-----वरिष्ठ सदस्यों का कर्तव्य है कि वे नवागंतुक सदस्यों के सामने मिसाल पेश करते हुए विधायिका का ऐसा संस्कार दें, जो उनमें वास्तविक नेतृत्व की क्षमता विकसित करे।-----प्रदेश में सत्रहवीं विधानसभा का कामकाज धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा है। इस बार लगभग दो तिहाई विधायकों ने विधानसभा की दहलीज पर पहली बार कदम रखा है। यानी कि अब उनकी ऐसी जिंदगी की शुरुआत हो चुकी है, जो उन्हें वास्तविक रूप से जिम्मेदार होने के लिए बाध्य करती है। अब वे व्यक्तिपरक होने के बजाए सार्वजनिक हो चुके हैं। यह पद उन्होंने भले ही संघर्ष से पाया हो लेकिन, इसका निर्वहन अब उन्हें साधना से करना है। उनकी हर भाव-भंगिमा, आचरण और गतिविधि में लोककल्याण ही होगा और कुछ नहीं लेकिन, यह केवल उनके लिए ही संभव हो पाता है, जिनके लिए विधायिका भवन पूजास्थल से कम नहीं होता। जो विश्र्वास, प्यार और श्रद्धा लेकर पवित्र मन से इसमें प्रवेश करते हैं और विधायिका के संस्कार ग्रहण करते हैं। उन्हें इदं न मम के भाव से बाहर आना होता है। अर्थात, यह मेरा नहीं है, मेरा कुछ भी नहीं है। जो है राष्ट्र और जनता का है। विधायिकाओं में बैठने वालों का कर्तव्य भी यही होता है।बड़ा सवाल है कि क्या यह संभव है? सवाल इसलिए क्योंकि लोकसभा हो या विधानसभाएं वहां का माहौल अब पूरी तरह बदल चुका है। उसमें बैठने वाले जनप्रतिनिधि दलगत स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। यही कारण है कि विधानसभाओं में असंसदीय भाषा का प्रयोग या मारपीट की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। इदं न मम के बजाए इदं मम का भाव हावी हो गया है। मतलब यह कि यह मेरा है, लोक की चाहे जितनी भी हानि हो पर मैं इसे लेकर ही रहूंगा। मैं सबके बराबर नहीं हूं। मैं अन्य लोगों से ज्यादा ताकतवर हूं। आज इसी भाव के कारण विधायिकाओं की गरिमा गिरी है। आम आदमी के मन में भी उनके प्रति श्रद्धा में कमी आई है। विधानसभा की कार्यवाहियों पर जनता की गाढ़ी कमाई अधाधुंध खर्च तो होती है लेकिन, इसका वास्तविक लाभ लोगों को नहीं मिल पाता है। सदन का ज्यादातर समय लड़ाई-झगड़े के कारण कार्यवाही बाधित होने में ही गुजर जाता है। इन सब से निजात पाना होगा। वरिष्ठ सदस्यों का कर्तव्य है कि वे नवागंतुक सदस्यों के सामने मिसाल पेश करते हुए विधायिका का ऐसा संस्कार दें, जो उनमें वास्तविक नेतृत्व की क्षमता विकसित करे। नवागंतुक नेताओं को भी यह समझना होगा कि यदि उन्हें सर्वप्रिय नेता बनना है और लंबे समय तक रहना है तो अपने वास्तविक कर्तव्य का निर्वहन उन्हें पूरी ईमानदारी से करना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]