स्वास्थ्य क्षेत्र में अव्वल राज्य का तमगा हासिल करने वाला हिमाचल भले ही अपने पुरस्कारों पर इतराए, दावा सबसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का हो मगर अभी भी कई जख्म ऐसे हैं जिन पर समय रहते मरहम न लगाया गया तो दर्द बढ़ता जाएगा। दर्द सिर में हो और पर्ची पर लिखावट ऐसी कि केमिस्ट पेट दर्द की दवा दे तो इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी। ऐसे कई मामले हैं जब अस्पतालों में लापरवाही व अव्यवस्था के कारण मरीजों को दिक्कत झेलनी पड़ती है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला में ही यदि सीटी स्कैन मरीज के सिर का हो और रिपोर्ट पेट के सीटी स्कैन की थमा दी जाए तो इस बात के कारण तलाशने होंगे कि दिक्कत कहां है और उसे क्यों न जल्द से जल्द दूर किया जाए। यह हाल केवल एक अस्पताल का ही नहीं है। प्रदेश के कई अन्य बड़े अस्पतालों में गलत टेस्ट रिपोर्ट देने व कई बार रिपोर्ट गुम होने के मामले चर्चा में रहे हैं। यही कारण है कि मरीज निजी अस्पतालों व निजी टेस्ट लैब की तरफ जाना बेहतर समझते हैं। आज भी इमरजेंसी के दौरान मरीज इलाज के लिए अन्य राज्यों का रुख करने के लिए मजबूर होते हैं। लोग सरकारी अस्पतालों में इसलिए जाते हैं क्योंकि वहां कुशल स्टाफ होता है मगर जब प्रदेश के कई स्वास्थ्य संस्थानों में स्टाफ पूरा नहीं होगा व कई जगह आधारभूत ढांचा कमजोर रहेगा तो बेहतर इलाज कैसे होगा। प्रदेश के दो मेडिकल कॉलेजों में ही सभी सुविधाएं हासिल करने के लिए लोगों को दिक्कतें झेलनी पड़ें तो नए खोले जाने वाले तीन मेडिकल कॉलेजों का सपना कैसे साकार होगा। मंडी जिला के लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक में स्टाफ पर्याप्त नहीं और कक्षाएं भी शुरू नहीं हो पाई हैं। बिलासपुर जिला के कोठीपुरा में प्रस्तावित एम्स अभी धरातल पर नहीं उतरा है क्योंकि जमीन स्वास्थ्य विभाग के नाम हस्तांतरित नहीं हुई है। अस्पतालों में पुराने कंप्यूटरों के सहारे बनती पर्चियां, टेस्ट करवाने के लिए बिल कटवाने को लेकर लंबी कतारें और टेस्ट रिपोर्ट लेने के दौरान अव्यवस्था का आलम ऐसी दिक्कतें हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। अस्पतालों में अतिरिक्त बिल काउंटर बनाए जाएं, टेस्ट रिपोर्ट काउंटर पर व्यवस्था सही हो, स्टाफ की कमी न सताए तभी स्वस्थ समाज की परिकल्पना साकार होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]