सरकारी कार्यालयों में वर्क कल्चर की कमी का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। लोग इसकी शिकायत अधिकारियों से करते तो हैं, लेकिन विभागों में अनुशासन की कमी देखने को मिल रही है। विगत दिवस डिस्टिक मजिस्ट्रेट ने राजौरी कस्बे में बाढ़ सिंचाई एवं नियंत्रण विभाग में छापा मार कर ड्यूटी से गैरहाजिर आठ कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। इससे पहले राजौरी में छह सौ आंगनबाड़ी केंद्रों में चौदह सौ वर्करों को निलंबित कर प्रशासन ने यह स्पष्ट कर दिया कि कार्यालयों में गैर जिम्मेदाराना रवैया नहीं चलेगा। इससे तो लगता है कि कर्मचारी अपनी मर्जी से काम कर रहे हैं।

विडंबना यह है कि निलंबित अधिकारियों में एग्जीक्यूटिव भी शामिल है। अगर इस स्तर के अधिकारी ड्यूटी से कन्नी काटेंगे तो उनके मातहत कर्मचारी भी दफ्तरों में नहीं आएंगे। इससे कार्यालयों में वर्क कल्चर नहीं पनपेगा, जिससे जो लोग कार्यालयों में अपने काम के लिए आएंगे, उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। गंभीर विषय यह है कि सरकारी दफ्तरों में गैर हाजिर रहना एक प्रथा बनती जा रही है। यह ऐसी पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी एसडीएम ने सितंबर में अखनूर में गल्र्स हायर सेकेंडरी स्कूल में सब डिस्टिक मजिस्ट्रेट के औचक दौरे पर स्कूल के प्रिंसिपल सहित सात शिक्षकों को गैर हाजिर पाया था। राज्य के सरकारी कार्यालयों में वर्क कल्चर में सुधार आने का नाम नहीं ले रहा है, जिसका खामियाजा सीधे तौर पर जनता को भुगतना पड़ रहा है।

लोग जब भी कार्यालयों में अपनी समस्याओं के समाधान के लिए जाते हैं तो कर्मचारी गैर हाजिर मिलते हैं। यह सही है कि शिकायत आने पर ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है, मगर विडंबना यह है कि इसके दूरगामी परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं है, जब सरकारी कार्यालयों से कर्मचारी गैरहाजिर मिले हों। राज्य में शायद ही कोई ऐसा जिला हो जहां दफ्तरों में गैर हाजिर रहना मजाक बनकर न रह गया हो। ड्यूटी के प्रति कर्मचारियों का यह रवैया निस्संदेह कामकाज पर असर डालता है। विशेषकर शिक्षकों की गैरहाजिरी से स्कूलों के परिणामों पर भी असर पड़ता है। यह सही है कि अधिकारी एक दिन छापे मार कर ऐसे कर्मचारियों को निलंबित कर देते हैं, लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव में वे फिर से बहाल हो जाते है। इससे गैर जिम्मेदार अधिकारियों को भी लगता है कि सरकार ने पहले क्या बिगाड़ लिया।

 [स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर]