बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में रैगिंग की घटना ने एक बार फिर देश में झारखंड के नाम को कलंकित किया है। ऐसी घटनाएं न सिर्फ छात्र के लिए बल्कि संस्थान, समाज और राज्य के लिए भी अशोभनीय हैं। ऐसी घटनाओं को रोकना सभी के लिए चुनौती है और इसके लिए सभी को संजीदगी से सक्रिय होना होगा। सवाल विश्वविद्यालय में मौजूद एंटी रैगिंग व्यवस्था पर भी है। छात्रों की मानें तो रैगिंग को लेकर विवि प्रशासन कभी सक्रिय नहीं रहा है। हालांकि तीनों आरोपी छात्रों को निलंबित कर प्रबंधन ने अपनी औपचारिकताएं तो पूरी कर ही ली हैं। आगे कोई बड़ी कार्रवाई होगी, इसकी संभावना तो नहीं दिखती। पुराने रिकॉर्ड भी कुछ ऐसे ही हैं।
बिरसा कृषि विवि के वानिकी संकाय के प्रथम सेमेस्टर के छात्र से सुसाइड नोट लिखवा उसके साथ शनिवार की रात सीनियर छात्रों ने जमकर रैगिंग की। उसे सीनियर छात्रों ने अपशब्द कहे और अनर्गल आरोप लगाकर नंगा कर ठंडे पानी से नहलाया। इसके बाद दाढ़ी बनाने वाले ट्रिमर से सिर के बाल मुड़ दिए। फिर छड़ी से पिटाई की। शरीर के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ की। सहपाठियों से भी उसे पिटवाया। जब छात्र अधमरा हो गया तब सीनियर्स ने उससे तीन बांड कागज पर लिखवाकर हस्ताक्षर करवाया कि 'मैं अपनी मर्जी से आत्महत्या कर रहा हूं। मैं अपनी जिंदगी से तंग आ गया हूं। मेरा घटिया कॉलेज में नामांकन हो गया है।Ó इसके बाद रैगिंग करने वाले छात्र पीडि़त को दवा दे, सुलाकर भाग गए। प्रताडऩा हद की सीमा तक हुई। इसे सिर्फ रैगिंग का नाम देना गलत होगा। यह हत्या का प्रयास है। एक युवा मन की हत्या तो हो ही चुकी है। ऐसे में सजा भी बड़ी होनी चाहिए।
दरअसल, सजा नहीं मिलना ही अपराधियों के मनोबल को बढ़ाता है। इस घटना में भी कुछ न कुछ ऐसा ही हुआ है। पूर्व की छोटी-छोटी घटनाओं को नजरअंदाज कर प्रबंधन ने यह प्रबंध कर दिया कि बड़ी घटनाएं हों। सबसे बड़ा सवाल विवि प्रबंधन पर है। प्रबंधन अब लाख कार्रवाई कर ले, वह घटना को रोकने में तो विफल ही रहा है। लेकिन, कार्रवाई से बड़ी बात है बच्चों को सही और गलत का ज्ञान होना। नैतिक संस्कारों की कमी भी इसकी वजह है। बात सिर्फ बीएयू की नहीं। तमाम शैक्षणिक संस्थानों में संस्कारों की कमी के कारण ही ऐसी घटनाएं होती रहीं हैं। मेडिकल, इंजीनियङ्क्षरग से लेकर पॉलिटेक्निक संस्थानों तक का ऐसा ही हाल है। सरकार को चाहिए कि छात्रों को दंडित करने के साथ-साथ रैगिंग रोकने के लिए बनी व्यवस्था पर भी लगाम कसे ताकि आनेवाले दिनों में ऐसी घटनाएं नहीं हों। शैक्षणिक समाज को स्पष्ट संदेश मिले कि अगर बच्चों के साथ कुछ अनहोनी हुई तो शिक्षक भी नपेंगे और प्रबंधक भी। इसके बाद ही इन संस्थानों का प्रबंधन संभालनेवाली टीम सक्रिय होगी। आखिर ऐसी घटनाओं के पीछे इन्हीं वरीय अधिकारियों की निष्क्रियता भी कारण है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]