कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचने के लिए दिल्ली के अस्पतालों में बेहतर सुविधाएं न होना चिंताजनक है। हैरानी की बात यह कि सरकारी अस्पतालों में रेडियोथेरपी तक की पर्याप्त सुविधा नहीं है। कैंसर के मरीज अधिक हैं जबकि रेडियोथेरपी मशीनें एवं डॉक्टर कम। 75 फीसद मरीजों को रेडिएशन थेरपी की सुविधा मिल ही नहीं पाती। जांच के बाद भी इलाज के लिए मरीजों को कई कई माह इंतजार करना पड़ता है। एक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में मरीजों के दबाव के चलते कई अस्पतालों के रेडियोथेरपी सेंटरों में रोजाना 14 घंटे तक मशीनें चलती हैैं। इनसे एक दिन में 50 से 90 मरीजों को इलाज होता है। इससे लापरवाही होने की आशंका भी बनी रहती है। नतीजा, तरह से समय पर कैंसर का पता चल जाने के बावजूद कितने ही मरीज इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं।
राजधानी में चिकित्सा सुविधाओं को लेकर दावे बहुत किए जा रहे हैं किन्तु ऐसे दावों का फायदा क्या है। अगर जानलेवा बीमारियों से इलाज की भी पुख्ता व्यवस्था नहीं है तो फिर अन्य बीमारियों को लेकर भला क्या कहा जा सकता है। कैंसर का इलाज महंगा है। आम आदमी मरनासन्न स्थिति में भी निजी अस्पताल जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। जबकि इस बीमारी के लिए रेडिएशन और कीमोथेरेपी ही सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर देश की राजधानी के सरकारी अस्पतालों में भी इसके लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं तब देश के अन्य हिस्सों का क्या हाल होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। वैसे यह भी एक विडंबना ही है कि निजी अस्पतालों में अत्याधुनिक सुविधाएं और तकनीक लाए जा रहे हैं जबकि सरकारी अस्पताल अपने परंपरागत ढांचे से ही ऊपर नहीं उठ पा रहे। आज भी सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाओं की बदहाली देखने को मिलती है। इस स्थिति पर सरकार और अस्पतालों के प्रबंधन तंत्र दोनों को ही गंभीरता से विचार करना होगा। चिकित्सा सुविधाओं में सुधार और विस्तार समय की जरूरत है। समय के साथ बदलाव बेहतरी के लिए ही नहीं, अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए भी जरूरी होता है। अगर सरकारी अस्पताल ऐसे ही बेपरवाह बने रहे तो निजी अस्पताल भी ऐसे ही चांदी कूटते रहेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]