दिल्ली में छोटी-छोटी बातों पर हत्या जैसी घटनाओं में इजाफा होना चिंता का विषय है। बीते तीन माह के दौरान ही मामूली विवादों पर 127 हत्या हो चुकी हैं। विवाद का स्वरूप देखिए, बाल कटवाने के लिए दुकान पर गए एक व्यक्ति के साथ नाई का झगड़ा हो गया। पहले गाली गलौच हुआ और बाद में नाई ने कैंची से उस व्यक्ति की हत्या कर दी। इसी तरह उत्तर-पूर्वी जिले में होली का त्योहार मनाने के दौरान हुए विवाद पर तीन हत्याएं हुईं। अभी दो दिन पहले तो गोल गप्पे नहीं खिलाने पर ही खोमचे वाले की हत्या कर दी गई। अब इसे महानगरीय संस्कृति में भागती दौड़ती जिंदगी का तनाव कहें या खत्म होता आपसी प्रेम- भाईचारा, लेकिन कहीं न कहीं यह समाज में बढ़ती संवेदनहीनता का ही परिचायक है। इस दिशा में गंभीरता से विचार और स्थिति में सुधार के लिए प्रयास करने की अत्यंत आवश्यकता है।
गौर करने वाली बात है कि अभी कुछ माह पहले दिल्ली सरकार ने इसी असंवेदनशीलता को कम करने की दिशा में एक घोषणा भी की थी कि वह किसी घायल को अस्पताल पहुंचाने पर मददगार को अस्पताल प्रबंधन दो हजार रुपये का पुरस्कार और एक प्रशंसा पत्र देगी। उम्मीद की गई थी कि इनाम के लालच में ही सही, मानवीयता को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन अभी तक इस योजना का भी सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है। सच तो यह है कि महानगरीय संस्कृति में जीवनशैली ही कुछ ऐसी हो गई है कि सभी को सबकुछ फटाफट चाहिए। हर समय एक हड़बड़ाहट और अजीब सी जल्दबाजी में रहती है। उसे यह भी करना है, वह भी करना है, सब कुछ करना है और वह भी जल्दी-जल्दी। यह जल्दबाजी ही अनावश्यक तनाव उत्पन्न करती है और यह तनाव फिर तमाम समस्याओं को जन्म देता है। इंसान को अच्छे बुरे तक ख्याल नहीं रहता। नई पीढ़ी को अपनी जीवनशैली में बदलाव करना ही होगा। जीवन में सबकुछ जल्दबाजी में नहीं पाया जा सकता। संयम भी जरूरी है। वैसे भी सफलता और प्राप्ति स्थायी होनी चाहिए। हड़बड़ाहट और तनाव में अक्सर पाने की जगह गंवाना पड़ जाता है। इस संबंध में सभी को ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]