांकि कहा यह जा रहा है कि सरकारी स्कूलों में ज्यादातर श्रमिक वर्ग के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और परिवार को संबल देने के लिए वे स्कूल से मुंह मोड़ रहे हैं। यदि इसे ही कारण मान लिया जाए तो भी बात नीति-नियंताओं पर आती है। सवाल यह भी है कि भूखे भजन न होत गोपाला। ठीक है कि बच्चों के लिए स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था है, लेकिन गरीब परिवार के लिए यह ज्यादा राहत की स्थिति नहीं है। सच तो यह है कि यह पूरे सिस्टम पर ही सवाल है। शिक्षा को लेकर उत्तराखंड का जनमानस जागरूक है और लालायित भी, लेकिन परिस्थितियों के सम्मुख बेबस है।
प्रदेश में 20387 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल हैं। जबकि माध्यमिक स्कूलों की संख्या 3260 है। बावजूद इसके शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर स्थिति संतोषजनक नहीं रही। रोजगार सृजन के हालात रसातल में नजर आते हैं। जाहिर है स्थिति से निपटने के लिए शिक्षा को रोजगार से जोडऩे की जरूरत भी है। आमूलचूल बदलाव के बिना हालात में सुधार की ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]